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Wednesday, April 15, 2020

मुश्किलें हैं तो क्या हुआ

मुश्किलें हैं तो क्या हुआ 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को देश को संबोधित किया। इसके पहले वाराणसी अपने चुनाव क्षेत्र मतदाताओं को संबोधित करते हुए कहा था महाभारत 18 दिनों में जीता गया और कोरोना वायरस से जंग 21 दिनों में जीती जाएगी। प्रधानमंत्री की बात एक उम्मीद थी। लेकिन वह उम्मीद पूरी नहीं हुई और फिर सोमवार को युद्ध का दूसरा शंख बजा। प्रधानमंत्री ने लॉक डाउन अवधि को 3 मई तक बढ़ा दिया है। इसमें जो सबसे महत्वपूर्ण है दुआ है कि देश के 130 करोड़ लोगों की जीवन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी  प्रधान मंत्री पर है और वे इस जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए जी जान से जुटे हैं।बेशक इस युद्ध में प्रधान मंत्री को देश ही नहीं विदेश के नेताओं का साथ ही मिल रहा है। यह बात दूसरी है कि हमारे देश के कुछ नेता इसकी आलोचना कर रहे हैं। इस पुनीत कार्य में भी सियासत खोज रहे हैं। देशवासी उनकी इस गतिविधि को बहुत ध्यान से देख रहे हैं और अगले चुनाव में उन्हें इसका फल मिलेगा ही। प्रधानमंत्री को जो सहयोग मिल रहा है उससे थोड़े समय के लिए ही सही उनका भरोसा मजबूत होगा प्रधानमंत्री ने सोमवार के अपने भाषण में इसी तरह के सहयोग की बात कही थी और पूरा देश संकट की घड़ी में उनके साथ है।  प्रधानमंत्री के समक्ष इस समय और भी कई चुनौतियां हैं तत्काल नहीं हल हो सकतीं। वे चुनौतियां हैं हमारे देश की लचर स्वास्थ्य सुविधाएं, बहुत बड़ी आबादी का बोझ और लॉक डाउन के कारण सामने आईं आर्थिक मुश्किलें। जब से विश्व स्वास्थ्य संगठन में कोरोना को वैश्विक महामारी घोषित कर दिया है तब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस संकट का सामना आगे बढ़कर कर रहे हैं। प्रधानमंत्री जी ने पहली बार स्वास्थ्य कर्मियों के लिए उत्साह बढ़ाने के लिए कहा और बाद में इस संक्रमण के प्रति एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए बत्तियां बुझा कर मोमबत्तियां और दिए जलाने को कहा। पूरा देश उनके साथ था। हर आम और  खास आदमी ने इसमें प्रधानमंत्री का सहयोग किया। कुछ अति उत्साही लोगों ने प्रधानमंत्री के ताली बजाने और दिए जलाने के पीछे वैज्ञानिक कारणों का भी उल्लेख किया उन्होंने वैज्ञानिक आधार को ना केवल तलाशा बल्कि उन्हें सोशल मीडिया पर लोगों को बताने की कोशिश भी की। इसके अलावा मीडिया के एक वर्ग में इसे एक विशिष्ट वर्ग के लोगों को जुड़ा और उसे इस बीमारी यह फैलाने में जिम्मेदार भी बताया। उन्होंने इसे आधार बनाकर टि्वटर युद्ध भी छेड़ दिया। उनकी दलील है कि जिन लोगों में संक्रमण पाए गए उनमें एक तिहाई लोग वह हैं जो मार्च में तबलीगी जमात में शामिल हुए थे। कई लोगों ने अपने ट्विटर हैंडल पर दिखा कि वे  कोरोना जिहाद में लगे थे। हालांकि मोदी और उनकी पार्टी को इस तरह की मनोवृति का फायदा मिलता है लेकिन ऐसे मौके पर उन्होंने इस बारे में ना केवल चुप्पी साधी है बल्कि लोगों को चेताया भी है कि हालात का लाभ ना उठाएं ।क्योंकि मुश्किल के समय में इस तरह के धार्मिक ध्रुवीकरण देश को गलत राह पर ले जाएंगे पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तो स्पष्ट कहा संक्रमण के मुद्दे को सांप्रदायिक रंग ना दें।

