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Monday, April 27, 2020

कोविड-19ः एकाकीपन में मरते लोगों की पीड़ा

कोविड-19ः  एकाकीपन में मरते  लोगों की पीड़ा 

 देश में 24 घंटे में  कोरोना वायरस के  संक्रमितों  की संख्या बेतहाशा बढ़ती जा रही है और अब यह बढ़कर 26917 हो गई है जिसमें 1975 नए मामले हैं। देश में इससे मरने वालों की संख्या 826 हो गई है।  यही नहीं ,अगर पूरी दुनिया की बात करें तो दुनिया भर में कोविड-19 से 28 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हुए हैं और दो लाख से ज्यादा लोग मारे जा  चुके हैं।  यही नहीं जो लोग खोकर जा रहे हैं उनके बारे में भी डब्ल्यूएचओ ने एक नोट में कहा है इस बात का कोई सबूत नहीं मिला जो लोग ठीक हो कर जा रहे हैं  उनमें एंटीबॉडी विकसित हो गया है और दुबारा संक्रमण नहीं होगा और वह सुरक्षित हैं।   ज्यादातर अध्ययन बताते हैं  जो लोग ठीक हो गए हैं उनकी बॉडी में एंटीबॉडी है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके शरीर में एंटीबॉडी का स्तर कम है। इससे एक निष्कर्ष यह भी निकला कि  शरीर में रोग प्रतिरक्षा प्रणाली के भीतर मौजूद टी  सेल की भी संक्रमित  सेल से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।  अभी तक ऐसा कोई अध्ययन सामने नहीं आया है जिससे तस्दीक हो सके कि  किसी  वायरस की  एंटीबॉडी मौजूदगी इम्यून सिस्टम को आगे भी वायरस के संक्रमण से रोकने की क्षमता प्रदान करती है। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि एंटीबॉडी के प्रभावी होने को लेकर लैब टेस्ट की जरूरत है। इसका मतलब है एक खतरा भी खत्म और संक्रमण   से आक्रांत लोगों की संख्या अभी पूरी तरह खत्म नहीं होगी  तथा जब लोग इससे संक्रमित होंगे तो हो सकता है उनमें मौतें भी हों।

पूरी दुनिया में क्या हाल है इस पर विचार करने से पहले हम अगर अपने देश में मरने वालों की स्थिति पर सोचें तो दहलाने  वाले दृश्य सामने आएंगे।  सबसे बड़ी बात है जो लोग मौत के शिकार हो रहे हैं वे या तो क्वॉरेंटाइन में हैं या फिर आइसोलेशन में हैं। अपने घर वालों से दूर अनजान जगह पर अनजान लोगों के बीच मरना कितना हृदय विदारक हो सकता है इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। लोग आइसोलेशन में पड़े रहते हैं  उनमें से कुछ लोगों की मृत्यु हो जाती है।  मरने वालों से प्रेम  करुणा और सहानुभूति रखने वालों उनके पास पहुंचने नहीं दिया जाता है। डॉक्टर  यह नहीं बताते किस की मौत हुई है और कब हुई । बेशक  वे भी मनुष्य हैं और मरने वाले  के एकाकीपन की पीड़ा से  क्षुब्ध हो जाते हैं।  लोगों को एकाकीपन में मरने के लिए छोड़ देने के पीछे एक ही अवधारणा है  कि  आइसोलेशन और सोशल डिस्टेंसिंग के कारण  कोविड-19 का  प्रसार कम होगा।  हालांकि इसके बारे में  प्राप्त सबूतों  से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है  कि यह तरीका बिल्कुल सही नहीं है।  लोगों को एकाकीपन में मरने के लिए छोड़ देने के अलावा कई ऐसे भी तरीके हैं जिनसे आइसोलेशन और  सोशल  डिस्टेंसिंग को  बहुत हद तक कायम रखा जा सकता है। अगर परिवार का कोई बहुत करीबी आदमी या कोई बेहद प्रेम करने वाला अगर कोविड-19 के संक्रमण का जोखिम उठा  सकता  है  और बाद में  खुद को  सेल्फ  क्वॉरेंटाइन में रखने को तैयार हो जाता है तो कोविड-19 से मर रहे अपने  स्वजन या प्रेमी  के पास आखिरी समय में मौजूद  तो रह सकता ही है।  दरअसल अपने स्वजन  या प्रेम करने वाले को एकांत में मरने के लिए छोड़ दिया जाना हमारे समस्त नैतिक सिद्धांतों के विरुद्ध है।इससे कोई बहुत ज्यादा हानि नहीं हो सकती क्योंकि अपने किसी बहुत ही करेली व्यक्ति  को एकाकीपन में मरने के लिए छोड़ देने  से मानसिक स्वास्थ्य को भारी आघात  पहुंचता है।  किसी को मरने के लिए अकेले छोड़ दिया जाना या अजनबियों के बीच छोड़ दिया जाना  एक तरह से आत्म संप्रभुता पर आघात जाता है खास करके ऐसे समय में जब मरने वाले मरीज को सहानुभूति और अपनों के साथ की जरूरत होती है। यह मरने वाले व्यक्ति के प्रति न्याय के नैतिक सिद्धांतों को  भंग करता है।क्योंकि मरने के लिए छोड़ दिए जाने वालों में  बुजुर्ग लोग अधिकांश  हैं और उन्हें  अंतिम समय के आखिरी क्षणों में अकेले छोड़ दिया जाना अन्याय पूर्ण है। एक समाज के रूप में हम वृद्ध हत्या के दोषी हैं।

     एंड आफ लाइफ  नाम की  विख्यात चैरिटी संस्था की मैरी  क्यूरी ने अस्पताल वालों से अनुरोध किया है वे किसी की आखिरी समय में परिवार के निकटवर्ती लोगों को साथ रहने की अनुमति दें।  इसराइल में ऐसी व्यवस्था होने लगी है और सब जगह इसके अनुकरण की जरूरत है। यह एक तरह से नैतिक अनिवार्यता है। चिकित्सक और लेखक लिस्ट थॉमस ने लिखा है कि  आखिरी समय में स्पर्श हमारे भीतर ना केवल एक अनुभूति छोड़ जाता है बल्कि हमारे दिमाग में कुछ ऐसे निशान भी छोड़ जाता है जो बताते हैं कि कभी कोई था।  ऐसे  स्पर्श से मरने वाले के भीतर भी आखिरी समय में  एक खास किस्म का सुकून  रहता है। कोविड-19 के संक्रमण के इस दुखद  काल में  एक दूसरे से अलग होने की बाध्यता से बेहद ह्रदय विदारक स्थिति सामने आ रही है।  क्योंकि हम बचपन से देखते हैं स्पर्श इंसान की जरूरत है।  स्पर्श   मौन  की सबसे  मुखर भाषा है।   फ्रायड  अगर मानें तो” इंसानी त्वचा एक सोशल आर्गन और उसे स्पर्श किया जाना एक तरह से सामाजिक सूचना है। “ स्पर्श को पढ़ना बहुत कठिन है इसे केवल महसूस किया जा सकता है।” स्पर्श ऐसे ही एहसास के लिए महादेवी वर्मा ने  “लिखा तुम छू दो मेरे प्राण  अमर हो जाएं। “


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