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Thursday, September 15, 2016

यू पी में बन रहे नये सियासी हालात

एक तरफ कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की उत्तर प्रदेश यात्रा से जहां लगता है कि कांग्रेस धूल झाड़ कर सियासी अखाड़े में  फिर ताल ठोंक रही है वहीं उत्तर प्रदेश के प्रथम परिवार के तौर पर मशहूर मुलायम सिंह यादव के परिवार में भीतरी कलह बड़ जाने से हालात और कमजोर दिखने लगे हैं। हालांकि मुलायम सिंह यादव इस परिवार का झगड़ा बता रहे हैं और उनका दावा है कि इसका सियासत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। पर जो​ दिख रहा है उसके पेशेनजर ऐसा मानना सही नहीं होगा। मंगलवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने चाचा और राज्य वरिष्ठ मंत्री शिवपाल सिंह यादव के चहेते मुख्य सचिव दीपक सिंघल का मंगलवार को पद से हटा  दिया और उन्हें अनिवार्य छुट्टी पर भेज ​दिया। सिंघल को चार महीने पहले ही उस पद पर तैनात किया गया था। बताते हैं कि सिंघल मुलायम सिंह के दुबारा मित्र बने अमर सिंह के भी चहेते थे। इसके पहले शिवपाल सिंह यादव सैफयी से नाराज होकर आ गये थे पर मीडिया को उन्होंने बताया कि यह सब पारिवारिक मसला है और इसपर मुलायम सिंह जी की बात अंतिम होती है। ‘नेताजी जो कहेंगे वह मैं मानूंगा।’ लेकिन बुधवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में शिवपाल सिंह ने कहा कि मंत्रियों को पद से हटाना या उन्हें दूसरे विभाग में भेजना तो मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है। उधर अखिलेश ने अपने आवास में अपने अधिकारियों के साथ मीटिंग की। उन्होंगे हिंदी संस्थान में आयोजित हिंदी दिवस कार्यक्रम में भी जाने से इंकार कर दिया। दूसरी तरफ, नेताजी से मिलने शिवपाल सिंह दिल्ली चले गये। शिवपाल सिंह यादव को सपा का यू पी का प्रमुख बनाये जाने के बाद अफवाह तो यह है कि मुलायम सिंह यादव कहीं यू पी का प्रभार ना संभाल लें। शिवपाल सिंह को जैसे ही पार्टी की राज्य इकाई का अध्यक्ष बनाया गया उनके घावों को हरा करने के लिये सीएम भतीजे ने उनका मंत्रालय बदल दिया। उन्हें लोक निर्माण, सहकारिता, राजस्व और सिंचाई विभाग से हटाकर सामाजिक कल्याण मंत्रालय सौंप दिया गया। यह मजे की बात है कि जब जब यू पी सपा की सरकार रही है लोक निर्माण, सहकारिता, राजस्व और सिंचाई विभाग शिवपाल सिंह के पास ही रहा है। इससे नाराज होकर शिवपाल सिंह ने कहा कि वे मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देंगे। उन्होंने यह धमकी इसलिये दी थी कि मुलायम सिंह हस्तक्षेप करें। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। गत 14 अगस्त को भी शिवपाल सिंह यादव ने इस्तीफे की धमकी दी थी। लेकिन मुलायम सिंह ने मामला सलटा दिया और शिवपाल ने कहा कि सब कुछ ठीक हो गया है। इसके एक हफ्ते के बाद ही बात का रूख बदलने लगा। मुलायम सिंह के दुबारा दोस्त बने अमर सिंह ने बयान दिया कि ‘मैं मुलायमवादी हूं पर इस राज्य में मुलायमवादी होना लगता है अपराध है।’ इसके अलावा सिंघल की नियुक्ति शिवपाल ने करवायी थी पर उनका पद से हटाया जाना ​शिवपाल का अपमान ही माना जा रहा है। इसके पहले शिवपाल सिंह ने मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के विलय की कोशिश की। सब कुछ तय हो गया। शिवपाल ने मीडिया के सामने बयान भी दे दिया। पर मुख्यमंत्री ने असे उलट दिया ओर विलय नहीं हुआ। शिवपाल की सबके सामने किरकिरी हो गयी। इतना ही नहीं इस विलय प्रयास में अतिसक्रय बलराम यादव को भी सी एम ने हटा दिया। इससे शिवपाल एकदम उखड़ गये और वे इसके बाद होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार में शामिल तक नहीं हुये। यहां यह बता देना उचित होगा कि 2012 में चुनाव के बाद शिवपाल सिंह यादव और मोहम्मद आजम खान अखिलेश सिंह को नेता मानने को तैयार नहीं थे पर मुलायम सिंह की बीच बचाव के बाद मामला सुलझ गया। पर तबसे यह रस्साकशी चल रही है। यादव परिवार में चल रहा यह जोर आजमाइश जल्दी खत्म होगी ऐसा नहीं लगता है। क्योंकि परिवार का हर फर्द एक दूसरे के ​खिलाफ बाहें चढ़ाये हुये है। अखिलेश की पीठ पर उनके एक और चाचा राम गोपाल यादव है तो शिवपाल के साथ नेताजी मुलायम सिंह और उनकी पत्नी हैं। अब देखना यह है कि यह जोर आजमाइश कहां जाकर खत्म होती है। अगर सरकार बच भी जाती हे ओर मुलायम सिंह सब कुछ सलटा भी देते हैं तो चुनाव में मायावती, राहुल  - प्रियंका ओर अमित शाह के व्यूहों को सपा कितना भंग कर पायेगी यह तो समय बतायेगा।

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