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Thursday, December 13, 2018

कांग्रेस और देश के हिंदू मतदाता

कांग्रेस और देश के हिंदू मतदाता

एक जमाने में यह जुमला था कि मुस्लिम वोट के लिए सरकार सब कुछ करती है । मुस्लिम वोट बैंक के नाम से एक मुहावरा बन चुका था। लेकिन 2014 में वह मिथक टूट गया और यह साल दक्षिणपंथी ताकतों की भारी विजय के साल के रूप में इतिहास में दर्ज हो गया। दक्षिणपंथी ताकतें केवल राजनीतिक नहीं थीं  बल्कि एक विचार भी था कि हिंदुओं को उसका रक्षक चाहिए। हिंदू इस देश में बहुमत में है। इसके बाद ,साल दर साल चुनाव में देखा गया की हर राज्य में इसी आदर्श या इसी  विचार की विजय होती रही।  आज भी उनका एजेंडा वही है हालांकि वह विकास के नाम पर वोट मांग रहे थे और मांग रहे हैं। 2014 से धार्मिक ध्रुवीकरण होता गया और हर चुनाव में एक नारा लगता था कि  "हिंदू खतरे में।"  मुख्य विरोधी दल  कांग्रेस को हिंदू विरोधी बना दिया गया। यह एक ऐसे देश में बड़ा अजीब लग रहा है जहां हिंदू बहुत ज्यादा बहुमत में हैं, लेकिन दुर्भाग्य से यह बात देश के हिंदू मतदाताओं द्वारा स्वीकार कर ली गई है। अब सवाल यह है कि कौन लोग खतरे में हैं और किससे खतरे में हैं। एक विशाल आबादी को एक छोटी सी आबादी  का खतरा है ! ऐसा नहीं हो सकता। फिर वह किस से डरते हैं। वास्तविकता तो यह है कि आज हिंदू और मुसलमान दोनों समुदाय डरे हुए हैं । एक दूसरे से भयभीत हैं। यह एक ऐसे देश में हो रहा है जो संस्कृति से संविधान तक धर्मनिरपेक्ष है। क्या यह समुदाय आपस में जो डर रहे हैं वह सही है ? नहीं, वे सियासी एजेंडे के कब्जे में हैं।  सोशल मीडिया झूठा भय पैदा कर रही है। इस तरह के दुष्प्रचार के कारण भी हैं। ऐसी बातें बहुत आसानी से फैल जाती हैं और लोग इसे नजरअंदाज भी नहीं करते। मसलन, अरसे से इस देश के हिंदू खुद को हाशिए पर पा रहे हैं लोगों में भ्रम आम हो गया है कि अल्पसंख्यकों की समस्याओं पर सरकार ध्यान देती है और बहुसंख्यक समुदाय  की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। सच तो यह है कि आज भी इस बात को कोई समझना नहीं चाहता हिंदू गलत विचारधारा के शिकार हो रहे हैं। वह ऐसा केवल इसलिए कर रहे हैं क्यों कि मानते हैं कि केवल एक पार्टी उनके हितों के बारे में ध्यान रखती है।  यही कारण है कि देश के  हिंदू किसी और पार्टी के खिलाफ हैं खासकर कांग्रेस के।
       हालांकि यह सुनने और कहने में बड़ा अच्छा लगता है फिर राजनीति और धर्म को अलग-अलग रखना चाहिए।  भारत जैसे धार्मिक देश में जहां सबको अपने धार्मिक कृत्य करने की आजादी है वहां यह  असंभव है। ऐसे बयान बहुत सही हैं जब कोई एनजीओ या वामपंथी देते हैं । क्योंकि उन्हें चुनाव से ज्यादा लेना देना नहीं होता है ।जो बात भी उन्हें उच्च नैतिक प्लेटफॉर्म पर स्थापित करती है वह उसी बात को लेकर गाने लगते हैं, ताकि लोग उन्हें इंसानियत का रक्षक मानें। लेकिन भारत में कोई भी गंभीर दल जिसे  चुनाव लड़ना है इस तरह की अव्यवहारिकता नहीं कर सकता है ,क्योंकि किसी भी राजनीतिक दल को पूरा देश चलाना होता है ना कि एक एनजीओ या वेबसाइट या न्यूज़ चैनल। लोग अपनी सरकार से शिक्षा और रोजगार की अपेक्षा करते हैं लेकिन साथ ही यह भी मानते हैं कि उन्हें सम्मान और उनकी आस्था और मूल्यों को इज्जत मिले। लेकिन आज क्या है? आज की राजनीतिक स्थिति पर जरा ध्यान दें।
