2019 में शायद ही काम आए मोदी का इंद्रजाल
तलवारें खिंच चुकी हैं और बारूद फटने को तैयार है। गांधी परिवार के अपने शहर प्रयागराज में 16 दिसंबर को नरेंद्र मोदी का भाषण जमा नहीं और लोगों की जो प्रतिक्रिया थी वह कुछ ऐसी थी कि " मोदी जी अब बहुत हो चुका।" उधर, हिंदी भाषी प्रदेशों के तीन राज्यों में विजय के बाद कांग्रेस विशेषकर राहुल गांधी ने राफेल पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हर कोण पर हमला शुरू कर कर दिया है। वह इतना तो जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मामले से लोगों का ध्यान नहीं हटा सकेगा। कांग्रेस के रणनीतिकार यह मानते हैं कि राफेल नरेंद्र मोदी की छवि को मलिन कर सकता है इसलिए वे इसे छोड़ेंगे नहीं। दूसरी तरफ अपनी रक्षा में नया तर्क पेश करने के उद्देश्य से मोदी ने कांग्रेस पर दो तरह का हमला करने का फैसला किया । पहला उस दिन विजय दिवस पर उन्होंने कांग्रेस पर यह कह कर हमला किया कि उसने देश की सुरक्षा से समझौता किया। मोदी जी ने रक्षा की सामग्री खरीदने में विलंब का मसला उठाया। कारगिल युद्ध के दौरान बुलेट प्रूफ जैकेट का अभाव केवल इसलिए था कि 2009 तक कांग्रेस ने उसकी खरीद के लिए कोई आर्डर नहीं दिया था और इस कमी को पूरा करने के लिए एनडीए सरकार ने 2016 में 50 हजार जैकेट्स खरीदने का ऑर्डर दिया और अब मेक इन इंडिया के तहत स्थानीय उत्पादकों से जैकेट खरीदे जा रहे हैं । मोदी जी ने जीप कांडसे लेकर बोफोर्स और अगस्ता हेलीकॉप्टर्स तक के कांग्रेसी जमाने के रक्षा सौदे घोटालों की चर्चा की। इलाहाबाद का उदाहरण देते हुए मोदी जी ने कांग्रेस पर निशाना साधा कि इसने न्यायपालिका पर हमले किए हैं । यद्यपि वे कुंभ मेला से जुड़े एक समारोह में शामिल होने के इलाहाबाद आए थे लेकिन उन्होंने बड़ी चालाकी से इस बात को जोड़ दिया कि देश का सबसे पुराना हाई कोर्ट इलाहाबाद में होने के कारण यह बहुत ही महत्वपूर्ण न्यायिक केंद्र है। मोदी जी ने न्यायिक प्रणाली पर कांग्रेस के हमलों के रिकॉर्ड को सामने रखकर कांग्रेस की तीव्र आलोचना की । इसमें आपातकाल, केशवानंद भारती मामला और इंदिरा गांधी द्वारा जजों की प्रोन्नति रोके जाने का मामला भी शामिल था। उन्होंने लोगों को सावधान किया कि कांग्रेस लोकतंत्र का गला घोटने के लिए न्यायपालिका का उपयोग कर रही है और सरकार को फंसा रही है । एक तरह से भाजपा ने कांग्रेस के आरोप को उसी के सिर पर थोप दिया।
