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Sunday, September 18, 2016

कश्मीर फिर भड़का

कश्मीर में रविवार को  फिर अशांति हो गयी। लाइन ऑफ कंट्रोल के नजदीक उरी सेक्टर में मौजूद आर्मी बेस में एक बैरक में हमलावरों ने आग लगा दी है। 17 जवान शहीद हो गए। हालात संभालने के लिए पैराकमांडो की टीम को मौके पर एयरड्रॉप किया गया है। अभी तक 4 आतंकी मारे गए हैं। विगत 2014 में 5 दिसंबर को भी कश्मीर के इसी इलाके में आतंकियों ने हमला किया था। इसमें 10 जवान शहीद हुए थे। कश्मीर में मौजूदा हालात को देखते हुए होम मिनिस्टर राजनाथ सिंह ने विदेशी दौरे को टाल दिया है। वे अमरीका और रूस जाने वाले थे। यही नहीं, शनिवार को श्रीनगर में सुरक्षाबलों की फायरिंग में एक आदमी के आहत हो जाने के बाद वहां भी उपद्रव आरंभ हो गया और कर्फ्यू लगा दिया गया है। साथ ही , पाकिस्तानी प्रतिनिधि मंडल ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की बैठक में साफ कहा कि यदि ‘भारत बलोचिस्तान का राग अलापना बंद नहीं करेगा तो पाकिस्तान कश्मीर में मानवाधिकार की बात को लेकर भारत को दुनिया के सामने नंगा कर देगा। ’ कश्मीर की इन घटनाओं को समझने के लिये जरूरी है पाकिस्तान के आतंकवाद की साइकी को समझा जाय। पाकिस्तान में विदेश मंत्रालय के समर्थन से वहां की फौज और आई एस आई ने भारत में गड़बड़ी आरंभ की है। हालांकि उसने सीधा हस्तक्षेप बहुत ज्यादा नहीं किया है। वह इस काम को आतंकी गिरोहों की मदद से अंजाम दे रही है। कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की  जो सरकार है वह उसकी भूमिका मामले को सुलझाने की मंशा वाली नहीं लगती है। वैसंे भी अगर महबूबा मुफ्ती का विगत देखें तो पता चलेगा कि वे जब सत्ता में होती हैं तो केंद्र की हां में हां मिलाती हैं और जब सत्ता से बाहर होती हैं तो अलगाववादियों से गलबहियां करती नजर आती​ हैं। वैसे कहने को तो कश्मीर भारत की आंतरिक समस्या है और फिदायीं गिरोहो के जरिये उस समस्या में पाकिस्तान की मदद एक अलग मसला है। यह एक विषम युद्ध है। पाकिस्तान की नीयत तो दुनिया के सामने उसी दिन खुल गयी जब सार्क बैठक में शामिल होने गृहमंत्रही राजनाथ सिंह 3-4 अगस्त को इस्लामा बाद गये थे। और वहां सैयद सलाहुद्दीन और उसके संगठन हरकतुल मुजाहिदीन ने भारत के खिलाफ रैली का आयोजन किया। पाकिस्तान सरकार ने इस रैली को मंजूरी दी थी। इसमें शामिल होनी वाले तीन और देश बंगलादेश, नेपाल और श्रीलंका ने अपने गृहमंत्रियों को नहीं भेजा था क्योंकि आतंकवाद के लिये इनकी सरजमीं के उपयोग की इनकी मौन सहमति है। पाकिस्तान ने द्विपक्षीय वार्ता के सारे दरवाजे बंद कर दिये और कश्मीर पर वार्ता के लिये उफा समझौते पर आगे बढ़ने से इंकार कर दिया। कश्मीर में पाकिस्तान कु इस गतिविधि के कारण प्रधानमंत्री ने अपना रुख बदला और हांगझोउ में जी 20 की बैठक में पाकिस्तान पर सीधा आरोप लगाया कि वह कश्मीर में आतंकवाद को समर्थन देता है। इस स्पष्ट आरोप को सुनकर सभी स्तब्ध हो गये। यहां तक पाकिस्तान के सबसे अजीज दोस्त चीन ने भी कुछ नहीं कहा। पाकिस्तान की विदेश नीति का आतंकियों को समर्थ्गन है यह जग जाहिर हो चुका है। अब इस संदर्भ में पाक के मानस को जरा समझें। अमरीकी खीफया एजेंसी के अवर्गीकृत कर दिये गये दस्तावेजों से स्पष्ट है कि आई एस आई ने अफगानिस्तान में सी आई ए के एक शिविर पर हमले के लिये हक्कानी गुट को दो लाख डालर दिये थे। यही नहीं अफगान खुफिया एजेंसी ने भी इस तरह के कई दस्तावेज जारी किये जिसमें आई एस आई की कारगुजारियों का पर्दाफाश हुआ है। लश्करे तैयबा के प्रमुख हाफिज सईद पर अमरीका ने एक करोड़ डालर का ईनाम रखा है। लेकिन पाकिस्तान में छुट्टा घूमता है और भारत के खिलाफ जहर उगलता है। पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने उसे भारत के खिलाफ पाकिस्तानी रिजर्व फौज की संज्ञा दी थी। इसने ही मुम्बई पर हमला किया था। अमरीका ने दिखाने के लिये चेतावनियां जारी की हैं और पाकिस्तान जानता है कि इसका कोई मतलब नहीं है। क्योंकि एकतरफ वह चेतावनी जारी करता है और दूसरी तरफ उसके विदेश सचिव जॉन कैरी भारत आकर कहते हैं कि पाकिस्तान भी आतंकवाद से पीड़ित है। उधर , चीन मस्त है। वह पाकिस्तान को और असके आतंकी संगठनों को मदद करेगा। क्योंकि वह जानता है कि जबतक समर्थन देगा तब तक उसके सिरदर्द उइगर मुस्लिम आतंकवादियों को पाकिस्तानी आतंकी पनाह नहीं देंगे। चीन के लिये ‘हमारी भी जय जय , तुम्हारी भी जय जय ’ की स्थिति है। बंगलादेश में आतंकियों को मदद और 1971 के युद्ध अपराधियों के लिये घड़ियाली आंसू बहाने से पाकिस्तान की पड़ोसी देशों में और साख गिर गयी है। एक तरह से लगता है पाकिस्तानी नेता आत्मप्रवंचना के शिकार हैं और इसीलिये वे कश्मीर में खुद को संलग्न कर अपने इगो का सम्पोषण कर रहे है।

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