       आज भाजपा ने हिंदुओं के मुख्य मसले भांप लिया है और उसे भावनात्मक रूप में फैला रखा है तथा खुद को एक हिंदू पार्टी के रूप में स्थापित कर लिया है।  हिंदुओं और धर्मनिरपेक्षता के बारे में कांग्रेस की प्रतिबद्धता खोखली नजर आ रही है। एक दल जो 60 वर्षों तक शासन करता रहा आज उसका इतिहास विचारधारा का इतना कायल हो चुका है और कमजोर हो चुका है। कांग्रेस को भारत विरोधी और हिंदू विरोधी के रूप में भाजपा समर्थक सोशल मीडिया पेश कर रही है और उसे हाशिए पर ला रही है। जवाब में कांग्रेस बहुत कुछ नहीं कर पा रही है। एक के बाद एक चुनाव आ रहे हैं और यह पराजित हो रही है। कांग्रेस हार कर धर्म और जाति के ध्रुवीकरण की प्रक्रिया में लग गई है।  कांग्रेस तथा इसके गठबंधन के "मित्र" सारा गुस्सा ईवीएम पर उतार रहे हैं। एक जमाने में अत्यंत ताकतवर कांग्रेस पार्टी की हालत आज यह हो गई है कि वह वैचारिक रूप से विपरीत या अलग क्षेत्रीय दलों से उन की शर्तों पर गठबंधन करने को मजबूर हो रही है और तब भी कुछ हासिल नहीं हो रहा है। कांग्रेस  सब कुछ कर रही है सिवाय आत्मनिरीक्षण के । वह नहीं समझ पा रही है कि 60 वर्षों तक लोगों ने एक मजबूत राजनीतिक दल कांग्रेस को वोट दिया ना कि किसी अति वामपंथी एनजीओ को। बेशक व्यक्ति पूजा की बात चलती है और फैलाया  भी जा रहा है लेकिन जहां तक समाजशास्त्र का विषय है आज की राजनीति किसी नेता के स्वरूप पर नहीं चलती। मोदी की लहर वस्तुतः संघ परिवार का काम था एक तरह से उसका ग्राउंडवर्क था । संघ ने जहां घर घर जाकर लोगों को समझाया वहीं कांग्रेस की पहुंच केवल दिल्ली के लुटियंस तक थी। एक जमाने में कांग्रेस सेवा दल लोगों से संपर्क का एक ताकतवर उपकरण हुआ करता था वह आज लगभग खत्म हो चुका है। राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि अति वामपंथी विचारधारा हिंदू बहुल देश में विजय नहीं दिला सकती। जब मोदी के अज्ञात समर्थक वैचारिक बातों के खिलाफ गंदी बात या गंदी भाषा का इस्तेमाल करते हैं तो कांग्रेस झट से कहती है यह भाजपा की करतूत है। जब कांग्रेस पार्टी हिंदू त्योहारों और हिंदू रीति-रिवाजों से किनारा करती है तो यह कैसे समझती है कि भाजपा इसका लाभ नहीं उठाएगी। यह कांग्रेस के लिए अत्यंत चिंता का विषय है कि भाजपा राहुल गांधी की शिनाख्त पर उंगली उठा रही है और पार्टी सफाई देने में लगी है। आज राहुल गांधी का गोत्र ,उनका धर्म, उनके पूजा पाठ के तरीके  यह सब खबर है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? क्या भाजपा? नहीं भाजपा नहीं है। कांग्रेस ने खुद ही या फंदा बनाया है और आज उससे निकलने की कोशिश में है। भारत वह देश है जहां  राजीव गांधी ने एक विदेशीनी से शादी की और कभी भी उनसे यह सवाल नहीं पूछा गया। उल्टे उन्हें पूरा सम्मान और स्नेह मिला। उनके पिता पारसी थे लेकिन उनसे कभी यह नहीं कहा गया कि वह अपना हिंदुत्व प्रमाणित करें । शाहबानो मामले में बेशक राजीव गांधी पर आरोप लगे कि गलत फैसला करके उन्होंने पक्षपात किया है। लेकिन, कभी भी उनके हिंदुत्व और भारतीयता पर उंगली नहीं उठी। लेकिन अब क्या बदल गया है?
