अपराध शास्त्र का एक आम सिद्धांत है कि आर्थिक तौर पर सम्पन्न लोग आर्थिक अपराधों में ज्यादा लिप्त रहते हैं। लेकिन जहां सामाजिक समुच्चयों के मानस का समन्वित विश्लेषण किया जाता है वहां अक्सर देखा जाता है कि विपन्न राज्यों में आर्थिक अपराध ज्यादा होते हैं। वैसे अखबारों अक्सर यह खबार आती है कि जिन राज्यों में आर्थिक गतिविधियां ज्यादा हैं वहीं धोखाधड़ी, जालीनोटों का चलन और ठगी जैसी घटनाएं ज्यादा होती हैं। पर राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (एन सी आर बी) के आंकड़ों के मुताबिक 2015 में विपन्न राज्यों में भारतीय दंड संहिता के तहत अधिक आर्थिक अपराध दर्ज किये गये। जिन राज्यों में सबसे ज्यादा आर्थिक अपराध दर्ज किये गये उनके बारे में बहुत कम उम्मीद थी। सन् 2015 में राजस्थान, पंजाब और उत्तराखंड में आई पी सी के तहत जितने दर्ज किये गये उनमें से पजिब राजस्थान और उत्तराखंड में आर्थिक अपराधों के अनुपात चौंकाने वाले थे। राजस्थान में कुल अपराधों के 13.7 प्रतिशत , पंजाब में कुल अपराधों के 10.9 प्रतिशत और उत्तराखंड में 10.4 प्रतिशत आर्थिक अपराध थे। इसके विपरीत जो राज्य ज्यादा विकसित और आर्थिक तौर पर विकसित राज्य हैं उनमें दर्ज किये गये कुल अपराधों में से आर्थिक अपराधों का अनुपात कम रहा है। मसलन महाराष्ट्र में 5 प्रतिशत और गुजरात में 2.5 प्रतिशत अनुपात रहा। दक्षिण भारत के विकसित राज्यों में से एक तमिलनाडु में इसका प्रतिशत 2.8 प्रतिशत रहा। इस विरोधाभासी परिदृश्य का एक और उदाहरण है महाराष्ट्र और राजस्थान का। देश में आर्थिक तौर पर सबसे सम्पन्न राज्य महाराष्ट्र में 2015 में आर्थिक अपराधों की कुल संख्या 13733 थी जबकि बीमारू राज्यों में से एक राजस्थान में इसकी संख्या 27071 थी। लगभग दोगुनी। अपराधशास्त्रीय विश्लेषण के लिये समन्वित चरम संख्यायें उचित नहीं होती हैं। इसके लिये प्रति लाख आबदी के आंकड़े स्थितियों को स्पष्ट करते हैं। अगर प्रतिलाख आबादी पर कुल अपराधों में से आर्थिक अपराध के आंकड़े देखेंगे तो पता चलेगा कि सर्वाधिक हिस्सा राजस्थान (37) तेलांगना ( 24.6), असम ( 20.9), हरियाणा ( 18.6) ओर केरल (15.1 ) है। ये राज्य देश के पिछड़े और आर्थिक तौर पर कम सम्पनन राज्यों में गिने जाते हैं। जबकि आर्थिक रूप से विकसित राज्य महाराष्ट्र में यह संख्या 11.5 ,गुजरात में 5.1, तमिलनाडु में 7.7 और गोवा में 10.8 है। यही नहीं बड़े शहर और प्रांतीय राजधानियों में भी आर्थिक अपराधों की संख्या कम नहीं है। मसलन दिल्ली और चंडीगढ़ में क्रमश: 34.2 और 21.4 रहा। जिन राज्यों का यहा जिक्र आया वे राज्य या स्थान कई मामलों में अशांत हैं और वहां विद्रोहात्मक गतिविधियों के संकेत मिल रहे हैं। यहां यह बता देना जरूरी है कि किसी भी देश के सुरक्षा ढांचे को कई तरह से कमजोर किया जा सकता है। उनका मोटे तौर पर हम दो वर्ग तैयार कर सकते हैं। एक है बाहरी और दूसरा भीतरी। ये आर्थिक उस भीतरी कारण की पहली सीढ़ी हैं। आर्थिक सुरक्षा सर्वांगीण तथा एकीकृत राष्ट्रीय सुरक्षा का महत्वपूर्ण अंग है। आर्थिक अस्थिरता, असुरक्षा का प्रभाव निश्चित ही विपरीत रूप से एकीकृत राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ता है। जाली व बनावटी मुद्रा का प्रचलन भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत बड़ा खतरा बन गया है। जाली, नकली मुद्रा विदेशों में विशेषत: पाकिस्तान में छापी जाती है तथा बाहरी देशों से पूर्व नियोजित व्यवस्था तथा प्रणाली के तहत भारत भेजी जाती है। भारत में ही रहनेवाले राष्ट्रद्रोही तत्व अपने संकुचित दृष्टिकोण तथा वैयक्तिक काम की लालच में जाली मुद्रा का प्रसारण, वितरण व काले धन का व्यवसाय करते है। यदि जनता तथा शासकीय व्यवस्था संयुक्त रूप से कार्य करें तभी हम इस आर्थिक आक्रमण का संयुक्त रूप से, सक्षमता से सामना कर सकेंगे। इसीलिए हम सब को सजग रहना चाहिए।
Thursday, September 8, 2016
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