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Monday, April 27, 2020

देश में संवाद का अभाव

 देश में संवाद का अभाव

 फिलहाल कोविड-19 की महामारी दुनिया में कहर बरपा हुआ है। इस महामारी के कारण लगभग सभी देशों में सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था पर अचानक बहुत बड़ा  बोझ बढ़ गया है। यही नहीं  इस संकट की घड़ी में सार्वजनिक संवाद की कमी का संकट आ गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  विभिन्न मौकों पर देश को और दुनिया को इस संकट की गंभीरता से आगाह करने की कोशिश की है लेकिन उनके अलावा रोज विभिन्न राज्यों तथा सोशल मीडिया पर इस संकट को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं।  राजनीतिक दलों को छोड़ दें तब भी  कुछ बुद्धिजीवी भी प्रधानमंत्री के संवाद  की शैली  की खिल्ली उड़ाते  पाए जा रहे हैं।   विख्यात संवाद शास्त्री  मैक्लुहानके अनुसार  सही संवाद का अर्थ है कि  संवाद की बात को ग्रहण किया जाए और उसे  समझा जाए।  इस कसौटी पर प्रधानमंत्री की बातें बिल्कुल सही उतरती हैं  लेकिन हमारे सोशल मीडिया में और राजनीतिक विश्व में जो बातें फैलाई जा रही हैं उनका एक विशेष एजेंडा नजर आ रहा है।  आज सूचना की सबसे बड़ी  खपत सोशल मीडिया के माध्यम से होती है और इसकी सबसे बड़ी  ट्रेजडी है  कि सूचना देने वाले और सूचना पाने वालों के बीच सीधा संवाद नहीं होता है जबकि प्रधानमंत्री की कोशिश होती है कि देश की जनता को किया गया संबोधन उनसे  सीधे संवाद  के स्वरूप में हो।  इसमें वे सफल  भी हैं और यही कारण है कि देश विदेश में  उनकी बात सुनी जा रही है ।विभिन्न समूहों के  साथ सीधा संवाद  किसी भी संकट से निपटने के लिए आवश्यक है।  अगर सूचना स्पष्ट नहीं होगी तो हम इस संकट से निपटने के लिए  जूझते रह जाएंगे।  11 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 को महामारी घोषित कर दी क्योंकि उस समय तक कोरोनावायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या 13 गुना बढ़ चुकी।  उस समय भारत में संक्रमण के केवल 62 मामले सामने आए थे जो दुनिया भर में कुल संक्रमण के 0.05 प्रतिशत ही थे।  जहां पूरी दुनिया ने  खासकर यूरोपीय देशों ने इस महामारी को गंभीरतापूर्वक लिया और इससे निपटने के लिए आवश्यक संसाधनों  को भी जोड़  लिया लेकिन भारत चुपचाप बैठ कर केवल उसने रक्षात्मक रुख अपनाया।  इसके बाद यह भारत के राज्यों में फैलने लगा लेकिन राज्यों की सरकारों  और केंद्र सरकार के बीच  समन्वय हीनता तथा संवाद हीनता व्याप गई थी।