       साधारण सा उत्तर है। हालात नहीं बदले हैं कांग्रेस बदल गई है । एक तरफ तो वह क्षेत्रीय स्तर पर या जातिगत राजनीति में फंस गई है और दूसरी तरफ इसने अपने कुछ वामपंथी विचारधारा के सदस्य को वैचारिक रूप से पार्टी पर हावी होने के लिए मौका दे दिया है। राजीव गांधी की मौत ने कांग्रेस पार्टी को वैचारिक रूप से खोखला कर दिया और वहां केवल विकृत धर्मनिरपेक्षता की बात चलती रही। अपने देश  में धर्मनिरपेक्षता वैसी नहीं है जैसी विदेशों में है।  कांग्रेस से जुड़े अति वामपंथी नेता पश्चिम के विचार से भी एक कदम आगे बढ़ते दिखाई पड़ रहे हैं और उन्होंने एक बहुमत वाले समुदाय के रस्मो रिवाज को नीचा दिखाने के लिए धर्मनिरपेक्षता का आधार बनाया है। वे यह समझते होंगे कि इस तरह की मूर्खता उन्हें समाज के विकास के लिए संघर्ष करने वाले कार्यकर्ता के रूप में स्थापित कर देगी । लेकिन ये लोग कांग्रेस  और उसके वोट पर आघात पहुंचा रहे हैं।
         उदाहरण के लिए राहुल गांधी मंदिरों में जाते हैं और कांग्रेस पार्टी के स्थानीय नेता उसे प्रचारित कर लोगों का मन जीतने की कोशिश करते हैं कि कांग्रेस उनकी भी पार्टी है। अचानक नेशनल हेराल्ड में हिंदू रीति-रिवाजों और हिंदू धार्मिक ग्रंथों की आलोचना करता हुआ एक लेख प्रकाशित होता है और उसे कांग्रेस विरोधी सोशल मीडिया चारों तरफ प्रचारित कर देती है। यह बात भाजपा को मौका दे देती है और वे  कांग्रेस को हिंदू विरोधी और दोहरे चेहरे वाले दल के रूप में पेश करते हैं। कांग्रेस को यह समझना चाहिए। अगर वही पार्टी है जिसने आजादी के लिए कुर्बानियां दी और जो पार्टी गांधी नेहरू  और पटेल की थी वह उन्हीं के सिद्धांतों पर कायम रहे ,ना कि अति वामपंथी विचारों को ग्रहण करे। अपने मध्य मार्ग के चरित्र दोबारा हासिल करने के लिए कांग्रेस को अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यक समुदाय दोनों के बारे में सोचना होगा, बोलना होगा और उनकी बातें सुननी होंगी। उसे भारत के विविध मत चरित्रों को समझना होगा और उसमें संतुलन बनाना होगा। यही नहीं कांग्रेस को पार्टी के भीतर भी वैचारिक तौर पर शासन करना होगा । किसी का भी लोकतंत्र और कोई भी कुछ कहे इससे कांग्रेस के संगठन को सहायता नहीं मिल सकती, बल्कि इसे पार्टी के भीतर भी लोकतांत्रिक चुनाव लड़ना होगा और जीतना होगा। संक्षेप में कहें तो कांग्रेस को राजीव गांधी और इंदिरा गांधी के वक्त में लौटना होगा। अति वामपंथी गिरोह कभी भी कांग्रेस का शुभचिंतक नहीं रहा। कांग्रेस में शामिल वामपंथियों द्वारा बहुमत मजाक उड़ाना केवल दक्षिणपंथी ताकतों को मजबूत करने में सहयोगी होगा। कांग्रेस बड़ी-बड़ी गलतियां करके विजयी होने का स्वप्न नहीं देख सकती। हिंदुओं को भावात्मक तौर पर लुभाया जा रहा है। बहुत से वामपंथी विचारधारा के लोग हैं जो कांग्रेस का कंबल ओढ़ कर कांग्रेस का विरोध कर रहे हैं। पार्टी को इनसे सचेत रहना होगा। इन्हें रोकना होगा। यहां नेहरू की एक बात याद आती है "असफलता तभी होती है जब हम अपने आदर्श ,अपना लक्ष्य और अपने सिद्धांतों को भूल जाते हैं।"

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