1929- 39 की वैश्विक महामंदी के बाद आधुनिक राज्य का अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप बढ़ने लगा दूसरे महायुद्ध में भारी तबाही के बाद अर्थव्यवस्था में राज्य के हस्तक्षेप की मुहिम तेज हो गई। जिससे आधुनिक राज्य लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में विकसित होने लगा। इसका काम नागरिकों को भोजन, आवास, रोजगार, स्वास्थ्य आदि बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना माना गया। कल्याणकारी राज्य के कारण बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में दुनिया भर में आर्थिक असमानता में कमी आई और जनता के जीवन स्तर में भारी सुधार हुआ। इन सब स्थितियों के बावजूद दुनिया 1967 में एक बार फिर मंदी में आ गई और मुक्त बाजार आधारित अर्थव्यवस्था की मांग ने जोर पकड़ा। मिल्टन फ्रीडमैन, एफ ए हायेक, रॉबर्ट नोजिक जैसे दार्शनिकों और अर्थशास्त्रियों ने राज्य व्यवस्था का अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप को वित्तीय मंदी का कारण बताया। क्योंकि राज्य वैश्विक संस्थाओं से कर्ज ले रहे थे और उस कर्जे के पैसे से कल्याणकारी स्कीमें चला रहे थे। भारत में मुक्त बाजार की अर्थव्यवस्था का सिद्धांत 1991 के बाद प्रभावी होने लगा और यह इतना प्रभावी हो गया कि नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान नारा दिया कि "गवर्नमेंट का बिजनेस में कोई काम नहीं है।" क्योंकि जनता ने उन्हें चुना इसलिए माना जा सकता है कि उनकी इस नीति को जनता का समर्थन प्राप्त हो गया। 2020 में कोरोना महामारी के कारण दुनिया भर में बाजार को बंद करना पड़ा इस महामारी के समय जिस तरीके से व्यवहार किया गया है जैसे खाने पीने की वस्तुओं का भाव कई बार अचानक बढ़ जाना और जरूरी सेवाओं का स्थगित हो जाना। इसकी वजह से लोगों की दैनिक जरूरतों को पूरा करने में राज्य या कहें सरकार को सामने आना पड़ा। महामारी ने प्रमाणित कर दिया की मोदी की नीति सही है। और वैश्विक समस्या से बाजार अपने दम पर नहीं निपट सकता। इसको दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति और जन वितरण प्रणाली से समझा जा सकता है। इस समय जबकि भयानक महामारी का दौर चल रहा है प्राइवेट अस्पताल और नर्सिंग होम मरीजों का इलाज करने से पीछे हट रहे हैं वहीं सरकारी अस्पताल इस काम में डटे हुए हैं। लंबे समय से एक लॉबी जन वितरण प्रणाली में करप्शन का हवाला देकर इसे खत्म करने की मांग करती आ रही है। तर्क यह दिया जा रहा है कि इस प्रणाली को खत्म कर अनाज की जगह लाभार्थी को पैसा दे दिया जाए। ताकि वह बाजार से अनाज खरीद सकें। प्रधानमंत्री ने इसे मानने से साफ इंकार कर दिया और कोरोना के दौर में इस तरह की दलीलों की धज्जियां उड़ गयी। सोचिए कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जन वितरण प्रणाली को खत्म कर दिया होता तो क्या होता? आज तो वही उपयोगी साबित हो रहा है। कुल मिलाकर कोरोना के कारण बाजार में सरकार के हस्तक्षेप को बल मिला है और आने वाले दिनों में ऐसा लग रहा है कि दुनिया भर में नरेंद्र मोदी के इस दर्शन को समर्थन मिलेगा।
लगभग यही हाल स्वास्थ्य सेवाओं का भी है दवाइयों और चिकित्सा के माध्यम से रुपया बटोरने की गरज से सरकारी स्वास्थ्य सेवा को सदा लचर बताया जाता रहा है और उसे बंद करने की मांग भी उठती रही है। लेकिन आज निजी चिकित्सा व्यवस्थाएं किसी काम की नहीं और सरकार ने विश्व व्यवस्था का समर्थन किया। वह सरकारी चिकित्सा व्यवस्था चलती रही और यह प्रधानमंत्री की नीति थी कि इसे चालू रखा जाए। आईसीएमआर आंकड़े बताते हैं कि पिछले 5 दिनों में भारत में रोजाना 15,747 कोविड-19 टेस्ट हुए हैं जिनमें औसतन 584 मामले पॉजिटिव पाए गए हैं। आईसीएमआर के डॉक्टर मनोज मुरहेकर के अनुसार अब तक 1,86,906 टेस्ट किए गए। स्वास्थ्य मंत्रालय के उपसचिव लव अग्रवाल ने बताया है दक्षिण कोरिया, जापान से ऐसे मामलों की जानकारी आ रही है जिससे कोविड-19 से ठीक हुए लोग फिर से बीमार पड़ रहे हैं । यह नया वायरस है। इसके बारे में लगातार नई जानकारियां सामने आ रही हैं। ठीक हुए लोगों के पॉजिटिव पाए जाने के मामले पर नजर रखी जा रही है। कोविड-19 के उपचार के लिए कारगर औषधि खोजने के उद्देश्य से दुनिया भर में कारगर दवाओं पर काम चल रहा है लेकिन अभी तक कोई लाभ नहीं हुआ है।
कुछ लोग मोदी सरकार द्वारा लॉक डाउन किए जाने की घोषणा पर सवाल भी कर रहे हैं। लेकिन उन्हें कैसे बताया जाए यह कितना जरूरी था। सोचिए यह नरेंद्र मोदी के करिश्मे का यह असर था कि लॉक डाउन के दौरान लोग आदेशों का पालन करते रहे। थाली बजाने और दीया, मोमबत्ती चलाने की अपील पर लोग अमल करते हैं। आज अगर मोदी जी की जगह कोई दूसरा प्रधानमंत्री होता तो क्या कोरोनावायरस से लड़ाई का नेतृत्व कर रहा होता? शायद नहीं। लेकिन मोदी जी के राज में भारत उनसे अलग नहीं है स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सचिव प्रीती सुदन के करीबी लोग बताते हैं कि अगर वे रात 2:00 बजे भी मोदी जी को खुराना के बारे में मैसेज भेजती हैं तो मिनटों में जवाब आ जाता है। 2:00 बजे रात तक मोदी काम करते रहते हैं। नरेंद्र मोदी एक आग्रही व्यक्ति हैं उनके नेतृत्व गुण में केवल प्रभावशाली व्यक्तित्व और व्यक्तित्व की भावनाएं जगाने जैसी विशेषताएं ही शामिल नहीं है बल्कि वे लोगों का निर्माण करने में भी माहिर हैं। वे वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सारे मुख्यमंत्रियों से बातें करते रहते हैं। इसलिए स्पष्ट होता है कि वे किस तरह सरकार चलाते हैं। जब संपूर्ण देश में लॉक डाउन घोषित करने का फैसला हुआ तब मुख्यमंत्रियों को इसके बारे में पहले सूचित नहीं किया गया और इसके लिए कई मुख्यमंत्रियों ने विरोध भी जाहिर किया। लेकिन उनका मानना था कि यदि बातचीत में ज्यादा समय जाया किया जाता तो महामारी का स्वरूप बदल सकता था। क्योंकि लॉक डाउन के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। आज देश में कोरोना महामारी की स्थिति में सुधार हो रहा है। बेशक सुधार बहुत मामूली है लेकिन इसका श्रेय प्रधानमंत्री को जाता है।
Monday, April 13, 2020
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