बुलंदशहर : हम वही करते हैं जो दुश्मन चाहता है
बुलंदशहर में जो हुआ वह उत्तरप्रदेश में असामान्य नहीं है और कभी असामान्य था भी नहीं। आंकड़े बताते हैं कि एक वर्ष में इस राज्य में 108 पुलिसकर्मी ड्यूटी के मारे गए। धार्मिक कलाबाजों के कारण उत्तर भारत जिसे "गो वलय" भी कहते हैं वह सदियों से विस्फोटक स्थिति वाला रहा है। यह गंगा-जमुनी तहजीब का पालना है किंतु कट्टरपंथी लीक पर चलने वाला राज्य है यह। यहां धार्मिक विस्फोट सरल है और चिंतन धारा मध्ययुगीन है। धर्म से जुड़ी छोटी-छोटी बातों से आग भड़क उठती है और लोग खून खराबे पर उतर आते हैं। यहां दंगों के लिए धर्म अचूक उपाय है और सदियों से रहा है। अंग्रेजों ने देर से ही सही लेकिन इन उपायों को आजमाना शुरू किया और अंत तक इसका लाभ उठाया। कारतूस में गाय और सूअर की चर्बी के उपयोग की अफवाह ने सिपाही विद्रोह को भड़का दिया। अंग्रेजों ने धर्म को हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दंगे करवाने के उपकरण के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
तवायफ की तरह यह अपनी गलतकारी पर पर्दा डाल देती है
सियासत दोस्ती पर मंदिर और मस्जिद का पर्दा डाल देती है
अंग्रजों ने भारतीयों को दो समूहों में विभाजित रखा और अधिकांश उत्तर भारतीय शहर हमेशा बाहें चढ़ाए रहते हैं। सद्भाव की बातों को वे मूर्ख बनाने वाली मानते हैं। एक दूसरे की आवश्यकता और निर्भरता का दबाव ही सद्भावना का मूल है । उनके सह-अस्तित्व ने उन्हें कुछ चीजें सिखाई जिसमें 'सहिष्णुता' शीर्ष त्याग है।
'सहिष्णुता' उदार पंथियों में एक पुण्य के रूप में बहु प्रचलित शब्द है। पर लोग वास्तव में इसकी परवाह नहीं करते हैं। सहिष्णुता से दुराव इनका मूलमंत्र है । सहिष्णुता में कोई आकर्षण नहीं बचा है। इसका मतलब संजय जाता है कि जुल्म के बावजूद सब कुछ सहन करना है। ये मानते हैं कि यदि 'सहिष्णुता' सबसे अच्छी है और हैम इसे अपनाते हैं तो हैम परेशानी में पड़ सकते हैं।
विभाजन ने सुनिश्चित किया कि दो राष्ट्र-सिद्धांत-प्रेमियों ने मुसलमानों के लिए अपना पाकिस्तान पाया। हिन्दू प्रकार के दो राष्ट्र-सिद्धांत-प्रेमी एक ऐसे देश में रह गए जो हिंदुओं के लिए नहीं था। बदले में, उत्तर भारत ने पंजाबियों में नए विस्थापित और उत्पीड़न की भावना को मजबूत किया । बड़े पैमाने पर, भारतीय भारतीय बने रहे। भारत भारत बना रहा, अगर आप यहां और वहां के मामूली दंगों की गिनती नहीं करते हैं।
उत्तर प्रदेश बना रहा उत्तर प्रदेश, संयुक्त प्रांत नहीं। आजादी और शिक्षा से दिमाग को स्वतंत्र बनाना था। लेकिन शिक्षा प्रणाली के नकली विचारधाराओं से समझौता और भ्रष्ट लोगों द्वारा प्रबंधित होने के कारण मस्तिष्क के विस्तार का कारण नहीं बन सकी । साक्षरता दर हालांकि बढ़ गयी । हमारे पास पढ़ने के बाद पर्याप्त साक्षर हो गए परंतु चिंतन के लिए पर्याप्त शिक्षित नहीं हो पाए । दशकों से, राजनीतिक योग्यता ने सुनिश्चित किया कि सांप्रदायिक विभाजन पर अंकुश रखा जाय। अब, राजनीतिक उदारता सांप्रदायिक विभाजन की मांग कर रही है और राजनीति एक खिलौना बन गयी है, एक इच्छित स्तर पर परेशानी पैदा करने और सामाजिक तनाव को बनाए रखने के लिए समर्पित संगठन हैं। व्हाट्सएप जैसे क्रांतिकारी सोशल मीडिया टूल्स ने अपने जीवन को आसान बना दिया है।इसके जरिये कुछ ही घंटों में समाज में उबाल लाया जा सकता है। आम चुनाव वास्तव में दूर नहीं है।पांच राज्य के चुनावों के परिणाम आने ही वाले हैं।
ये परिणाम तय कर सकते हैं कि कौन सा पक्ष सीना तान कर 2019 में प्रवेश करता है। भक्तों को डर है कि एक सार्वजनिक नाराजगी पहले से कायम प्रभामंडल को कम कर सकता है। इसका मतलब है कि ध्रुवीकरण तेज होगा। किसी समुदाय से इतनी दूरी बना लेना कि उसे मारना विधिसम्मत हो जाय यह नया रिवाज बनता जा रहा है। इतिहास में इसके उदाहरण हैं पर उसे यहां दोहराने की ज़रूरत नहीं है। भारत विश्व स्तर पर एक बड़ी छलांग के लिए तैयार है। भारत को कोई रोक भी नही सकता जब तक कि भारत खुद को रोक नहीं लेता। लेकिन दिक्कत यह है कि वह खुद ही अपनी राह में रोड़े अटकाता है।
भारत के दुश्मन पारंपरिक युद्धों में उससे हार गए हैं। चुनावों और दिमाग को प्रभावित करने की उम्र में, भारतीयों का शोषण करने के लिए उनके पास बहुत बड़ा हथियार है। वह हथियार सामाजिक है। कल्पना करें , भारत को विश्व स्तर पर अपने आर्थिक और भू-राजनीतिक नेतृत्व की साख को बनाने की बजाय अपनी गड़बड़ी को ठीक करने में की कोशिश करनी होगी।यही वह हमारा दुश्मन है।
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