  28 राज्यों के 736 जिलों और केंद्र शासित प्रदेशों वाले इस देश में अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग बोलियां बोली जाती हैं अलग-अलग भाषाएं हैं और संस्कृतियां  हैं।  सबसे संवाद कायम करना बड़ा ही जटिल काम है इसलिए प्रधानमंत्री ने बिम्बों का सहारा लिया और  कभी ताली तथा कभी दीपक बनाया।  इसी के साथ उन्होंने हर राज्य के लिए विशेष संवाद की व्यवस्था तैयार करनी शुरू कर दी और इसका फायदा हुआ कि  सबसे कमोबेश संवाद कायम होने लगा । सरकार चूंकि  एक कल्याणकारी राज्य को चलाने के लिए जिम्मेदार होती है इसलिए प्रधानमंत्री के इस संवाद का उद्देश्य हर आदमी चाहे वह किसी भी भाषा यह संस्कृति का हो  उस तक यह  संदेश जाए  कि उनकी सरकार उनके कल्याण के लिए  कुछ कर रही है। इसी के तहत कुछ क्षेत्रों में कर्फ्यू लगाया गया और कुछ क्षेत्रों में धारा 144 लागू की गयी। इसी के अंतर्गत डॉक्टरों और  स्वास्थ्यकर्मियों  पर हमले के खिलाफ दंडात्मक कानून बना।  यह कानून कुछ करे या ना करे  लेकिन  इससे एक संदेश जाता है कि सरकार महामारी से लड़ने वालों का सम्मान कर रही है इससे उनका हौसला बढ़ता है। अब इसके बाद जरूरी है कि संवाद को सरकार दूसरे स्तर तक ले  जाए जिससे संकट के तमाम पहलुओं  और व्यवस्था में खामियों जैसे पेचीदा मामला पर जनता से स्पष्ट रूप से बात की जा सके।  संवाद शास्त्र में इस तकनीक को रिटोरिक अरेना  थ्योरी  कहते हैं जिसके तहत अलग-अलग किरदार मिलकर किसी संकट के बारे में संवाद करते हैं।  सब ने गौर किया होगा प्रधानमंत्री ने कई बार इसी उद्देश्य के लिए राज्यों से बातें  करते हैं।  इस सिद्धांत के मुताबिक संकट से निपटने में  जुटे तमाम विभाग और लोग जनता से ऐसे संबंध में करते हैं  कि  पारस्परिक संवाद कायम रहे और बातें दोहराई न जाएं।  जैसे राज्यों के अधिकारी,  अर्ध सरकारी  अधिकारी आपस में मशविरा करके आंकड़े  साझा करके संकट से जुड़ी जानकारी जनता तक पहुंचाएं।  ऐसे में आपसी सहयोग  वाली साझेदारियों से संवाद जमीनी स्तर तक पहुंचा पाने में मदद मिलती है।  यहीं आकर अखबारों की भूमिका आरंभ होती है।  ऐसी प्रक्रिया में संवाद एक एक ही दिशा में चलता है और उसमें छोटे स्तर से लेकर व्यापक स्तर तक कोई विरोधाभास नहीं  होता। साथ ही आपसी समन्वय से यह सभी भागीदार फेक न्यूज़ या अफवाह फैलाने वालों को काबू में रख पाते हैं। क्योंकि सार्वजनिक स्वास्थ्य की चुनौती के समय यह संवाद की रणनीति तभी असरदार साबित होती है जब सटीक जानकारी को जनता के हर तबके तक पहुंचाया जाए। चूंकि ,  के शब्द अपने आप में सब को समेटने वाले होते हैं।  हममें से बहुतों को स्वामी विवेकानंद अमेरिका में  उस ऐतिहासिक भाषण  की शुरुआत के शब्द याद होंगे और आज जब प्रधानमंत्री अपने भाषण को शुरू करते हैं तो उनके द्वारा उपयोग में लाए गए शब्दों को भी हम सुनते हैं। यह  संवादिक  रणनीति है और यह रणनीति तभी कारगर होती है जब जनता के हर तबके के लोगों में यह भाव पैदा हो कि बातें उसी से की जा रही हैं। किसी भी सूचना की व्याख्या और उसे किस रूप में देखा जाएगा यह अलग-अलग समुदायों में अलग अलग होता है यहीं आकर सूचना की विशेषज्ञता उत्पन्न होती है।  आज कोरोना वायरस का संक्रमण किस स्तर पर है यह इस चरण में प्रवेश कर रहा है इसकी जानकारी लोगों तक पहुंचाने के लिए जरूरी है कि  सूचना को ऐसे गधा जाए यह हर तबके की आवश्यकताओं की पूर्ति करे। संवाद संप्रेषण के अलग-अलग साधन होते हैं और उन  साधनों के माध्यम से  संवाद को ग्रहण करने वाले वर्ग भी अलग-अलग इसलिए यह देखा जाना जरूरी है इसका कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़े।  कोविड-19 को लेकर तरह-तरह के  भ्रम  फैल रहे हैं  मसलन   लॉक डाउन  तीन मई के बाद कायम रहेगा या खत्म कर दिया जाएगा परिवहन व्यवस्था आरंभ होगी या नहीं होगी इसे लेकर  भारी कंफ्यूजन है।  इस कन्फ्यूजन को खत्म करना  संवाद  व्यवस्था से जुड़े हर पक्ष का कर्तव्य बनता है।

 


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