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Sunday, December 2, 2018

2019 के चुनाव में क्या है दांव पर

2019 के चुनाव में क्या है दांव पर

विगत साढे चार वर्षों में एक बहुत अच्छी बात देखने को मिली कि   मुखौटे उतर गए। अब इस पर कोई सवाल नहीं रहा कि सत्तारूढ़ दल केवल विकास के लिए है। हमने देखा कि विकास हिंदुत्व का एक परिच्छेद है। विख्यात इतिहासकार ए रोजर ग्रिफिन ने कहा है कि " राष्ट्रवाद का क्रांतिकारी स्वरूप सभी सामाजिक और राजनीतिक ऊर्जा को पतन के हालात हो रोकने में दगा देता है ,ताकि राष्ट्रीय पुनर्जन्म को हासिल किया जा सके।" फिलहाल , समाज को भाजपा के विचारक जो स्वरूप दे रहे हैं वह कुछ ऐसा ही है। वह प्रति क्रांतिकारी है।  ऐसी स्थिति में राष्ट्रवाद, परंपरा  धर्म ,   असमानता,  लगातार शोषण तथा  भारतीय समाज के  स्पष्ट अंतर्विरोधों पर पर्दा डालने के काम  में लगा दिया जा रहा है। वरना क्या बात थी कि उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतने के बाद पार्टी ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के पद पर बैठा दिया? भारतीय जनता पार्टी के लिए विकास और हिंदुत्व साथ साथ चलते हैं। उसका विश्वास है कि आर्थिक विकास मजबूत राष्ट्र की रचना के लिए जरूरी है ताकि वह राष्ट्र  दुनिया में अपनी जगह बना सके। विगत 12 सौ वर्षों की गुलामी के इतिहास मैं ऐसा नहीं हो सका था । यह सर्वथा अलग मामला है कि मोदी सरकार में इस तरह के परिवर्तन करने की क्षमता है या नहीं है और क्या विपक्षी दल ने अब तक अनगिनत गलतियां की हैं । अतएव एक तरफ तो हम विकास के पूर्वी एशियाई मॉडल के अनुकरण की कोशिश कर रहे हैं, खासकर चीनी मॉडल की । इसीलिए   मोदी जी ने सहकारी संघवाद के मॉडल  नकल की है। यह चीनी नीति है कि वह हर क्षेत्र को ऐसा स्वरूप देती है कि निवेश में वह एक दूसरे का मुकाबला करे । पूर्वी एशियाई देश अपने तीव्र विकास की घड़ी में बिल्कुल निरंकुश थे इसलिए वे वर्गीय हितों से ऊपर उठकर राष्ट्रकेंद्रित विकास के मॉडल को लागू कर सके। मोदी सरकार ने भी देश के अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक अर्थव्यवस्था में बदल देने की कोशिश की,खासकर निर्माण क्षेत्र की सफाई के  प्रयास में दिवालिया कानून लागू किया गया। इसका मकसद था कि शेल कंपनियों को खत्म किया जा सके। पूरे देश को नोटबंदी के बाद कतार में खड़ा होने के लिए बाध्य करना भारत पर से एक मृदु राष्ट्र का तमगा का हटाने की कोशिश थी। आजादी के बाद से भारत पर यह तमगा लगा हुआ है।
       दूसरी तरफ, हिंदुत्व समर्थक गिरोहों ने मतभेद रखने वालों और अल्पसंख्यकों पर जुल्म ढाना शुरू किया। संस्थाओं भीतर से एक नई राह प्रारंभ हुई और सत्तारूढ़ दल के विचारों को मानने वालों को उच्च पदों पर आसीन किया कराया गया ।  जिन्होंने सत्ता की आलोचना  की उन्हें राष्ट्र विरोधी और शहरी नक्सल करार दे दिया गया।  इस बात को सोशल मीडिया पर जमकर उछाला गया और कहा गया इन्होंने गौरव की दिशा में भारत के बढ़ते कदम को रोकने की कोशिश की है। लेकिन इन नीतियों के कारण बड़े व्यवसाई चाहे देसी हों या विदेशी मोदी जी के साथ हैं। हाल की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017- 18 में कांग्रेस ने जो चंदा उगाहा है उसे 20 गुना ज्यादा भाजपा ने इकट्ठा किया। बड़े व्यवसाई  घरानों के लिए भूमि ,श्रम और पर्यावरण के कानूनों को ढीला कर दिया गया।  उन्होंने बाजार की हिस्सेदारी से प्राप्त लाभ का स्वागत किया। इससे अनौपचारिक क्षेत्र को जो आघात लगा उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। यहां तक की सामाजिक कार्यक्रमों में भी कुछ तो केवल दिखाऊ है और कुछ ऐसे हैं जिसमें निजी हिस्सेदारी की बहुत गुंजाइश है । मोदी जी पूंजीवाद के अगुआ हैं और अगर संपत्ति जमा करने की प्रक्रिया से जनता को विमुख करने में हिंदुत्व सफल हो गया तो फिर कहना ही क्या है!
       यह छोटे व्यापारिक क्षेत्र खासकर अनौपचारिक क्षेत्र के लिए एक अलग मसला है । भाजपा का परंपरागत वोट बैंक जीएसटी तथा नोट बंदी से बहुत प्रभावित हुआ है, लेकिन यह रूढ़ीवादी वर्ग है और यह उदार मूल्यों को नहीं अपना सकता। इससे जाति, नस्ल और भाषा से आबद्ध एक समुदाय हमारे सामने खड़ा मिलता है। हमारे देश की सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक समस्या है कि रोजगार के अच्छे अवसर कैसे तैयार किए जाएं और उसमें अतिरिक्त कार्य बल को कैसे जोड़ा जाए, खासकर ऐसे समुदाय को जो खेती से नहीं जुड़े हैं।
        दस प्रतिशत लोगों का एक समुदाय जो देश की तीन चौथाई दौलत का मालिक वह समावेशी विकास की बात करता है और भाजपा निर्वाचन के लिए हिंदुत्व और राम मंदिर को बनाने की बात करती है ।आने वाला लोकसभा चुनाव हमें बताएगा की हमारे देश की जनता को पूंजीवाद और हिंदुत्व के घालमेल से भरमाया जा सकता है ।

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