सी बी आई बनाम सीबीआई
सी बी आई के अंदरूनी झगड़े की हांडी चौराहे पर फूट गयी है और पूरा देश इस तमाशे को देख रहा है। यहां हर नागरिक यह जानना चाह रहा है कि देश में कानून का राज और संस्थाएं कैसे चल रहीं हैं। सीबीआई के नंबर एक और नंबर दो की लड़ाई से एक बात और खड़ी होती है कि आखिर नंबर एक वाले साहब किस तरह के मामलों की जांच करते थे और नंबर दो वाले साहब अपना कैसा दखल चाहते थे । नंबर एक यानी निदेशक आलोक वर्मा और नंबर दो राकेश अस्थाना ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। क्या यह भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों में पैसा खाने की अफसरशाही का धंधा चल रहा था या चुनाव के पहले कुछ शिकार पकड़ने का सियासी गोरखधंधा चल रहा था। चूंकि मोदी जी ने यह दिखाया था भ्रष्टाचार और कालाधन के खिलाफ देशव्यापी अभियान चल रहा है और अब दिख रही है तहखाने की हक़ीक़त। दूसरी बात है कि मोदी जी की सरकार की राजनीतिक पूंजी जिसे वह अपना सावधि जमा समझती थी उसका क्या होगा? सरकार की पूरी राजनीतिक पूंजी इस घटना से खतरे में आ गयी है । जनता यह जानना चाहती है कि क्या इसी तरह राजनीतिक लक्ष्य हासिल किए जाते हैं?
जनता का ध्यान इस झगड़े से हटाने के लिये सरकार कई सनसनीखेज कदम उठा रही है। सरकार कहीं यह तो नहीं बताना चाहती कि हमारी संस्थाओं के झगड़े पर मजा लेने वालों जरा हमारा पावर तो देखो। एजेंसियों ने देश भर में तहलका मचा दिया है। ई डी ने विगत गुरुवार को बंगलोर में एमनेस्टी इंटरनेशनल के दफ्तर पर छापा मारा। इसपर विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून के उल्लंघन का आरोप है। यही नहीं आयकर विभाग ने तमिल नाडु और आंध्रप्रदेश में खनन से जुड़ी लगभग 100 कंपनियों पर छापा मारा। इनपर आरोप है कि वे समुद्री किनारों से रेत के गैरकानूनी धंधा करती हैं और इससे प्राप्त धन का अन्य व्यापारों में उपयोग कर और कालाधन का उपार्जन करती हैं। ई डी ने काले धन को सदफेड बनाने के एक मामले में पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम के विरुद्ध अभियोग पत्र दाखिल कर दिया है और दावा है कि इस मामले में उसके पास पूरा सबूत है। यही नहीं है पी ए बी से दो अरब डॉलर का घोटाला करने वाले नीरव मोदी की 255 करोड़ रुपयों सम्पति हांगकांग में कुर्क करने का दावा किया है। नीरव मोदी की अबतक 4744 करोड़ की संपत्ति कुर्क की जा चुकी है। ऐसा लग रहा है कि एजेंसियां दम लेने के मूड में नहीं हैं।
दूसरी तरफ सी बी आई का झगड़ा और तीखा होता जा रहा है। निदेशक आलोक वर्मा के निवास के सामने खुबिया ब्यूरो के चार लोग पकड़े गए। उनपर आरोप है कि वे वर्मा की निगरानी कर रहे थे जकब्कि वर्मा को छुट्टी पर भेज दिया गया है। उनकी जगह नागेश्वर राव को कार्यकारी निदेशक नियुक्त किया गया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का कहना है कि वर्मा राफेल सौदे की जानक्सच करने वाले थे इसलिए यह सब हड़बड़ी में किया गया। सी बे आई के प्रवक्ता ने इस तथ्य का खंडन किया है। इसे लेकर और भी कई थ्योरीज हैं लेकिन जो लोग पुलिस को समझते हैं उन्हें मालूम है कि सी बी आई के अफसर मूलतः पुलिस वाले होते हैं और सैद्धान्तिक तौर पर पुलिस को सियासत से दूर रहना चाहिए पर हक़ीक़त है कि पुलिस वाले व्यापक रूप में राजनीति से प्रभावित हैं। यही नहीं पुलिस भ्रष्टाचार के लिए बदनाम है। अधिकांश पुलिस वाले अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए राजनीतिक आका को खुश रखने में लगे रहते हैं और जो ऐसा नहीं करते वे कई तरह के परोक्ष और प्रत्यक्ष दंड भुगतते हैं। चुनाव के पहले ऐसी गुटबाजियां बहुत बढ़ जातीं हैं। जिस पार्टी के जीतने की सम्भावचना होती है उनके नेताओं को कोई नाखुश नहीं करना चाहता। वैसे सभी अफसर अपनी अपनी गोटी सेट करने में लगे रहते है। सबका अपना - अपना आकलन होता है। इसी में तू-तू मैं- मैं होने लगती है। इसमें किसी को भी भ्रष्टाचार के मामलों में सच खोजने की इच्छा नहीं होती। इसलिए सी बी आई में अभी जो कुछ हो रहा है वह स्पष्ट रूप से 2019 के चुनाव से जुड़ा है। यहां बाईबिल न्यू टेस्टामेंट की वह पंक्ति याद आती है - क्विड एस्ट वेरिटास यानी सच क्या है?