        प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  जब पहली बार लॉक डाउन की घोषणा की थी उन्होंने इसके बाद समाज के दूसरे इनफ्लूएंसर्स जैसे विपक्षी दल के नेता ,राज्यों के मुख्यमंत्रियों ,खिलाड़ियों ,पत्रकारों से बात कर सरकार का साथ देने में हाथ आगे बढ़ाने की अपील की।इससे घरेलू  मोर्चे पर सरकार को एक महत्वपूर्ण साथ मिला । नतीजा यह हुआ विपक्षी दल वायरस संक्रमण से युद्ध में सरकार की तैयारियों में खामियां बहुत सशक्त ढंग से नहीं उठा सके। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार को खर्चे कम करने का सुझाव दिया और खुद किनारा कर लिया। कांग्रेस के सुझाव में मीडिया इंडस्ट्री को 2 वर्ष तक विज्ञापन नहीं देने का सुझाव भी शामिल है।  अब यह मीडिया आउटलेट्स कांग्रेस के पीछे पड़ गए हैं। मलेरिया की दवा से भारत की मेडिकल डिप्लोमेसी मजबूत हुई है यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मलेरिया की दवा को गेमचेंजर बताया है। इस दवा के उत्पादन में भारत दुनिया में सबसे आगे है। इसलिए इसे मुहैया कराने के वादे को दुनिया के कई नेताओं में प्रशंसा की है। ट्रंप ने तो यहां तक कहा है कि मोदी जी ने  मानवता की रक्षा की है। भारत से जिन जिन देशों को दवा मिली है उनमें बांग्लादेश, नेपाल, भूटान. श्रीलंका और मालदीव भी शामिल हैं।मेडिकल डिप्लोमेसी के अलावा इस महामारी का एक मौके की तरह इस्तेमाल करते हुए मोदी ने सार्क के सदस्य देशों के बीच के तार को एक बार फिर जोड़ दिया है भारत और पाकिस्तान के आपसी मतभेदों के कारण 2016 में इसमें गतिरोध आ गया था।श्रीलंका ,नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, मालदीव और पाकिस्तान जितने भी सार्क देशों के सदस्य हैं उन्होंने मोदी के वीडियो कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया बल्कि इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में संयुक्त तौर पर फंड तैयार करने के लिए सहमत भी हो गए।

  इस महामारी के खिलाफ भले ही दुनिया के देश भारत के साथ हैं लेकिन घरेलू मुश्किलें जैसे खस्ताहाल मेडिकल सुविधाएं और आर्थिक कठिनाइयां एक चुनौती है। सरकार ने 2019 में नवंबर में संसद में बताया था देशभर में प्रति 1445 लोगों पर महज एक डॉक्टर है यह विश्व स्वास्थ्य संगठन मानक से कम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानक है प्रति 1000 लोगों पर एक डॉक्टर। खबरें मिल रही हैं कि  पीपीटी किट और वेंटिलेटर जैसे मेडिकल उपकरणों की भारी कमी है। डॉक्टरों की शिकायत है कि जब अधिकारियों से मेडिकल उपकरणों की कमी के बारे में कहा जाता है तो वे उन्हें ही उल्टा फटकारते हैं इस संबंध में एम्स के डॉक्टरों ने 6 अप्रैल को प्रधानमंत्री को एक पत्र भी लिखा था। मेडिकल उपकरणों के अलावा भारत में अर्थव्यवस्था भी एक चुनौती है। कुछ लोग तो पहले से ही आलोचना करते थे देश की अर्थव्यवस्था  कमजोर है। रिजर्व बैंक के अनुसार महामारी देश के भविष्य पर एक बुरे साए की तरह झूल रही है।

     मौजूदा लॉक डाउन के चलते देशभर में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लाखों मजदूरों के सामने ना केवल रोटी बल्कि रोजी  की भी समस्या उत्पन्न हो गई है इन्हें गरीबी से या कि उस दुरावस्था से निकालने की चुनौती भी प्रधानमंत्री पर है। फिर भी सब लोग समझ रहे हैं की मजबूरियां क्या है और प्रधानमंत्री की सबसे बड़ी सफलता है कि लोग उनके साथ खड़े हैं विश्व  उन से सहयोग कर रहा है। जब देश इस महामारी से ऊबर जाएगा तो बेशक प्रधानमंत्री अन्य चुनौतियों का भी ना केवल मुकाबला करेंगे बल्कि उन्हें फतह भी कर लेंगे।






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