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Friday, August 31, 2018

नोटबंदी का नाटक

नोटबंदी का नाटक
"मित्रों! कल रात से देश में चलने वाले सभी 1000 और 500 के नोट रद्दी के टुकड़े में बदल जाएंगे और  आतंकियों को  सीमा पार से मिलने वाली  मदद  समाप्त हो जाएगी और आतंकवाद ध्वस्त हो जाएगा।" इसी घोषणा के साथ देश की अर्थव्यवस्था मैं हाय हाय मच गई। ए टी एम के सामने लगी सर्पीली कतारों से लाशें निकलने लगीं और सरकार सफलता के नए-नए आंकड़े गढ़ने लगी। "जगत" रो रहा था और "भगत" कीर्तन गा रहे थे। बुझते चूल्हे और  पेट की सुलगती आग को तरह तरह की कहानियां सुनाई जा रही थीं। नोटबंदी की असफलता से  गुस्साई जनता रिजर्व बैंक पर अपना गुस्सा उतार रही थी । रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन को इस लिए हटा दिया गया क्यों वे नोटबंदी की आलोचना कर रहे थे। उन्होंने साफ -साफ कहा था कि यह बिना सोचे समझे निर्णय लिया गया है। नए गवर्नर उर्जित पटेल आए और उन्होंने बैंकों में वापस आए 1000 और 500 के नोटों को गिनकर जनता को बताया कि जितने नोट चलन में थे उनके 99.3 प्रतिशत वापस आ गए। रिजर्व बैंक के अनुसार 8 नवंबर 2016 से पहले 500 और ₹1000 के लगभग 15.41 लाख करोड़ रुपए मूल्य के नोट चलन में थे जिनमें 15.31 लाख करोड़ के नोट वापस आ गए हैं। रिजर्व बैंक ने यह भी बताया है बाजार में नोटों का चलन पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 37.7 प्रतिशत बढ़ा है । 31 मार्च 2018 बाजार में 18.03 लाख करोड़ रुपए के नोट मौजूद थे वहीं पिछले वर्ष इसी अवधि में बाजार में 13.10 लाख करोड़ के नोट थे। एक तरह से नोटबंदी की सारी कसरत बेकार है और यह भी साबित हो गया कि मोदी सरकार ने जो महत्वकांक्षा पाली थी वह भी गलत थी।
    काले धन का खौफ दिखाकर सत्ता में आने वाली सरकार कितनी गलत थी यह नोटबंदी के फेल होने से पता चलता है। इससे साफ जाहिर होता है कि देश में इन नोटों की शक्ल में कोई काला धन नहीं था या अगर था तो सरकार उसे निकाल नहीं पाई। कुछ लोग यह कहते हैं कि यह काले धन को निकालने की कोशिश नहीं थी बल्कि नेताओं के काले धन को सफेद करने की साजिश थी । इसकी मिसाल  गुजरात के उस सहकारी बैंक से दी जा सकती है जिसके  डायरेक्टर खुद अमित शाह हैं । उस बैंक में नोटबंदी के दौरान बहुत बड़ी संख्या में नोटों की अदला बदली हुई और मजे की बात यह है कि इसकी जांच भी नहीं करवाई गई । ऐसा क्यों हुआ ? 
   फिलहाल जो रिपोर्ट आई है उसके आधार पर इस तर्क को बल मिलता है  कि सरकार यह कहती चल रही है कि बैंकों ने उसे सहयोग नहीं किया या उनकी व्यवस्था फेल हो गई यह बहाना या दोषारोपण सही नहीं है । नोटबंदी के  दौरान सोशल मीडिया में "भगत पार्टी" जितना कुछ कह रही थी वह शायद  भूल गए होगी , लेकिन सरकार को जनता के समक्ष यह सफाई देनी पड़ेगी कि उसने ऐसा कदम क्यों उठाया ? कितनी सोचनीय बात है कि सरकार ने नोटबंदी के असफल होने के बारे में अभी तक कुछ नहीं कहा है, कोई स्वीकारोक्ति उसकी तरफ से नहीं आई है। आम जनता को जो भी जानकारी मिली है वह रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के जरिए मिली है। जनता देख रही है कि ना आतंकवाद की कमर टूटी है और ना डिजिटल लेनदेन बहुत ज्यादा बढ़ा है।
     रिजर्व बैंक ने एक चौंकाने वाली जानकारी भी दी है कि 2017- 18 मई 5. 22 लाख मूल्य के  नकली नोट  पकड़े गए हैं। इनमें ₹500 के 1.16 लाख और 1000 के 1.3 लाख नोट भी शामिल हैं। इस दौरान 100 और ₹50 के नोट भी नकली पाये जा रहे हैं। हालांकि, यह पुरानी बात है कि ये नकली नोट विकास को धीमा कर सकते हैं या अनौपचारिक क्षेत्र को हानि पहुंचा सकते हैं। सबसे ज्यादा रोजगार निर्माण के क्षेत्र में हैं खासकर जो अकुशल मज़दूरों के लिए। यह क्षेत्र बुरी तरह प्रसभवित हुआ है और बहुत बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए हैं।इनका क्या होगा?
