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Thursday, September 1, 2016

आज हड़ताल : लेकिन क्यों

वाम पंथी ट्रेड यूनियनों ने अपनी 14 सूत्री मांगों पर देश व्यापी हड़ताल का आह्वान किया है। इस हड़ताल से कितना नुकसान होगा इसका आकलन तो अभी नहीं किया जा सकता है पर जो आर्थिक गति और म्रद्रा प्रसार का अनुपात है उससे अनुमान है कि एक दिन की इस हड़ताल से , सी आई आई के मुताबिक साढ़े 12 हजार करोड़ रुपयों का नुकसान हो सकता है। एक ऐसे देश में जहां आधी आबादी को भर पेट खाना नहीं मिलता वहां अर्थ व्यवस्था में एक दिन में इतना बड़ा घाटा देश की आाबदी और समग्र रूप से समाज पर क्या असर दिखा सकता है इसका अनुमान लगाना बड़ा कठिन है। क्योंकि भूख लाचारी हताशा और कुंठा का मनो विज्ञान कुछ दूसरा होता है ओर उससे सामाजिक अराजकता एवं सामूहिक गुस्सा उपजता है। जरा ध्यान से सोचें कि मोदी सरकार देश में कारोबार को बढ़ावा देना का प्रयास कर रही है लेकिन कारोबार शुरू करने में और भी परेशानियां हैं जो उसकी दुश्मन हैं। इसको लेकर फिक्की इंडिया ने रिस्क सर्वे 2016 जारी किया है जिसमें बताया गया है कि कारोबार को किन चीजों से खतरा है। सर्वे के मुताबिक कारोबार को हड़ताल और बंद जैसी परेशानियों का 10.49 प्रतिशत खतरा है। जबकि 9.71 प्रतिशत परेशानी आईटी और साइबर असुरक्षा से जुड़ी है। वहीं बढ़ता अपराध कारोबारियों के लिए 9.28 प्रतिशत जोखिम पैदा कर सकता है और आतंकवाद से 9.15 प्रतिशत परेशानी होगी। वहीं कारोबारियों के लिए भ्रष्टाचार भी अहम मुसीबत है और इससे करीब 9 प्रतिशत परेशानी पैदा होगी। इन परशिनियों के फलस्वरूप देश में आर्थिक विकास धीमा होगा और उससे सामान्य जीवन सुखी तो नहीं होगा। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने शायद इस पहलू को समझा है और स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि राज्य में हड़ताल नहीं करने दिया जायेगा और साथ ही उन्होंने कहा है कि हड़ताल के दौरान तोड़फोड़ के कारण होने वाली हानि का हर्जाना भी दिया जायेगा। उन्होंने कहा है कि हम हर चीज खुली रखेंगे। गाड़ियां चलेंगी और दुकानें खुली रहेंगी। उन्होंने कहा कि अगर हड़ताल समर्थकों द्वारा गाड़ियों और दुकानों में तोड़फोड़ की गई तो हम कड़ी कार्रवाई करेंगे। हम मुआवजा भी देंगे। अगर वो चाहते हैं तो वो दिल्ली जा सकते है और वहां अपना विरोध दर्ज कराने के लिए धरना दें। दूसरी तरफ हड़ताल बुलाने वाली यूनियन्स की मांग है कि असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए 18,000 रुपए प्रति माह का वेतन तय किया जाए। उनकी ओर से यह मांग भी की गई है कि आवेदन करने के 45 दिन के भीतर ट्रेड यूनयिनों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया जाए और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) में हुए सी -87 और सी -98 सम्मेलनों के सुधार तत्काल लागू किए जायें। लेकिन उनकी ये मांगें क्या व्यवहारिक हैं? भारत खास कर पश्चिम बंगाल जहां एक दैनिक मजदूरी करने वाला आदमी , जैसे रिक्शा चलाने वाला, घरों में काम करने वाले, मोटिया मजदूरी करने वाले या बसों के कंडक्टर या टैक्सी ड्राइवर जैसे असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे लोग एक दिन में ज्यादा से ज्यादा दो सौ से तीन सौ रुपये कमाते हैं। ट्रेड यूनियन वाले ये नेता चाहते हैं कि हसीन सपने के लिये कठोर हकीकत को भुला दिया जाय। वे इस बात का कोई सही उत्तर नहीं दे पा रहे हैं कि एक सपने के लिये अनगिनत लोगों को भूखा रहने के लिये क्यों मजबूर कर रहे हैं? दरअसल हमारे देश में खास कर पश्चिम बंगाल में हड़ताल का उद्देश्य श्रमिक कल्याण नहीं है बल्कि राजनीतिक दलों द्वारा शक्ति प्रदर्शन है। चूंकि , हमारे देश के ट्रेड यूनियन राजनीतिक दलों से आबद्दा हैं इसलिये यह संघर्ष श्रमिक नहीं सियासी है। मजदूरों को यह बात बखूबी समझ में आती है परंतु निचले स्तर पर जिसे फैक्टरी फ्लोर लेवल कहते हैं वहां यूनियन के नेताओं द्वारा मजदूरों के भयादोहन के कारण कोई कुछ बोलता नहीं। इधर हड़ताल से एक दिन पहले सरकार ने मजदूरों का निम्नतम वेतन 18 हजार रुपये प्रति माह करने और दो माह का वेतन देने का निर्णय किया है। साथ ही सरकार ने हड़ताल वापस लेने की अपील की है। पर वे अपनी जगह अडिग हैं। आज हड़ताल होगी और उसका परिणाम कल से सारा देश भोगेगा।

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