सियासत का नया अंदाज
राज्य विधानसभाओं के चुनाव के परिणाम आ चुके हैं। आज ये परिणाम अपने आप में विचित्र हैं ,क्योंकि यह अगले साल होने वाले आम चुनाव का सेमी फाइनल कहा जा रहा है। लेकिन उससे भी ज्यादा यह भाजपा और राहुल गांधी के नेतृत्व में नए सज धज में या नए स्वरूप के कांग्रेस के बीच पहला मुकाबला है। राहुल ने कांग्रेस को एक हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी के रूप में बदल दिया है। गुजरात में उन्होंने इसको आजमाया भी है और यह चमत्कार कर गया। भाजपा वहां किसी तरह उबरी।
राहुल गांधी के इस नए तेवर में या कहें नए स्वरूप ने सबको हैरान कर दिया है। केंद्र में मोदी सरकार बनने के कई साल बाद उनका यह आक्रामक रूप देखा जा रहा है। कांग्रेस पार्टी इससे खुश है। राहुल के इस नए स्वरूप से कांग्रेस में जान आ गई है। यहां प्रश्न है कि राहुल की यह छवि उन्होंने खुद बनाई है या फिर किसी ने तैयार कर दी है। इसी सवाल में कांग्रेस का भविष्य छिपा हुआ है । लेकिन यह भी देखना होगा कि राहुल इस नए स्वरूप में कितने दिन सहज रह पाएंगे । वह इन दिनों अपनी प्रचलित छवि से अलग दिख रहे हैं। उनका हाव-भाव बदलाव हुआ है। उनके तेवर तीखे और आक्रामक हैं। इसके साथ ही यह भी प्रश्न है कि राहुल के तेवर ऐसे ही रहेंगे या बदलेंगे। यही नहीं ,जहां कांग्रेस की सरकार है उन राज्यों में राहुल के तेवर क्या होंगे? अगर वहां कांग्रेस हार जाती है तो क्या इसकी जिम्मेदारी राहुल स्वीकार करेंगे? सवाल तो कई है जिनके जवाब नहीं हैं।
मोदी जी कांग्रेस मुक्त भारत कोशिश में लगे हैं ,उधर राहुल गांधी ने नेहरू मुक्त कांग्रेस बना डाला। धर्मनिरपेक्षता के दिन अब लद गए। हालांकि राहुल के परनाना पूजे जाते हैं। अब राहुल एक हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी का मुकाबला कर रहे हैं और मोदी जी पर लगातार प्रहार कर रहे हैं। वे मोदी जी के हिंदुत्व पर भी सवाल उठा रहे हैं। अगर यह दुखदाई नहीं है हैरतअंगेज तो है ही ।
कैसी मशालें लेकर चले तीरगी में आप
जो रोशनी थी वह भी सलामत ना रही
मोदी इसे चुनौती मान रहे हैं। वह नेहरू और कांग्रेस के मामूली आर्थिक रिकॉर्ड को लेकर परेशान हैं। उन्होंने कांग्रेस को एक वास्तविक हिंदुत्व पार्टी के रूप में नहीं देखा है लेकिन हो सकता है उनके मतदाता इसको देखें। अब महत्वपूर्ण मसला है की मतदाता गोमूत्र को बढ़ावा देने वाले हिंदुत्व ब्रांड वाली कांग्रेस को वोट देंगे या उसे फालतू कह कर छोड़ देंगे। जब तक आम चुनाव नहीं होंगे तब तक यह पता नहीं चलेगा।
इस समस्त मसले के चारों तरफ एक अजीब विरोधाभास है। विश्व हिंदू परिषद चाहता है कि राहुल राम मंदिर का समर्थन करें। चूंकि, राजीव गांधी ने शिलान्यास कर इसकी शुरुआत की थी इसलिए हो सकता है कि राहुल गांधी समर्थन कर विहिप को मात दे दें। राज ठाकरे भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं कि उसने असदुद्दीन ओवैसी से हाथ मिला लिया है। राहुल गांधी कहते चल रहे हैं की टीआरएस और ओवैसी ने भाजपा से दोस्ती कर ली है। यही नहीं ,अगर कांग्रेस ओवैसी से किनारा करती है तो महागठबंधन के टूट जाने का भी खतरा है।
अब सवाल उठता है कि क्या भाजपा पूरी तरह जीत जाएगी या कांग्रेस उसके बहुमत में से कुछ छीन लेगी। आम चुनाव के परिणाम आए बिना इस बारे में कुछ भी कह पाना उचित नहीं होगा। आम चुनाव में क्षेत्रीय दल जैसे तेलुगू देशम पार्टी ,तृणमूल कांग्रेस, बीजू जनता दल, टीआरएस, एआईएडीएमके इत्यादि को एक पृथक गठबंधन बनाना होगा और उसे कांग्रेस से अलग होना होगा अगर वह चाहते हैं कि भाजपा से मुकाबला करें। हो सकता है की धर्मनिरपेक्ष वामपंथी दलों को अपने पक्ष में वे कर लें। उम्मीद की जा सकती है कि चुनाव में त्रिकोणात्मक संघर्ष होगा। एक तरफ भाजपा और एनडीए रहेंगे और दूसरी तरफ एक या दो नए गठबंधन होंगे। इनमें हिंदू राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस और क्षेत्रीय दल होंगे। राहुल गांधी के इस नए कांग्रेस के परिणाम स्पष्ट हैं। हम लोग सबरीमाला मसले को देख रहे हैं। सीपीएम को छोड़कर कोई भी राजनीतिक दल खास करके न तो भाजपा ना ही कांग्रेस चाहती है की सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू हो। अगर यह लोग अयोध्या मामले में भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को इसी तरह देखेंगे या उस के प्रति इसी तरह का बर्ताव करेंगे तो फिर संविधान का भविष्य क्या होगा? नए सियासत का यही अंदाज है। न संस्कृति ना इतिहास और ना ही संविधान की किसी को फिक्र है। देश एक अजीब दोराहे पर खड़ा है।
जम्हूरियत वह तर्जे हुकूमत है
जहां बंदे गिने जाते हैं तौले नहीं जाते
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