भारत अमीर बन सकता है बशर्ते…….
2014 के चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री ने कहा था कि अगर वह जीत जाते हैं तो विदेशों में जमा भारतीयों का काला धन वापस ले आएंगे और इससे हर परिवार को 15 लाख रुपए मिलेंगे। जब वे सत्ता में आए तो इसकी मांग शुरू हुई और उन पर दबाव पड़ने लगा तो एक दिन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि वह एक जुमला था। आज मोदी जी फिर चुनाव के लिए जनता के सामने जाएंगे और हो सकता है उनसे यह बात पूछी जाए। मोदी जी शायद ही इसका जवाब दे पाएंगे लेकिन अगर गहराई से देखें तो इसका जवाब है। भले ही बहुत भारतीय गरीब है और कुछ अमीर भी है लेकिन यह सुनकर हैरत होगी की भारत एक अमीर देश है यह एक रहस्य है यह सभी भारतीय जितना भी जानते हैं उससे ज्यादा अमीर है। यह बात दूसरी है कि भारतीयों को मालूम नहीं दौलत कहां है। भारतीयों को दौलत के बारे में बताना होगा कि वह कहां है और उस पर किसका अधिकार है। सरकार जताती है वह दोनों उसकी है लेकिन सच तो यह है जो जनता की संपत्ति है और उसे लौटा दिया जाए तो हर भारतीय अमीर हो जाएगा देश की गरीबी समाप्त हो जाएगी और देश समृद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ने लगेगा। इसे आप धन वापसी कर सकते हैं। भारतीय इस संपत्ति को पानी का बराबर का हकदार है। यह धन है भूमि, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम और खनिज। यह धन 50 लाख रूपए प्रति परिवार आता है। धन वापस किये जाने का कार्यक्रम यदि आरम्भ हो तो प्रति परिवार एक लाख रुपया हर साल मिल सकता है । मोदी जी अगर इस दौलत को लौटाने का काम 2019 के चुनाव से पहले शुरू कर देते हैं तो यकीनन पूरा मुल्क उनके साथ खडा हो जाएगा और वे भारत में खुशहाली लाने वाले प्रधान मंत्री के तौर पर इतिहास में जाने जायेंगे । लोग कहेंगे मोदी जी ने सही मायने में देश वासियों को अमीर बनाया ।
अब यहाँ प्रश्न आता है कि वह धन कहाँ है ? वह धन है हमारी सार्वजानिक संपत्ति। इसपर हमारा सार्वजनिक हक है , सामूहिक मालिकाना है । इसमें सरकार के कब्जे वाली जमीन , सरकारी कारखाने सड़क , रेलवे इत्यादि शामिल हैं । इनका कुल मूल्य एक हज़ार 340 लाख करोड़ है । यह सार्वजनिक धन जनता का है यह सरकार का नहीं है । इसपर राज नेताओं और अफसरों का कोई हक नहीं है । सरकार केवल इसकी हिफाज़त करने वाली है , रक्षक है । इसका लाभ आम जनता को मिलना ही चाहिए । सोचें , यदि आपके दादा जी ने बैंक में कुछ रुपया जमा किया । कानूनन उसपर और उससे मिलने वाले व्याज पर आपका और आपके परिवार का हक है । अब अगर बैंक वाले उस धन के उपयोग पर बैंक वाले हील हुज्जत करें तो आप विरोध करेंगे या नहीं?
अब इस सार्वजानिक धन से प्रति परिवार हर साल एक लाख रुपये मिलें तो लाखों गरीब परिवारों को सहायता मिलेगी और वे लाभकारी काम काज कर अर्थ व्यवस्था की मुख्य धारा में शामिल हो सकेंगे । यह एक चक्रीय व्यवस्था होगी । खुशहाली बढ़ने से उपभोग में वृद्धि होगी और ऐसी सूरत में माल और सेवाओं की मांग बढ़ेगी । इससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे और फिर आय में इजाफा होगा और जब आय बढ़ेगी तो उपभोग बढेगा । सरकार इस लिए नहीं होती कि वह सार्वजानिक दौलत पर कब्जा कर ले , बल्कि उसका काम क़ानून व्यवस्था और देश की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है । इस काम में खर्च होता है और उसके लिए सरकार टैक्स लेती है । टैक्स के एक बड़े हिस्से का इस्तेमाल “लोकलुभावन उपहार” देने में किया जाता है या कहें वोट के लिए घूस के रूप में किया जाता है । बाकी जो धन बचता है वह घाटे में चल रहे व्यापार के लिए उपयोग किया जाता है । सरकार कोई व्यापारी नहीं है , इसे व्यापार से क्या मतलब? लेकिन ऐसा नहीं होता । क्योंकि ऐसा करने से उन्हें कोई लाभ नहीं है जो इस समय उसपर कब्जा किये बैठे हैं । ये हैं सत्ता में आसीन नेता और अफसर । ऐसा होना उनके निजी स्वार्थ के लिए अच्छा नहीं है । अब फिर बात आती है उस 15 लाख वाले वादे पर । कोई भी कह सकता है कि यह नया शिगूफा उसी पुराने वाले का अगला संस्करण है । लेकिन यहाँ एक बात काबिलेगौर है कि वह धन विदेशों से आना था और यह अपने देश में मौजूद है ।
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