     इससे कई स्थितियों बिल्कुल स्पष्ट हो रही है । पहली कि, यह उम्मीद ही गलत थी कि बड़ी संख्या में ब्लैक मनी है जो बैंकों में वापस नहीं आएगी फिर खोज खोजकर काला धन निकाला जाएगा। ऐसा लगता है कि इसका मुख्य कारण ही गलत बताया गया। योजना  थी कि काले धन के रूप में जो  राशि मिलेगी यानी जो काला धन आएगा उसे केंद्र को सौंप दिया जाएगा । यह तो हुआ ही नहीं । दूसरा कि सरकार अघोषित धन को बैंकों से बदलने वालों को पकड़ नहीं सकी।
रिजर्व बैंक की इस घोषणा के बाद भी मोदी सरकार नए-नए तर्क दे रही है। वित्त मंत्री अरुण जेटली कह रहे हैं कि  नोटबंदी का उद्देश्य अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाना था। उनका कहना है इसके बाद से आयकर दाताओं की संख्या बढ़ी है। लेकिन अर्थव्यवस्था की मंदी के बारे में उनका कुछ कहना नहीं है । सरकार के जुमले से जिस अर्थव्यवस्था से 107 करोड़ रुपए बाहर निकल गए उसका क्या हाल होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है । कांग्रेस ने मोदीजी पर निशाना साधा है और पूछा है कि क्या इस तरह के विध्वंसक कदम के लिए सरकार देश से माफी मांगेगी? कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने मोदी जी पर झूठ बोलने का स्पष्ट आरोप लगाया है और कहा है कि 2017 को स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने कहा था कि तीन लाख करोड़ रुपए वापस आ रहे हैं क्या इस झूठ के लिए वे माफी मांगेंगे।
     बेशक नोटबंदी से थोड़ा फायदा हुआ है। जैसे कैशलेस लेन-देन का चलन बढ़ा है।  करेंसी के रूप में बचत भी बढ़ी है ,जो बताती है किन लोगों में अभी भी नोटों के प्रति लगाव है । वैसे कैशलेस लेन-देन भी एक साजिश ही थी।  सरकार ने देखा कि नोटबंदी फेल कर रही है तो उसने इसे कैशलेस लेनदेन के प्रोत्साहन से जोड़ दिया।  कैशलेस लेनदेन  कितना सफल हुआ है  यह बात  रिजर्व बैंक ने पहले ही बताई है।  रिजर्व बैंक ने बताया था कि नोटबंदी के दौरान जितने मूल्य के नोट बंद किए गए थे उससे ज्यादा मूल्य के नोट जारी किए गए हैं। 
    सरकार को नोटबंदी के कारण उत्पन्न समस्याओं को समाप्त करने की दिशा में सोचना चाहिए। जैसे ₹1000 के नोट के बदले ₹2000 के नोट का चलन शुरु करने से कठिनाइयां बढ़ीं हैं। सरकार ने इन्हें कम करने की कोशिश तो की है लेकिन अभी बहुत बाकी है। अर्थव्यवस्था पर आघात अक्सर बहुत लाभ नहीं पहुंचाते हैं । नोटबंदी के नकारात्मक पक्ष पर प्रकाश पड़ने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके अन्य सिपहसालार इस पर बात नहीं कर रहे हैं। वरना, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में नोटबंदी को एक मुद्दा बनाया गया था और 56 इंच सीना फैलाकर मोदी जी कहते थे कि जिन लोगों ने लाइनों में कष्ट उठाया है उन्हें बहुत लाभ मिलेगा और दूसरी बात जो कहते थे कई राजनीतिक पार्टियां रातोरात कंगाल हो गयीं। दोनों बातें गलत साबित हुईं। गरीब खुद को ठगा हुआ सा महसूस कर रहा है। यहीं नहीं  इससे  राष्ट्रीय वित्त व्यवस्था को भी आघात लगा है । 500 और ₹2000 के नए नोटों की छपाई में 7,965 करोड़ रुपए खर्च हुए जो अब तक की सबसे बड़ी राशि है। इस खर्च से क्या मिला समझ में नहीं आ रहा है और बड़े मूल्य के नोटों को काले धन के रूप में जमा करना भी आसान हो गया है।

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