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Tuesday, May 15, 2018

हकीकत के खिलाफ जंग

हकीकत के खिलाफ जंग

कर्नाटक चुनाव के कई मायने लगातार खुल रहे हैं। इसका राजनीतिक नतीजा क्या होगा और क्या होना चाहिये यह यहां बहस का मुद्दा नहीं है बल्कि बात है उस चुनाव के लिए  प्रचार में प्रधानमंत्री के भाषणों का समाज ओर उनके भक्तों के सोच पर प्रभाव का। बेशक प्रधानमंत्री देश का ओर उस देश में गुजर रहे वक्त का वह अगआ होता है। इसलिये उसकी हरबात का समाज पर प्रभाव पड़ता है। अब जरा कर्नाटक चुनाव के प्रचार अबियान में प्रदाानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों का विश्लेषण करें तो दंग रह जायेंगे तथा यह सोचने लग जायेंगे कि हम किस काल में सांस ले रहे हैं। आप सोचेंगे कि क्या यह 2018 है या फिर 1957 के नेहरू काल में। क्या हमसे उम्मीद की जाती है कि उस काल में जो हुआ उस आधार पर हम वोट डालें या फिपर सोंचें कि क्यों नहीं डालें। क्या हम इस बात पर सोचें कि नेहरू ने भगत सिंह से मुलाकात की थी या नहीं या नेहरू ने जनरल करियप्पा को बेइज्जत किया था अथवा नहीं। ... ओर क्या हम उस काल की घटनाओं पर यह फैसला करें कि वोट ​किसे देंगे या आज के हालात के आधार पर? हकीकत के आधार पर या हकीकत के आभास के आधार पर वोट डालें।वक्त के हाकिम द्वारा देश की निवासियों पर सच्चाई के खिलाफ एक जंग थोपने की कोशिश इसे माना जायेगा। पिछली सदी में एक फ्रांसीसी दार्शनिक हुआ था ज्यां बॉदरी उसने एक सिद्धांत प्रतिपादित किया था - साइमुलक्रा एंड साइमुलेशन। इस सिद्धांत में बॉदरी ने सच्चाई, प्रतीक और समाज के सम्बंधों की व्याख्या की है। बॉदरी ने इसके लिये एक आख्यान पेश किया हे कि एक राजा ने अपने साम्राज्य का एक विशाल नक्शा बनवाया। बेहद विशाल था वह। इतना विशाल कि एक बार कोई उसे देख ही नहीं सकता था। नतीजा यह हुआ कि जनता उसी नक्शे के ख्याल में डूबी रहती थी और साम्राज्य डूब गया। आज पूरी दुनिया में यही चल रहा है कि शासक वर्ग गढ़े हुये बिम्बों , विकृत हकीकतों, सोचे समझे गये फौजी हमले तथा अन्य मनोवैज्ञानिक कार्रवाइयों के जरिये एक नये छद्द विश्व में जीने के लिये और उस दुतिनया के रिवाजों को मानने के लिये बाध्य किया जाता है। इसका सब्से सटीक उदाहरण रामायण में सीताहरण का आख्यान है जिसका अंत एक संस्कृति के विनाश से होता है। जंगल का वातावरण, सीता की सुरक्षा ओर इसमें सोने का हिरण। राम तय नहीं कर पाये कि हिरण सोने का नहीं हो सकता ओर वे उसके भ्रम में फंस गये। यहां मौलिक कारण है कि लोगों के सोचने समझने की क्षमता को नियंत्रित करना ओर फिर उन्हें अपने लक्ष्य की ओर प्रवृत करना। यह वैश्विक फिनोमिना है। आज के जमाने में इसका औजार ​मीडिया है। जो एक आभासी सत्य का सृजन करता है। अच्छे दिन आयेंगे के वायदे से आरंभ हुआ यह प्रयास आज देश में हकीकत के खिलाफ एक जंग के रूप में बदल गया है। इसमें जनता का पहला कर्तव्य है कि वह सच के संधान का प्रयास करे। क्योंकि अपने देश की सम्प्रभुता , एकता , अखंडता और स्वतंत्रता को कायम रखने के लिये यह जरूरी है। 

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