कोविड-19 के मरीजों के उपचार में लगे डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों पर हमलों खबरें लगातार आ रहीं हैं । इंडियन मेडिकल काउंसिल इन हमलों के विरुद्ध सरकार कई बार आगाह किया और अंत में आंदोलन की धमकी भी दी। बुधवार को मंत्रिपरिषद की बैठक में प्रधानमंत्री ने इन हमलों पर सख्ती जाहिर करते हुए एक नयाअध्यादेश जारी कर दिया। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोरोनावायरस को महामारी घोषित किए जाने के बाद देश में 123 साल पुरानी महामारी बीमारी कानून 1897 लागू है। इस कानून की धारा 3 में प्रावधान है इसके तहत बनाए गए किसी भी नियम या आदेश की अवहेलना दंडनीय है और माना जाएगा कि व्यक्ति ने भारतीय दंड संहिता की धारा 188 का उल्लंघन किया है। इसी तरह आपदा प्रबंधन कानून 2005 की कम से कम 9 धाराओं में दंड और जुर्माने का प्रावधान है जिसमें 2 साल तक की अधिकतम सजा और जुर्माना हो सकता है। लेकिन इसमें किसी खास वर्ग का उल्लेख नहीं है। इसलिए डॉक्टरों पर हमले के विरुद्ध नया अध्यादेश लागू करना पड़ा है। चूंकि संसद की बैठक नहीं चल रही है इसलिए अध्यादेश जारी करना पड़ा। यह अध्यादेश अगले 6 महीने तक लागू रह सकता है। इस नए कानून के तहत डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों पर हमला करने वालों को 5 साल की जेल और आर्थिक जुर्माना लग सकता है। इस पर दायर मामले पर 30 दिनों के भीतर कार्रवाई पूरी हो जाएगी और दोषी को दंड दिया जा सकेगा। एक ऐसा देश जहां कोविड-19 के संक्रमण का मामला 20000 से ऊपर पहुंच गया और मरने वालों की संख्या 652 हो गई है वहां रोगियों के इलाज कर रहे डॉक्टरों पर हमले अत्यंत निंदनीय है और प्रधानमंत्री का यह कदम बेहद सामयिक और प्रशंसनीय है। प्रधानमंत्री ने देश में कोविड-19 की रोकथाम के लिए जितने भी कदम उठाए हैं वह अत्यंत प्रशंसनीय हैं। माइक्रोसॉफ्ट कॉरपोरेशन के संस्थापक बिल गेट्स नए प्रधानमंत्री के कदमों की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि उनकी सरकार द्वारा देशव्यापी लॉक डाउन को अपनाया जाना, क्वॉरेंटाइन किया जाना और आइसोलेशन के साथ साथ हॉटस्पॉट की पहचान किया जाना यह एक अच्छा प्रयास है। बिल गेट्स ने अपने पत्र में कहा है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किस तरह पूरे देश को संभाला उसे लेकर दुनिया भर में उनकी तारीफ हो रही है। बिल गेट्स का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असाधारण डिजिटल क्षमताओं का उपयोग किया। इससे देश में संक्रमण रफ्तार बहुत धीमी हो गई।
प्रधानमंत्री कि इन कार्यों की अगर समाज वैज्ञानिक व्याख्या करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने फंतासी को इंसानी काबिलियत का बिंब बना दिया और उस बिंब को दशकों तक कायम रखने के लिए अपनी साख का उपयोग किया। आज जब पूरा विश्व कोविड-19 से आक्रांत है और नेतृत्व के दूरदर्शिता के अभाव के संकट से गुजर रहा है ऐसे में प्रधानमंत्री ने एक दृष्टि को स्वरूप दिया। लेकिन यहां एक सवाल उभरता है कि इस नई बीमारी की वजह से समाज में जो मनोवैज्ञानिक तनाव बढ़ा है और उस तनाव को झेल नहीं पाने के कारण कुछ लोग अलग-अलग ढंग से आचरण कर रहे हैं उनकी पड़ताल कर उनका उपचार कैसे किया जाए क्योंकि जब तक ऐसे लोग चाहे वह थोड़े भी हों समाज में रहेंगे तब तक कुछ न कुछ घटनाएं होती ही रहेंगी। इसका कारण है इस तरह के लोग सामने वाले को गलत मांग कर दंड देने की कोशिश करते हैं। पालघर में साधुओं को मारा जाना और कई स्थानों पर पुलिस पर हमला डॉक्टरों पर हमले व कर्मियों से दुर्व्यवहार इत्यादि इसी मनोभाव के धीरे-धीरे उभार के लक्षण हैम। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद इंग्लैंड में अचानक आपराधिक गतिविधियों के बढ़ने का यही कारण था। अभी सरकार ने कुछ इमरजेंसी सेवाएं आरंभ की है जिसमें साइक्लोजिकल काउंसलिंग भी एक है। सरकार ने एक कानून बनाया इससे डॉक्टरों की हिफाजत हो सकती है लेकिन कानून का भी अपना एक दर्शन होता है। कानून लागू करने वाले प्राधिकरण कई बार अक्षम दिखाई पड़ते हैं क्योंकि जो मनोवैज्ञानिक रुप में तनावग्रस्त होते हैं उनमें विचारों का अभाव होता है। वह सोच नहीं सकते इसीलिए लॉक डाउन के आरंभिक दिनों में प्रधानमंत्री ने ताली, थाली बजाने तथा मोमबत्तियां और दीए जलाने की बात की थी ताकि लोगों में आस्तिकता बोध बढ़े लेकिन उससे बहुत ज्यादा लाभ नहीं हो सका। जो लोग साइकोपैथ होते हैं उनको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जहां तक अपने देश भारत का प्रश्न है वहां इतनी बड़ी आबादी है और इतने तरह-तरह के विचार तथा पंथ हैं कि उन्हें एक डोर में नहीं बांधा जा सकता। जहां तक लॉक डाउन का प्रश्न है वहां स्थिति और विकट होती जा रही है। हमारे लोकतंत्र के तीन स्तंभों में से केवल एक ही काम कर रहा है। कार्यपालिका ने सारे अधिकार अपने हाथ में ले लिए हैं न्यायपालिका तथा विधायिका के काम ठप पड़े हुए है। मीडिया के तौर पर एक गैर आधिकारिक स्तंभ और भी है इसे चौथा खंभा यह लीजिए। इसे काम करने दिया जा रहा है लेकिन यह केवल आईना दिखा रहा है। आईने में समाज की क्या तस्वीर उभरती है और उस तस्वीर को देखकर समाज के एक हिस्से में क्या प्रतिक्रिया होती है इस पर कोई बहस नहीं है। लॉक डाउन का निजाम कायम है। यह व्यवस्था संक्रमण रोकने के लिए देश में पहली बार इजाद हुई। यह ना संविधान का अंश है और ना इसे संसद की मंजूरी है। लॉक डाउन के तहत आपका कोई भी गुनाह अपराध में शामिल हो सकता है और उसकी सजा पुलिस कुछ भी तय कर सकती है। यह सजाएं और यह गुनाह उन मामलों से अलग है जो देशभर में कोरोना अपराधियों के खिलाफ दर्ज किए गए हैं। उत्तर प्रदेश में लॉक डाउन तोड़ने वालों से अब तक 6 करोड़ रुपए वसूले जा चुके हैं। बड़ी संख्या में लोगों पर एफ आई आर दर्ज है। लेकिन यह व्यवस्था वीआईपी लोगों पर लागू नहीं होती है। अभी कुछ दिन पहले पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा के पौत्र की शादी हुई, बिहार के शिक्षा मंत्री के निजी सहायक द्वारा जहानाबाद में आयोजित पार्टी, कर्नाटक में भाजपा विधायक द्वारा तुमकुर जिले के एक सरकारी स्कूल के भवन में बड़े पैमाने पर जन्मदिन समारोह का आयोजन इत्यादि कुछ ऐसे उदाहरण है जिन पर प्रशासन ने कुछ नहीं किया। इस महामारी से निपटने के लिए और देशवासियों को बचाए जाने के नाम पर पुलिस और सुरक्षाकर्मियों द्वारा लगातार चौकसी की जा रही है। लाउड स्पीकर पर घोषणाएं हो रही है लक्ष्मणरेखा ना लांघे ,घरों में रहें यही नहीं लॉक डाउन का उल्लंघन करने वालों को शर्मसार करने के नए-नए तरीके पुलिस जांच कर रही है लेकिन लव डाउन का उल्लंघन हो रहा है। ऐसे में डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों पर हमले के कानूनों को किस हद तक अमल में लाया जा सकता है और लागू किया जा सकता है यह तो आने वाला समय बताएगा।
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