अब यह तो वक्त बताएगा की नरेंद्र मोदी बात बना कर हवा का रुख बदल पाते हैं या नहीं । लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद मोदी जी ने यह मान लिया है कि वह बात को ज्यादा तूल देकर सफल नहीं बना सकते हैं । भाजपा को भी मानना पड़ेगा की उसकी बात का असर कम हो रहा है और कांग्रेस को शाबाशी देनी होगी कि उसके रणनीतिकारों ने भाजपा को उसी के मैदान में धूल चटा दिया। लेकिन अभी खेल बाकी है और मोदी जी की ईमानदार नेता वाली छवि कायम है, चाहे राहुल जितना चिल्ला लें कि " चौकीदार चोर है।" इसी तरह मोदी जी को भी कांग्रेस के भ्रष्टाचार के इतिहास पर ही नहीं निर्भर रहना चाहिए । क्योंकि अगर जनता ने यह मान लिया होता कि कांग्रेस का शासन भ्रष्ट रहा है तो उसने उसे वोट नहीं दिया होता। मोदी और अमित शाह के समक्ष फिलहाल यह चुनौती है कि वह 2019 में जनता के समक्ष एक विश्वसनीय तथ्य रखें कि सरकार ने अपने वायदों को कहां तक पूरा किया। अच्छे दिन का प्रमाण अनुभूत होना चाहिए नाकी विभिन्न सरकारी विज्ञापनों के माध्यम से इसका ढिंढोरा पीटा जाना चाहिए और बताने की कोशिश की जानी चाहिए कि अच्छे दिन आ गए हैं।
भाजपा के जो कट्टर भक्त है उनके अलावा जितने भी लोग हैं वह इतने भोले भाले नहीं हैं कि मोदी जी के भयंकर प्रचार से प्रभावित हो जाएं, इसलिए यह जरूरी है कि मोदी जी और अमित शाह की जोड़ी इस बात की समीक्षा करे कि उसने गलती कहां की। पहली बात कि मोदी जी और अमित शाह दोनों यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि लोग विकास पर बात करते हैं। वह यह नहीं देखना चाहते हैं इसके भीतर क्या है । वह इस बात से कभी भी मुतमइन नहीं होंगे कि जो ढांचे हैं उन्हें पूरा होने में वक्त लगता है ।मोदी जी की सरकार अपने शासनकाल के पहले 2 वर्ष में परियोजनाओं के ढांचे को गतिमान नहीं कर सकी । अब यह बताना व्यर्थ है कि कितने किलोमीटर लंबी सड़क बन चुकी है। लोग तो यह जानना चाहेंगे कि उनके जीवन में क्या बदलाव आया है। उज्जवला और मुद्रा ऋण उन्हीं को प्रभावित करेगा जो इससे सीधे लाभ पा रहे हैं। किसी भी तरह से शहरी लोग इससे अलग हैं। उन्हें तो गैस के सिलेंडर की बढ़ी हुई कीमत ही परेशान कर रही है। एक योजना थी जो लोगों को मोदी जी के पक्ष में प्रभावित करती है वह थी प्रधानमंत्री आवास योजना। लेकिन इससे लाभ बहुत कम लोगों को हुआ और जिन लोगों को हुआ वही फकत मोदी जी के पक्ष में बात कर रहे हैं । यहीं नहीं भाजपा शासन के कुछ राज्यों में तो लोग केंद्र सरकार की योजनाओं को जानते ही नहीं है क्योंकि राज्य सरकारों ने उस पर अपना लेबल चिपका दिया है।
यही नहीं अगर महागठबंधन बन जाता है तो जातिगत समीकरण भाजपा के खिलाफ होंगे और अमित शाह की शह मात की कारीगरी बहुत कारगर नहीं होगी। यह सोचना कि फिर राम मंदिर विपक्ष को उड़ा देगा, एक ख्वाब है । कोई भी जोश - जुमला तब तक कारगर नहीं हो सकता जब तक लोगों को यह यकीन ना आए कि मोदी जी ने पिछले 5 वर्षों में कुछ गुणात्मक परिवर्तन किया है। यह सोचना भी अवास्तविक है कि मोदी कोई दूसरा चमत्कार करेंगे। भाजपा शासित सभी राज्यों को अगले चुनाव में किसी भी घटना से बचने के लिए तैयार रहना होगा तभी मोदी जी कुछ प्रभावशाली हो सकेंगे।
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