पहले विश्व युद्ध के पूर्व यूरोप, अमेरिका और इनकी उपनिवेशों में जाने के लिए किसी तरह की वीजा या पासपोर्ट की जरूरत नहीं पड़ती थी। इसके बाद धीरे-धीरे हालात बदलते गए और दुनिया के सभी देशों ने खुद को समेट लिया, सीमाएं कठोर होने लगीं और दूसरे विश्व युद्ध के बाद हालात और बदल गए। आपसी संबंधों वाली एक दूसरे दुनिया पर निर्भर संस्थागत वैश्विक दुनिया का रूप बना पिछले 75 सालों के उतार-चढ़ाव के बाद भी यही व्यवस्था कायम रही। अब कोविड-19 जैसी महामारी का हमला यह सभी देशों में एक खास किस्म का युद्ध बन गया है। ऐसे में भारत में लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की व्यवस्था की। दुनिया के कुछ लोगों ने ,जो वैश्विक विचार का निर्माण करते हैं, भारत के इस कदम की आलोचना की है। जॉन्स हापकिंस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर स्टीव हैंकी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कदमों की आलोचना करते हुए कहा है कि यह फैसला बिना विचार के लिया गया। विदेशी अखबारों ने प्रोफेसर हैंकी इन विचारों को प्रमुखता से प्रकाशित किया। कोरोना वायरस से उत्पन्न यह महामारी एक तरह से पूरे विश्व की व्यवस्था को पहले की स्थिति में लाने की धमकी दे रही है। जैसी पहले विश्वयुद्ध के बाद यह दुनिया आत्म केंद्रित थी, सभी देश सत्ता समर्थक थे। कुछ राजनीति विज्ञानियों ने कोरोनावायरस के बाद ऐसी ही दुनिया उदय होने की बात कही है। इसमें सत्ता संकीर्ण राष्ट्रवाद में सिमटी की रहेगी। अर्थशास्त्री भूमंडलीकरण और मुक्त व्यापार की व्यवस्था के खत्म होने की बात कर रहे हैं। आखिर इतनी निराशा क्यों? महज 0.125 माइक्रो व्यास वाले एक वायरस के कारण ?शायद नहीं, दरअसल दुनिया के 2 सबसे शक्तिशाली देशों ने संपूर्ण विश्व के आत्मविश्वास को हिला दिया है। विचार इतिहासकार निएल फर्गुसन ने इस नई व्यवस्था को चीमेरिका कहा है। पिछले दशक के कुछ पहले चीन और अमेरिका ने आर्थिक विकास के संबंधों वाला एक नया मॉडल विकसित किया। कोरोना से उत्पन्न महामारी ने इसी मॉडल को काल्पनिक धारणा में बदल दिया। चीनी नेतृत्व ने पहले इस बीमारी को छुपाया जिससे यह पूरी दुनिया में फैल गया। वाशिंगटन के थिंक टैंक अमेरिकन इंटरप्राइज इंस्टिट्यूट के अनुसार चीन में संक्रमितों की कुल संख्या 29 लाख हो सकती है जबकि चीन की सरकार इसे 82 हजार बताती है। चीन का नजरिया दुनिया के प्रति तीन सिद्धांतों से निर्देशित होता है पहला है जीडीपी वादा है दूसरा है चीन को केंद्र में रखने का भाव और तीसरा है खुद को लेकर असाधारण क्षमता का बोध। यह तीनों भाव माओ के सिद्धांतों से निकले हैं। यहां सबसे दिलचस्प तथ्य यह है जो देश इस महामारी का डट कर मुकाबला कर रहे हैं वह एशियाई देश हैं, चाहे वह दक्षिण कोरिया हो या सिंगापुर या हांगकांग या ताइवान सबने समय से कारगर कदम उठाए। प्रोफेसर हैंकी के विचारों के विपरीत भारत ने लोकतांत्रिक सक्रियता का उदाहरण पेश किया। वैश्विक महामारी कोविड-19 के इस दौर में सरदार पटेल को याद करना बहुत महत्वपूर्ण है जब उन्होंने लेख खेलने पर बहुत ही अहम कदम उठाए थे और अदम्य साहस का परिचय दिया था। 1917 में अहमदाबाद में प्लेग फैल गया, सारे संस्थान बंद हो गए ,लोग शहर छोड़कर चले गए। उस काल में अहमदाबाद अपने कपड़ा उद्योग के लिए विख्यात था और प्लेग के कारण कपड़ा मिलों में सन्नाटा छा गया। मजदूरों को रोकने के लिए मिलों ने अलग प्लेग अलाउंस देने की घोषणा की। पटेल ने व्यक्तिगत सुरक्षा की अनदेखी कर शहर छोड़ने से इनकार कर दिया। जेबी मालवंकर ने लिखा है कि पटेल गलियों में निकल जाते थे नालियों की सफाई कराते थे दवाओं का छिड़काव कराते थे। अगर कोई मित्र उनकी सुरक्षा पर बात करता तो वे चुपचाप देखते रहते। मानों कह रहे हों कि लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी हम पर है मैं किससे सुरक्षा की बात करूं। पटेल के व्यवहार को मोदी जी ने मूर्त रूप दिया है और देश को एक सक्षम महामारी योद्धा के रूप में प्रस्तुत किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य सरकारों के साथ मिलकर लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंसिंग को सफलतापूर्वक लागू किया। वह आगे बढ़ कर नेतृत्व कर रहे हैं तथा पूरा देश उनके साथ है। 130 करोड़ की आबादी वाले देश में कोरोनावायरस से अब तक 21000 से कुछ ज्यादा लोग संक्रमित हुए हैं। प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी ने कोई मनमानी नहीं की है और ना ही कोई अधिकार वादी फैसला किया है। जो नई वैश्विक व्यवस्था स्वरूप ले रही है उसमें अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों के साथ मिलकर भारत ने मानव संसाधन सुझाया है। भारत समावेशन के माध्यम से एक नई विश्व व्यवस्था निर्माण में लगा है। यह नए अटलांटिक चार्टर का वक्त है। पर्यावरण, स्वास्थ्य सेवा , तकनीक और लोकतांत्रिक उदारवाद नए अटलांटिक चार्टर के मुख्य बिंदु हो सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में धारा के विपरीत तैर कर लक्ष्य को प्राप्त करने का हुनर है।
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