राहुल को सतर्क रहना होगा
कल शाम तक सोशल मीडिया पर एक मजाक चल रहा था कि दिल्ली एकमात्र ऐसा राज्य था जहां भाजपा तीन विधायकों के बावजूद सरकार बनाने में नाकाम रही थी।लेकिन शाम ढलते- ढलते कहानी बदल गयी। बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा 104 विधायकों के बावजूद विधान सभामें बहुमत प्रमाणित कनरने के पहले इस्तीफा दे दिया। कर्नाटक के राजनीतिक नाटक में भाजपा की इस दुर्गति का राष्ट्रीय राजनीति पर बहुत बड़ा होगा। हां, खुद को अपराजेय समझने वाली भाजपा को यह शर्मिन्दगी उठानी पड़ी करिश्माई नरेंद्र मोदी-अमित शाह जोड़ी को इस स्थिति ने घुटनों पर ला दिया है। अलबत्ता , राहुल गांधी की अगुआई वाली कांग्रेस ने 2014 के बाद यह दुर्लभ क्षण देखा है। लेकिन कांग्रेस ने यह ससमझ लिया अब विपक्ष अपने जश्न पर रोक लगाये और जनता के लिये कुछ अच्छा करे तो उसका भला हो सकता है। क्योकि विपक्ष बनाम- भाजपा का यह मुकाबला अभी " डेविड बनाम-गोलियाथ " जंग बनी हुई है और भाजपा अभी भी पूरे विपक्ष के मुकाबले ज्यादा शक्तिशाली है। कर्नाटक में राजनीतिक नाटक अभी खत्म नहीं हुआ है और जल्द खत्म होने वाला भी नहीं है। कर्नाटक के प्रभावों पर और चर्चा करने से पहले, पहले उस संभावित राजनीतिक परिदृश्य को भी देख लें जो आने वाले दिनों सामने आ सकता है। यह अभी मालूम नहीं है कि यह कोई चाल तो नहीं है क्योंकि निश्चित रूप से कोई नहीं जानता कि क्या भाजपा ने जानबूझ कर 75 वर्षीय येदियुरप्पा के घोटाले से छुटकारा पाने के लिए यह किया था। मोदी और शाह देश के अबतक के सबसे अच्छे चुनावी योद्धा हैं। यह मानना थोड़ा कठिन है कि जो दिख रहा है वही हुआ होगा। यही नहीं बीजेपी और आरएसएस के भीतर से भी आवाजें आ रही थीं कि कर्नाटक में अपनी छवि के मूल्य पर सरकार ना बनायें।
यही नहीं , मोदी और शाह ने येदियुरप्पा को शपथ ग्रहण से दूर रखा और यह सुनिश्चित किया कि भाजपा के मुख्यमंत्री या केंद्रीय नेता ने समारोह में भाग नहीं लिया। यह सोचा भी नहीं जा सकता है कि मोदी और शाह जैसे चुस्त राजनेता इस बात को भांपने से से चूक गए होंगे कि अगर भाजपा बहुमत साबित कर भी देती है तब भी यह विजय बदनामी भरी होती और आम चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना होता। अब बाती है कि भाजपा ने इतना फासला आखिर तय क्यों किया? तो, यह अपने चारों तरफ मौजूद अड़चनों को दूर करने का प्रयास था । अब भाजपा आने वाले हफ्तों और महीनों में राज्य स्तर पर पार्टी के संघर्ष का नेतृत्व करने के लिए कर्नाटक में एक नया नेता ला सकती है, लेकिन आगामी लोकसभा चुनावों में कर्नाटक से अधिकतम सीटें जीतने का भी लक्ष्य है। कर्नाटक में लोकसभा में 28 सीटें हैं। इस तर्क से, येदियुरप्पा नौसिखुआ हैं पर शायद बीजेपी नहीं। कांग्रेस-जेडी (एस) गठबंधन के लिए आगे की राह समतल नहीं है। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा संभावित तौर पर जो करना चाहती थी वह नहीं कर सकी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल वाला द्वारा यद्यियुप्पा को बहुमत साबित करने के लिए दी गयी 15 दिनों की मोहलत को काफी कम कर दिया था। लेकिन भाजपा चुप नहीं बैठेगी और इस बार वह निशाना लगा कर हमला करेगी। संक्षेप में कहें तो यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस-जेडी (एस) सरकार को बहुमत साबित करने के लिए यह काफी कठिन कार्य होगा। कांग्रेस-जेडी (एस) सरकार के शपथ लेने के बाद " रिसॉर्ट राजनीति " खत्म हो सकती है, लेकिन दोनों पार्टियों को अभी भी अपने जमात को जोड़े रखना मुश्किल होगा। उन्होंने, आखिरकार, आज एक छोटी सी लड़ाई जीती है। युद्ध अभी भी चल रहा है। उन्हें विधान सभा में अपना बहुमत साबित करना होगा।
येदियुरप्पा ने जेडी (एस) नेता और भावी मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी से कहा : "प्रिय कुमारस्वामी जी, मैं एक लड़ाकू हूं और मैं अपनी आखिरी सांस तक लड़ूंगा।" कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का भाव अब अनिवार्य रूप से बढ़ जाएगा। कर्नाटक में राहुल गांधी को दोतरफा जिम्मेदारी हो गयी। पहली कि वे इस बात पर नजर रखेंगे कि पार्टी की एकता बनी रह और दूसरे कि यह एकता आमचुनाव तक कायम रहे। सबसे बड़ा श्रेय यह है कि राहुल गांधी के सबसे बुरे आलोचकों को भी उन्हें यहश्रेय देंगे कि उन्होने पार्टी को नई आशा और शक्ति को नयी ताकत दी है। लेकिन कांग्रे को भाजपा को कम करके आंकना नहीं चाहिये। मोदी के नेतृत्व में भाजपा अभी भी कांग्रेस से बहुत आगे है।
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