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Friday, May 18, 2018

कर्नाटक में  नाटक 

कर्नाटक में  नाटक 

बुधवार को कांग्रेस विधायक दल की बैठक में सदस्यों से पूछा गया कि क्या उन्हें बीजेपी शिविर से जुड़े किसी से भी कोई " प्रलोभन " मिल रहा है?  उनमें से 12 ने अपने हाथ उठाए। प्रत्येक व्यक्ति को अपने मोबाइल फोन पर वॉयस रिकॉर्डिंग ऐप्स इंस्टॉल करने की सलाह दी गई थी ताकि भविष्य की बातचीत रिकॉर्ड की जा सके।यदि कांग्रेस खेमे पर भरोसा किया जा सकता है तो उनके अनुसार बीजेपी नेता श्रीरामुलु के एक आदमी ने गुरुवार को विधायकों में से एक को फोन किया था  लेकिन बातचीत ज्यादा नहीं हुई क्योंकि उसे संदेह था कि उनकी बात रिकार्ड  की जा रही है। उसने फोन काट दिया। कांग्रेस से सम्पर्क का जिममा बल्लारी सममूह को सौंपा गया था और इस तरह के फंदों ससे वाकिफ है। इस तरह के जाल से वाकिफ है अतएव उसने विधायकों को नहीं उसके रिश्तेदारों ओर दोस्तों को फोन करना शुरू कर दिया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि कांग्रेस-जेडी (एस) शिविर छोड़ने और बीजेपी में जाने के लिए उनके विधायकों के  परिजनों  पर दबाव डाला जा रहा है।इस समय कर्नाटक की सियासत में चूहे- बिल्ली का खेल चल रहा है। कांग्रेस की बेचैनी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बिदाड़ी में एक रिज़ॉर्ट से सुरक्षा वापस ले ली गई। यही वह जगह है जहां सभी कांग्रेस विधायकों को रखा गया है।  बी एस येदुरप्पा ने रामनगर जिले के एसपी को स्थानांतरित कर दिया जहां  रिज़ॉर्ट स्थित है और अपनी पसंद के एक नए अधिकारी को तैनात किया गया है। यही कारण है कि कांग्रेस ने अपने विधायकों को बदलने का फैसला किया। मूल योजना विधायकों को विमान से कोच्चि  ले जाना था। 

लेकिन कांग्रेस शिविर का दावा है कि चार्टर्ड उड़ानों को  अनुमति देने से इंकार कर  गया था। उधर, नागर विमानन मंत्री जयंत सिन्हा ने ट्वीट कर के बताया कि  घरेलू चार्टर उड़ानों के लिए डीजीसीए की अनुमति की आवश्यकता नहीं है, लेकिन बेगलुरू में  स्थानीय एटीसी से पूर्व अनुमोदन की जरूरत है। आधी रात के कुछ पहले ही कुछ बसें ईगलटन रिसॉर्ट गेट्स से बाहर निकलीं। विधायकों को निर्देश दिया गया था कि मीडिया वालों को अपने  गंतव्य के बारे में कुछ ना बतायें। लेकिन जब बस  बेंगलुरु-हैदराबाद हाई वे पर आयी तो बात साफ हो गयी कि उस कांग्रेस - जे डी (एस) जमात ने  550 किलोमीटर दूर तेलंगाना की राजधानी को अस्थायी तौर पर चुना है।

उधर कांग्रेस- जद (से)  का नाटक चल ही रहा था कि गवर्नर ने घोड़े के व्यापार (हार्स ट्रेडिंग ) के लिए बीजेपी को छूट दे दी ,उन्होंने अगली सुबह मुख्यमंत्री के लिए शपथ ग्रहण करने का भी आदेश दिया।येदुरपपा धन्यवाद दे रहे थे पर ऐसा लग रहा था कि वे खुश होने का नाटक कर रहे हैं। लगता थ कि उन्हें अहसास हो रहा था कि उन्हें इसके लिये जनादेश नहीं मिला है। 

अजीब स्थिति हो गयी है। जिसे सबसे ज्यादा सीटें मिली हैं उसके पास बहुमत नहीं है और जो दल कट्टर विरोधी  थे वे चुनाव के नतीजों की घोषणा के कुछ ही घंटों में एक जुट हो गये। इससे भी अलग , जिसे मुख्य मंत्री बनाये जाने की बात थी उस पार्टी के पास सबसे कम सीटें थीं। अब इसके बाद विवाद कि राज्यपाल किसे बुलाएं सरकार बनाने के लिये। इस पूरे नाटक में नैतिकता कहीं दिख नहीं रही थी। आम चुनावल में एक साल से भी कम समय बचा है और कर्नाटक के नाटक ने कई अंतदृष्टि प्रदान की है। पहली कि किसी भी तरह जीतने का मोदी - शाह का गठबंधन अभी भी सक्रिय है। जाति प्रथा का अभी भी बोलबाला है। यही नहीं, इससे कांग्रेस कों सीखना होगा कि जहां भी ततरफा मुकाबला हो वहां अपना महानता का भाव त्याग कर  उसे क्षेत्रीय पार्टी से पहले ही गठबंधन कर लेना चाहिये। यही नहीं इस चुनाव ने बताया है कि अगर सभी दल एकजुट हो जाएं तो भाजपा को धूल चटाई जा सकती है। 

 भारतीय राजनीति में नैतिकता के लिये कोई जगह नहीं हे। टगर कोइं जीत जाता है तो भ्रष्टाचार कोई मामला नहीं है। अब इस चुनाव से और उसके बाद होने वाले नाटक से किसने क्या सीखा यह तो समय ही बतायेगा, लेकिन इस नाटक के झटके अभी कई दिनों तक महसूस होंगे।  

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