सज्जन कुमार का फैसला
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में भड़के सिख दंगे में सज्जन कुमार की भूमिका के मामले में कोर्ट ने सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। सिख दंगे के 34 वर्षों के बाद यह फैसला आया है। फिर भी, इसका स्वागत है । क्योंकि इससे संकेत मिलते हैं कि न्याय में भले देर हो लेकिन न्याय होता है। भाजपा ,वामपंथी दल और आम आदमी पार्टी ने इस फैसले का स्वागत किया है जबकि दूसरी तरफ कांग्रेस ने कहा है कि इसका राजनीतिक लाभ नहीं उठाया जाना चाहिए। कांग्रेस प्रवक्ता ने इस संदर्भ में 2002 के गुजरात दंगे का हवाला दिया। भाजपा नेता अरुण जेटली ने कहा कि "यह निर्णय न्याय के विलंबित होने का प्रमाण है। " उन्होंने ट्वीट किया कि "चौरासी के दंगों में जिन लोगों को हानि हुई थी उनके प्रति न्याय को कांग्रेस ने दफन कर दिया । एन डी ए ने जवाबदेही और श्रेष्ठता को बनाए रखा है। कांग्रेस और गांधी परिवार 1984 के दंगे के पाप को भुगतते रहेंगे। " भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि दंगे में कांग्रेस की भूमिका पर किसी को भी संदेह नहीं रह गया। कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता भड़काऊ नारे लगाते हुए तोड़फोड़ करते रहे ,महिलाओं के साथ कुकर्म करते रहे और लोगों को मौत के घाट उतारते रहे लेकिन इस मामले में किसी को सजा नहीं हो सकी। जबकि कई आयोग बिठाए गए और कई प्रत्यक्षदर्शी भी थे । अमित शाह ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया । उन्होंने 2015 में एक विशेष जांच दल का गठन किया, जिसने 1984 के दंगों की जांच की । खुशी मनाने के इस क्रम में अरुण जेटली और अमित शाह दोनों न्याय के सही अर्थ का अध्ययन करने से चूक गए । दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के पृष्ठ 192 और 193 में कहा गया है कि भारत के बटवारे के समय जो दंगे हुए वह देश में एक सामूहिक यादगार बन कर रह गये। वही हाल 84 के सिख दंगों का है। अदालत ने कहा कि मुंबई में 1993 में ,गुजरात में 2002 में ,कंधमाल, उड़ीसा में 2008 में, मुजफ्फरनगर में 2013 में या कुछ इसी तरह के दंगों में सामूहिक हत्या के तरीके पुराने ही थे। वही पुराना तरीका कि अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाता है और जिस राजनीतिक संगठन का वर्चस्व होता है उनके लोग हमले करते हैं तथा उन्हें कानून लागू करने वाली एजेंसियों से मदद मिलती है। जो अपराधी सामूहिक अपराध करते हैं उन्हें राजनीतिक तरफदारी हासिल है और वह पकड़े जाने या सजा पाने से बच निकलते हैं।
इस फैसले में 2002 में गुजरात के दंगों सहित देश के सभी बड़े सांप्रदायिक दंगों का जिक्र है और इसमें कहा गया है कि सब जगह की तरह यहां भी जिन्हें दंगे का निशाना बनाया गया वे अल्पसंख्यक समुदाय के थे और जिन्होंने हमले किए वे एक ऐसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े थे जिसका देश में वर्चस्व था । हमलावर सजा पाने से बच गए, क्योंकि उन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था।
ऐसा 2002 में भी हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और अमित शाह पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक थे। इसमें जो सबसे ज्यादा दहलाने वाला है वह कि इस घटना के 9 महीनों के बाद अमित शाह राज्य के गृह मंत्री बना दिए गए और इस कारण वे राज्य पुलिस के प्रभारी भी हो गए। अदालत की जिस न्याय पीठ ने यह फैसला सुनाया उस में न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति विनोद गोयल शामिल थे । उन्होंने आपराधिक कानून में बदलाव की बात की। उन्होंने यह भी कहा कि इस कानून में भी बदलाव होना चाहिए जिसमें मानवता के खिलाफ कोई अपराध हो या सामूहिक हत्या हो। न्यायाधीशों ने कहा कि कानून में छोटे-छोटे पेंच होते हैं उससे सामूहिक हत्या के अपराधी बच निकलते हैं । यहां सवाल है कि वर्तमान राजनीतिक दल या सत्तारूढ़ दल जजों की इस बात को सुनेंगे और कानून को ऐसा बनाएंगे जो भविष्य के दंगों को भड़काने वालों को सजा दे सके। यदि ऐसा होता है तो वह राजनीतिक नेता को एक अभूतपूर्व साख वाला बना देगा। इसके लिए कोई तो ऐसा हो जिसमें मानवता के प्रति सहानुभूति और चेतना हो और वह भारत को इस भय से मुक्त करा दे। भारत ऐसे नेता की प्रतीक्षा कर रहा है जिसकी चेतना कभी भी समझौता ना करे।
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