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Tuesday, December 11, 2018

कांग्रेस फिर खेल में शामिल

कांग्रेस फिर खेल में शामिल

कहां मोदी जी चाह रहे थे कांग्रेस मुक्त भारत यानी मैदान में अकेला खेलना चाहते थे, लेकिन विधानसभा चुनाव के परिणाम बता रहे हैं कि कांग्रेस फिर से खेल में शामिल हो गई है और लगता है कि वह खेल का परिणाम तय करने वालों में से बनने वाली है। अभी इस स्तंभ के लिखने तक संपूर्ण चुनाव परिणाम नहीं आए हैं लेकिन पूरे देश से जो रुझान आए हैं उससे ही लगता है कि भाजपा बुरी तरह पराजित हो गई है खास कर हिंदी भाषी प्रदेशों में और 2014 के बाद यह उसकी सबसे गंभीर पराजय है। उधर कांग्रेस हिंदी भाषी क्षेत्र में तेजी से उभर रही है तेलंगाना में और मिजोरम में  जैसी उम्मीद थी विपक्ष बहुत अच्छा नहीं कर पाया है ।   हिंदी भाषी क्षेत्रों में जहां भाजपा  का शासन था वह किले  उसके हाथ से निकलते नजर आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा पराजित हो चुकी है और मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस उसे परेशान करने की स्थिति में आ गई है। यद्यपि एग्जिट पोल में बताया गया था कि कांग्रेस राजस्थान में विजयी होगी और मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांटे की टक्कर होगी लेकिन छत्तीसगढ़ भाजपा के हाथ से फिसल गया। छत्तीसगढ़ में के 15 वर्षों से भाजपा का शासन था इस बार व्यवस्था विरोधी हवा ने उसे खत्म कर दिया। कांग्रेस के लिए बुरी खबर यह है कि पूर्वोत्तर भारत में उसका बिस्तर बंध गया। आखरी राज्य था मिजोरम वह भी उसके हाथ से निकल गया। वहां मिजो नेशनल फ्रंट सरकार बनाने की स्थिति में आ रही है। तेलंगाना में केसीआर के चंद्रशेखर राव की पार्टी राष्ट्र समिति सबको पीछे छोड़ चुकी है और वह सरकार बनाएगी।
        इसमें यानी जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए उनमें राजस्थान प्रमुख है ।  यहां मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे हवा थी । बेरोजगारी और किसानों की तकलीफ ने समाज के प्रमुख वर्ग को उनके प्रति नाराज कर दिया था। यही नहीं, कांग्रेस के पास राजस्थान में अभी भी मशहूर और लोकप्रिय नेतृत्व है। इसके पहले अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे ही। जबकि राजेश पायलट  और रमा पायलट के पुत्र सचिन पायलट भी वहीं के हैं और केंद्रीय मंत्री हैं । यही नहीं ,जब से पायलट राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हैं तब से वे पार्टी को मजबूत बनाने में लगे हुए हैं। इसके अलावा राजस्थान में ताकतवर राजपूत समुदाय के भाजपा के प्रति गुस्से को कांग्रेस ने अपने पक्ष में इस्तेमाल किया और साथ ही इसने यह भी प्रयास किया कि किसी दूसरी जाति समुदाय को नाराज ना किया जाए।
      भाजपा की यह दशा इसलिए हुई कि जो 2014 में  पहली बार मतदाता बने थे यानी 18 बरस के वोटर बने थे वे भाजपा के विजय के दूत थे उन्होंने ही आम चुनाव में और उसके बाद के चुनावों में इसे विजय दिलाई । लेकिन तीनों हिंदी भाषी प्रांत मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में इस बार जो पहली बार मतदाता बने हैं उन्होंने भाजपा के बदले कांग्रेस को वोट दिया । छत्तीसगढ़ में यह अंतर 10% ,राजस्थान में 9% और मध्य प्रदेश में 3% था । अब भाजपा को यह उम्मीद है कि जो पहली बार मतदाता बने हैं उनका मोहभंग राज्य सरकारों से हुआ है ना कि केंद्र में मोदी सरकार के कामकाज से। इन तीन राज्यों में किसानों की पीड़ा के कारण जो वातावरण बन रहा था उसके बारे में बहुत पहले से कहा जा रहा था लेकिन मोदी जी के भगत सुनने को तैयार नहीं थे और उल्टी-सीधी दलीलें  दिया करते थे। उन्होंने यह नहीं देखा कि किसानों ने दिल्ली और कई राज्यों की राजधानी में रैली की थी।  भाजपा ने इसे विपक्ष की करतूत कह कर खारिज कर दिया।  देशभर से प्राप्त खबरें बताती हैं कि खेती से जुड़े लोगों- मसलन किसान, खेतिहर मजदूर इत्यादि लोगों ने भाजपा के खिलाफ मतदान किया। यह विरोधी मतदान सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ में हुआ वहां खेतिहर मजदूर भाजपा से बहुत नाराज दिखे और उन्होंने कांग्रेस को समर्थन दिया। यही नहीं दलित और आदिवासियों ने भी बीजेपी से किनारा कर लिया। भाजपा इस समुदाय में प्रवेश करने के लिए बहुत परिश्रम कर रही थी। उत्तर प्रदेश में इन समुदायों के कुछ वर्ग ने भाजपा का समर्थन भी किया है। लेकिन जिन तीन राज्यों में चुनाव हुए वहां कांग्रेस ने इस समुदाय के अनुसार भाजपा से अच्छा काम किया । आंकड़े बताते हैं कि 43% दलितों ने कांग्रेस को वोट देने का संकेत दिया, जबकि 35% ने इशारा किया कि उन्होंने भाजपा को वोट दिया है। राजस्थान में यह अंतर 30% का था यहां इस समुदाय ने कांग्रेस को 54% और भाजपा को 24% वोट दिए जबकि छत्तीसगढ़ में यह अंतर 17% का था। राजस्थान में अनुसूचित जाति के लिए 33 सीटें छत्तीसगढ़ में 10 सीटें और मध्यप्रदेश में 35 सीटें आरक्षित है। जहां तक आदिवासियों का मामला है वे भी कांग्रेस की ओर झुकी नजर आए ।राजस्थान में आदिवासियों की 25 छत्तीसगढ़ में 29 और मध्य प्रदेश में 47 सीटें हैं
     वैसे पार्टी के नेताओं की बात सुनकर ऐसा लगता है कि उन्हें इस पराजय की चिंता नहीं है। उनका मानना है कि इसका असर लोकसभा चुनाव पर नहीं पड़ेगा। देखना है कि भाजपा का यह आत्मविश्वास 2019 में क्या रंग लाता है। अभी बहुत वक्त बाकी है ।कांग्रेस को भी इस विजय के बाद काफी उम्मीदें हैं।

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