चुनाव के दौर में निंदा का बहाना
चुनावों की सरगर्मी में लोगों के दिमाग में अनुकूल धारणा कायम करने के लिये कोई कसर नहीं चेड़ा जाता है। लेकिन जब विकास और प्रगति के मामले में कहने के लिये कुछ नहीं होता है तो राजनीतिक विरोधियों पर कीचलड़ उछाला जाना शुरू होता है। जबकि कोई पार्टी सीधी टिप्पणी नहीं कर सकती है या निजी व्यक्तियों और यहां तक कि मीडिया को भी इसके लिये इस्तेमाल नहीं कर सकती है तो निंदा में उलझ जाती है। हालांकि कई टीवी चैनल हैं जो या तो पार्टी का प्रत्यक्ष समर्थन करते हैं या परोक्ष रूप से समर्थन करते हैं। अब चूंकि कुख्यात रेड्डी ब्रदर्स के मित्रों और परिवार के आठ सदस्यों को मैदान में उतारने के पार्टी के फैसले के पीछे के इरादे पर सवाल उठाया जाने लगा है और इसके समर्थक इसे बचाने की कोशिश में जुट गये हैं। बीएस येदियुरप्पा को पार्टी ने भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण पहले अस्वीकार कर दिया था, अब उन्हें व्यापक रूप से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार समझा जाने लगा है। येदियुरप्पा की ताकत घटती दिख रही है और उनके प्रतिद्वंद्वी, रेड्डी भाइयों ने चुनाव लड़ने के लिए टिकटों का एक हिस्सा मांगा है। ऐसे लांछित उम्मीदवारों के मामले में यह स्वाभाविक है कि लोग भ्रष्टाचार के बारे में भाजपा पर उंगली उठायें। यह स्सिथति तब और गंबीर हो जाती है जब हुए कि पिछले कुछ महीनों में, कई कॉर्पोरेट कर्जदार (घोटालेबाज पढ़ें) देश से भाग गए हैं, या फिर सरकार की अक्षमता के कारण यहीं मजे में हैं। कोई राह न दिखने पर बीजेपी के समर्थक अन्य दलों पर उनकी विफलताओं को लेकर शोर मचा रहे हैं। मिसाल के तौर पर, विजय माल्या को सामने रख कर एक टीवी चैनल ने कांग्रेस सोशल मीडिया के प्रमुख, दिव्य स्पंदाना के नाम के आगे भगोड़ा कॉर्पोरेट सम्मान का विशेषण जोड़ दिया। 2016- 18 में देश में भुखमरी पर लिखी टिप्पणी पर एक प्रबुद्ध पाठक (परम भक्त पढ़ें ) ने कह दिया कि यह तो कांग्रेस का इतिहास है। आई पी एल की टीम रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के ब्रांड एंबेसडर होने पर, प्रचारित किया गया कि यह कांग्रेस पार्टी को शर्मिंदा कर देगा, क्योंकि इसके सोशल मीडिया प्रमुख ने "वित्तीय आतंकवादी" के साथ संबंध बनाए हैं। हालांकि , इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया गया कि वह "वित्तीय आतंकवादी" कर्नाटक से राज्यसभा के लिए एक स्वतंत्र उम्मीदवार था, और वह जीता इसलिये था कि उसे बीजेपी समर्थित जे डी (एस) ने समर्थन दिया था। यही नहीं कांग्रेस उम्मीदवार टी वी मारुति को बाहर रखने के लिए बहुत से "अतिरिक्त वोट" के साथ, बीजेपी ने माल्या का समर्थन करने का फैसला किया था। यही नहीं , एक विख्यात स्तम्भकार ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के विरुद्ध अपमानजनक और अमानवीय शब्दों का उपयोग करने के अलावा, बहुत घृणास्पद भाषा में स्पंदना के चरित्र पर सवाल उठाया। यह विडंबनापूर्ण है कि एक व्यक्ति जो मानवाधिकारों के लिए जुझारू होने का दावा करता है उससे अपेक्षा की जाती है कि वह राजनीतिक स्पेक्ट्रम के आधार पर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों में सक्रिय नेतृत्व और संवाद की संस्कृति को बढ़ावा देगा पर वह निंदा के काम में जुट जाता है। कितना हास्यास्पद है कि हमारे लोकतंत्र का जनाजा जिस वक्त 8 साल की बच्ची की लाश से होकर गुजर रहा था , राम की आंखें नम हो गयीं थीं, तिरंगा शर्मसार हो गया था, जो किसी की आंख ता तारा था वह एक उधड़ी हुई ओर नोची हुई लाश बन चुकी थी और एक तरह से हमारे दौर की हकीकत बयान कर रही थी। ऐसी घटना के अपराधी को बचाने लिये दलीलें दी जा रहीं थीं कि यह रोहिंग्या आतंकियों की करतूत है। चुनावों की सरगर्मी में कई चीजों को अनदेखा किया जा सकता है पर ऐसे में लोगों के चरित्र पर कीचड़ उछालने के उदाहरण बहुत कम पाये जाते हैं। इसके लिये बहस को बढ़ावा दिया जाना चाहिये निंदा की प्रक्रिया को हतोत्साहित करना चाहिए।
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