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Sunday, April 5, 2020

एक और विपदा आसन्न है

एक और विपदा आसन्न है 

जब कोविड-19 का प्रसार शुरू हुआ तो कहा गया इससे सबसे ज्यादा प्रभावित वरिष्ठ नागरिक हो रहे हैं और इसलिए उन्हें अलग रखने की जरूरत है। शोध में पाया गया  कि दुनिया भर में  करीब 11 लाख लोग  इससे संक्रमित हुए हैं  और  मरने वालों की संख्या  59 हजार 131  पहुंच गई है  केवल भारत में  कोरोना के  2902  से ज्यादा मामले सामने आए हैं  जिनमें 68 लोगों की मौत हो चुकी है। डॉक्टरों ने भी कुछ ऐसी ही राय दी थी। लेकिन अब जो शोध हुए हैं उससे निष्कर्ष प्राप्त हुआ है कि नौजवान ही सबसे ज्यादा इसके शिकार हो रहे हैं। वैज्ञानिकों के अध्ययन में  पाया गया है कि कोरोना वायरस से संक्रमित 14.5% युवा अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद दोबारा संक्रमित हो गए। हालांकि यह अध्ययन चीन और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने किया है इसके अनुसार 262 मामले में से 38 ऐसे पाए गए कि  युवा ठीक होने के 2 सप्ताह बाद इस संक्रमण से ग्रस्त होकर दोबारा अस्पताल में आए। यह भी पाया गया है कि बच्चे इसके ज्यादा शिकार हो रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि एक बार आदमी जब इससे संक्रमित हो जाता है तो आपने भीतर इसके प्रतिरोध की क्षमता विकसित कर लेता है । लेकिन शोध में जिन 262 लोगों का अध्ययन किया गया और जो लोग दोबारा शिकार होकर लौटे थे उन 38 लोगों में एक व्यक्ति की उम्र 60 वर्ष से ऊपर थी और 7 लोगों की उम्र 14 वर्ष से कम थी। भारत की स्थिति  दूसरी है । कोरोना संक्रमण को लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय के ज्वाइंट सेक्रेट्री लव अग्रवाल ने बताया कि भारत में अब तक मिले संक्रमितों में से 42 फ़ीसदी मरीजों की उम्र 21 से 40 साल के बीच है और 33% मरीज 41 से 60 के बीच के उम्र के हैं। इसके अलावा 60 वर्ष से ऊपर केवल 17% मरीज हैं और 20 साल के नीचे केवल 9% मरीज पाए गए हैं। अब तक 17 राज्यों में 1023 कोरोना के  मामले तबलीगी जमात से जुड़े हुए लोगों में पाए गए हैं। इंपीरियल कॉलेज लंदन के अध्ययन के मुताबिक जिन लोगों की उम्र 80 वर्ष से ज्यादा है। उनमें कोरोना की मृत्यु दर की आशंका 10 गुना ज्यादा है। जबकि 40 वर्ष से कम उम्र वालों मैं बहुत कम है। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। यहां सबसे ज्यादा संक्रमण युवाओं में देखा जा रहा है। लेकिन मैरीलैंड विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ मेडिसिन की प्रोफेसर करीन कोटलोफ के अनुसार यह सिद्धांत बहुत ज्यादा निर्भर योग्य नहीं है और ना ही यह भी मानना सही है की लॉक डाउन से  वायरस अनियंत्रित हो जाएगा या उसकी श्रृंखला भंग हो जाएगी। जितने भी शोध हो रहे हैं किसी के भी निष्कर्ष एक तरह से नहीं आ रहे हैं। कुछ न कुछ भिन्नता सब में है। किसको माना जाए और इस पर कदम आगे बढ़ाया जाए यह बड़ा कठिन होता जा रहा है। लेकिन पूरी दुनिया इस बात को स्वीकार करती है कि यदि इसके प्रसार से पहले संवाद स्पष्ट होता तो इस पर नियंत्रण हो सकता था लेकिन संवाद  हीनता या उसकी अस्पष्टता ने स्थिति को खराब कर दिया। जहां तक भारत का सवाल है अगर कुछ ग़लतियां जैसे विदेशों से आने वाली यात्री कुप्रबंधन से सबक नहीं लिया जाना इत्यादि। कुछ लोग इसके लिए भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोषी बताते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। दोष उनमें ना होकर संपूर्ण तंत्र में है और हमारे देश की जनता की आदतों में है। विदेशों से इतनी बड़ी संख्या में प्रवासी लौटते हैं लेकिन उनकी स्क्रीनिंग में लापरवाही बरती गई। 