जब से कोविड-19 का संक्रमण महामारी बना है तब से कोरोना वायरस से जुड़ी खबरों के अलावा एक और चौंकाने वाली खबर आ रही है वह है पुलिस पर हमलों की। लगभग सभी राज्यों से इस तरह के हमलों की खबरें मिल रही हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश और बंगाल के कुछ हिस्सों में इस तरह की घटनाएं लगातार सुनी जा रही हैं। मंगलवार को बंगाल के हावड़ा मेंकई इलाकों में पुलिस पर हमले हुए। हमले अपने चरित्र में न केवल घातक लग रहे थे बल्कि ऐसा लग रहा था कि उनके पीछे सत्ता का समर्थन है। सच क्या है यह तो विश्लेषण के बाद ही पता चलेगा लेकिन खुल्लम खुल्ला रैफ पर हमलों की खबर चौका देने वाली है। मंगलवार की शाम से इस संबंध में वीडियो वायरल हुआ और उस आधार पर जो जानकारी मिलती है और भी चौंका देने वाली है। हालांकि इस हमले में शामिल कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया है लेकिन इससे बात नहीं बनेगी। क्योंकि, हमला करने वाले लोग भारतीय राष्ट्र में सोशल इंजीनियरिंग को खराब करने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। यह तो बात की बात है लेकिन यहां दो प्रश्न हैं पहला हमलों के मूलभूत कारण क्या हो सकते हैं और दूसरा कि आपसी मदद के हाथ बढ़ाने से कितना लाभ हो सकता है। पहला, हमलों मूलभूत कारण क्या हैं? अगर इसे वर्तमान स्थिति में मनोविज्ञान की कसौटी पर परखें तो कारण तनाव दिखेगा। जो लोग सामान्य ढंग से कमाने खाने वाले हैं उन पर बंदिशें अगर लगती हैं तो बंदिश लगाने वालों पर गुस्सा दिखेगा ही। यह हमले मनोवैज्ञानिक तौर पर सत्ता पर हमलों की अभिव्यक्ति कहे जा सकती हैं। जैसा कि कश्मीर में पत्थरबाज किया करते थे। परंतु वह घटना बिल्कुल पृथक की और उसके कारण भी अलग थे। वर्तमान में जो हमले हो रहे हैं उन्हें अगर भारतीय परिप्रेक्ष्य में इसे परखें तो यह निष्पत्ति सही नहीं दिखेगी। क्योंकि भारतीय पुलिस की रचना सत्ता के नियमों को समाज पर लागू करने के लिए ही हुई थी और यह एक तरह से सत्ता और समाज के बीच कड़ी के रूप में काम करने लगी क्योंकि हमारे समाज में पुलिस व्यवस्था ही ऐसी पहली सरकारी व्यवस्था है जिसका जनता से सीधा और सामूहिक संपर्क रहता है। इसलिए गुड पुलिसिंग के तहत पुलिस पब्लिक संबंध पर ना केवल जोर दिया जाता है बल्कि इसे व्यवहारिक रूप में काम में लेने की सिफारिश की जाती है। लेकिन वर्तमान में जो हो रहा है वह इस सार्वभौम तथ्य से पृथक है । यहां जो हमले हो रहे हैं वह सामाजिक वर्चस्व कायम करने और खुद को वर्चस्व शाली के रूप में पेश करने में व्यवधान की अभिव्यक्ति है। यहां पुलिस ना केवल हम लोग का शिकार होती है बल्कि कुछ लोगों के समूह द्वारा एक तंत्र को घुटनों पर लाने इस सनक है। यहां प्रतिरोधी बल प्रयोग आवश्यक है लेकिन सत्ता द्वारा सामाजिक व्यवस्था को कायम रखने के प्रयास के स्वरूप प्रथम बल प्रयोग पर रोक है। यह लोकतंत्र का तकाजा भी है।
लेकिन इसी के साथ एक बात पर समाज के सभी अंगों को और समुदायों को सहमत किया जाता तो हालात ऐसे न होते। यहां सबसे जरूरी है एकता , एकजुटता और सहयोग का हाथ बढ़ाने का मानस। यह बताना जरूरी है कि विपत्ति की इस घड़ी में जब हाथ मिलाना वर्जित है तो सहयोग के हाथ बेहद फलदाई हो सकते हैं ।सहयोग के हाथ तू दूर सहयोग के दो शब्द ही पर्याप्त होंगे। हमारे देश में 26 नवंबर को मुंबई पर हमले हुए थे और उस हमले के बाद पूरे देश ने यह स्वीकार किया कि हमले और गुस्से से कुछ नहीं होने वाला यह सब व्यर्थ प्रयास है। क्योंकि जैसे हमले अभी हो रहे हैं उनके लिए ना युद्ध का मैदान और ना सेना की जरूरत होती है। छोटे-छोटे हमले समाज का स्वरूप बिगाड़ रहे हैं। अगर महामारी और उसके दुष्प्रभाव अभी कायम रहे तो इसका और भी खराब सामने आएगा। क्योंकि अभी जो वैज्ञानिक और आर्थिक समृद्धि हमें प्राप्त हुई है वह धीरे-धीरे खत्म हो रही है। बेरोजगारी बढ़ती जाएगी और आर्थिक विकास घटता जा रहा है। पूरा देश या कह सकते हैं विश्व का अधिकांश भाग लॉक डाउन की पीड़ा झेल रहा है। वैज्ञानिक इसकी वैक्सीन निकालने के लिए रात दिन एक कर रहे हैं। वायरस का प्रभाव जल्दी ना पड़े इसके लिए लॉक डाउन के साथ साथ सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन किया जा रहा है। जो लोग पालन नहीं कर रहे हैं उन पर दबाव डाला जा रहा है। अब चूंकी पुलिस ऐसी व्यवस्था है जो आम जनता के बीच सरकार का प्रतिनिधित्व करती है तो इस जवाब के लिए उसी का उपयोग किया जा रहा है। लेकिन हमारे यहां कुछ अजीब सी परिस्थिति है कुछ लोग इस व्यवस्था को सही मान रहे हैं तो कुछ गलत। कुछ लोगों का कहना है कि सरकार अपनी नाकामी छुपाने के लिए पुलिस का उपयोग कर रही है कुछ लोगों का मानना है कि रोग का संक्रमण अधिक ना हो इसलिए सोशल डिस्टेंसिंग व्यवस्था के लिए पुलिस का उपयोग जरूरी है । लेकिन सच है कि राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार हो सब लोगों के बचाव के लिए प्रयासरत हैं। इस महामारी के कारण जो आर्थिक क्षति हुई है वह भयानक है। जो लोग अनौपचारिक मजदूरी करते थे या जो लोग स्वरोजगार से जुड़े थे उनकी रोजी चली गई और वह भविष्य में रोटी के लिए चिंतित हैं। आंकड़े बताते हैं कि लगभग 5 करोड़ रोजगार समाप्त हो गए और हालात है तो यह संख्या बढ़ेगी। इसके अलावा 12.50 करोड़ किसानों और कृषि मजदूरों का भविष्य भी संकट में है। ऐसे में समाज के विभिन्न समुदाय अगर सहयोग का हाथ नहीं बढ़ाते हैं तो आने वाले दिनों में स्थिति बहुत खराब हो जाएगी। जो लोग पुलिस पर हमले कर रहे हैं उन्हें यह समझना होगा कि हमलों से कोई बात नहीं बनेगी।जो कुछ भी होगा वह शांति और सहयोग से होगा।
0 comments:
Post a Comment