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Wednesday, September 28, 2016

जनता का उफनता गुस्सा

जनता का उफनता गुस्सा और सरकार के समक्ष विकल्प

उड़ी में सोये हुये भारतीय फौजियों पर हमले कर उन्हें मौत के घाट उतार देने की कार्रवाई से भारतीय समाज में उफन आया गुस्सा खुद में सामाजिक जीवन में आवेग का गुणक है। अतएव इस हालात का बहुत सावधानी पूर्वक विश्लेषण किया जाना जरूरी है। यह विश्लेषण इस लिये नहीं जरूरी है कि जो हुआ वह गलत हुआ और अति कायरता का सबूत है। हमें इस गुस्से का बड़े ठंडे दिमाग से विश्लेषण करना होगा क्योंकि यह एक ऐसा गुणक है इतिहास को प्रभावित करेगा और युद्ध जैसी घटनाओं पर भी असर डालेगा। अतएव विस्तृत सैन्य सिद्धांतों के वर्णपट पर इसके विभिन्न पहलुओं को देखना होगा। इस मामले में मानवीय भावनाओं का उपयोग बड़ा सिनिकल सा लगेगा इसलिये जरूरी है कि इससे होने वाले लाभ और हानि का लेखा जोखा किया जाय ताकि निकट भविष्य में और सुदूर भविष्य में दोनों मौकों पर इसका उपयोग हो सके। भारतीय मीडिया तो लगातार मुंहतोड़ जवाब देने की बात कर रहा है और पाकिस्तानी मीडिया वहां की सरकार को कोस रहा है कि वह जंग की ओर कदम बड़ा रही है तथा वह जो दलील दे रही है उसपर दुनिया को यकीन नहीं है। अब अगर हम दोनों की बातों पर विचार करते हुये अगर युद्ध की दिशा में सोचते हैं कि  आगे चल कर सरकारों पर इसका क्या असर होगा तो भारतीय मीडिया इस बाजी को जीत लेगी। अब बात आती है कि यह सरकार के लिये क्यों परेशानी का विषय है? इसलिये कि मोदी सरकार और उसके मंत्रियों ने विगत दो वर्षों से ऐसी विचारधारा को जन्म दिया है जो पिछली सरकारों की नीतियों से बिल्कुल भिन्न है। वह विचारधारा है कि ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाना चाहिये। अब ऐसे में जनता की उम्मीदों के वजन को संभालना और फिर हालात का मूल्यांकन करना एक वास्तविक समस्या बन जाती है। भारत और पाकिस्तान के रिश्ते खास कर कश्मीर के संदर्भ में एक इेसा मसला है जो अखबारों की खबरों और टेलीविजन की बहसों से नहीं तय होगा। लेकिन अभी जो हाल है कि ‘घर के भीतर’ लोगों में गुस्सा उफन रहा है जो अपने आप में एक शस्त्र है। जनता के गुस्से का इजहार दानों तरफ के लोगों में एक विचार कायम करने का जरिया बनता जा रहा है। इस विचार मीडिया के वर्तमान प्रसार युग में कितनी भी कोशिश की जाय रोकना मुमकिन नहीं है। मिसाल की तौर पर देखें कि सीमा के उस पार एक आम पाकिस्तानी भारत में टेलीविजन पर होने वाली बहसों को ना देख सकता है ना उसका जवाब दे सकता है। लेकिन रावलपि।डी में बैठे नेता और इसपर इस पर जरूर निगाह रख रहे होंगे और इसका जवाब भी तैयार कर रहे होंगे दूसरी तरफ भारत को लगे कि वे भी तैयार हैं। अब ऐसे में कोई यह पूछता है कि देश के भीतर उफनता गुस्सा एक कारण कैसे बन सकता है तो उसे सबसे पहले ऐसी हालत में सरकार के पास उपलब्ध विकल्पों का जायजा भी लेना होगा। एक खास ऊंचे स्तर पर जनता शुद्ध सैनिक या सामरिक तथ कूटनीतिक उत्तर का अर्थ समझती है और उसे विकल्पों के आधार पर तौलती है। परंतु ऐसे समय में जैसा कि वर्तमान में है हम एक ऐसे युयुत्सु पड़ोसी के समक्ष खड़े हैं जो ऐतिहासिक विवाद का विषय भी है। ऐसे में सामरिक या कूटनीतिक विकल्प अकेले कुछ नहीं कर सकते। ऐसे मौको पर हमें विकल्प के सेट्स को तैयार करना होगा। अगर उर्जा की विज्ञान की भाषा में कहें तो हमें काइनेटिक और ननकाइनेटिक जवाबों के विकल्प देखने होंगे। काइनेटिक विकल्प का अर्थ समझें कि सीधा फौज को झोंक दिया जाय और ननकाइनेटिक विकल्प है कि दूसरे तरीके बल प्रयोग किया जाय। मसलन उसका आर्थिक और अन्य प्रकार के वहिष्कार हों ताकि उसका ज्यादा समय तक प्रभाव हो। लेकिन अगर इसे सही ढंग से नहीं लागू किया गया तो परिणाम घातक भी हो सकते हैं। जैसा कि इराक के साथ हुआ। अब जैसा कि मानव स्वभाव है कोई भी नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान का आम आदमी जंग का शिकार हो इसलिये परमाणु युद्ध जैसे भड़काउ तर्कों से ननकाइनेटिक विकल्प ज्यादा अक्लमंदी होगी। अगर दोनों तरफ औचित्यपूर्ण पृष्ठभूमि में जन आक्रोश उफनता है तो पाकिस्तान अपनी समरनीतियों पर विचार के लिये बाध्य हो जायेगा और दुनिया के सामने लाचार हो जायेगा। भारत को ऐसी ही कोशिशें करनी चाहिये।

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