18 जनवरी 2020 से हवाई अड्डों पर यात्रियों की स्क्रीनिंग शुरू हुई थी और तब से लेकर 23 मार्च 2020 तक कुल 15 लाख लोग भारत आए और इन से जुड़ी जानकारियां आपस में साझा नहीं की गई। ना इनकी ठीक से निगरानी हो सकी जिससे वायरस का प्रसार हो गया। जब चीन में इसका संक्रमण बड़ा तो दुनिया के कई देशों में मास्क और वेंटिलेटर का भंडारण शुरू हो गया। उन्होंने अपने अस्पतालों को इसके लिए दुरुस्त करना शुरू कर दिया। लेकिन भारत के स्वास्थ्य अधिकारी बहुत देर से जागे और उन्होंने न जाने कैसे यह मान लिया कि हवाई अड्डे पर स्क्रीनिंग करने से ही सब कुछ हो जाएगा। भारत में आबादी का घनत्व बहुत ज्यादा है और इसके साथ ही पोषण व्यवस्था भी सही नहीं है। ऐसे में अगर सावधानी नहीं बरती गई तो इसमें सरकार दोषी नहीं है। हमारे यहां लापरवाही की स्थिति यह है कि कई जगहों पर डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्य कर्मी संक्रमित हो रहे हैं और अस्पताल जाने से डर रहे है। यही नहीं है संवादों में भी स्पष्टता दिखाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने। जिस दिन जनता कर्फ्यू की घोषणा की उस दिन से सरकार की बातों में स्पष्टता दिखने लगी और लोगों के मन से भ्रम दूर होने लगा। इसके बावजूद लोग अफवाह फैलाते रहे कि आवश्यक सामग्री नहीं मिलेगी। परिणाम यह हुआ की लोगों में आतंकवश खरीदने की होड़ लग गई । सड़कों पर भीड़ उमड़ पड़ी और एक खास किस्म की अव्यवस्था दिखाई पड़ने लगी। बड़ी मुश्किल से इसे संभाला गया। लेकिन इससे संक्रमण बढ़ता गया। सरकार की तरफ से साफ-साफ बताया गया कि किसी भी आवश्यक वस्तु का अभाव नहीं होगा तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
      लेकिन यहां यह गौर करने की चीज है कि इस कोरोनावायरस के प्रकोप के खत्म होते ही बड़ी संख्या में हमारे देश में लोगों की मौत हो सकती है। क्योंकि कोरोना केंद्रित उपचार में सब लगे हैं। लॉक डाउन है और इस दौरान  देशभर के अधिकतर लैब और क्लीनिक बंद होने के कारण मधुमेह तथा दिल इत्यादि के मरीजों को  बहुत बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। डॉक्टरों को डर है कि आने वाले दिनों में कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की मौतों की तुलना में गैर कोरोना वाले रोगियों की मौत ज्यादा हो सकती है। हमारे देश में लगभग रोज एक करोड़ से अधिक रोगी अपने इलाज के लिए डॉक्टरों या उनके क्लिनिक्स में जाते हैं। वे मधुमेह,  ब्लड प्रेशर या दिल के मरीज तथा अन्य बीमारियों से ग्रस्त होते हैं। उन्हें तरह-तरह की जांच की जरूरत होती है। जो इस समय प्राथमिकता का विषय नहीं है। लॉक डाउन के कारण तीन चौथाई से ज्यादा लैब और क्लीनिक बंद हैं इस बंदी का प्रभाव भी पड़ना सुनिश्चित है।


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