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Friday, September 2, 2016

पाक से शांति के बिना कश्मीर का मसला हल नहीं हो सकता

पाकिस्तान से बातचीत के दरवाजे खोलने के प्रयास स्वरूप कश्मीर पर सम्बद्ध दलों से वार्ता की पहल शुरू हो गयी है। यह पहला अवसर नहीं जब ऐसा हो रहा है। इसके पहले भी कई बार ऐसा हो चुका है और दोनों देशों के रिश्ते कई बार बहुत बिगड़ चुके हैं। दरअसल इस मामले में हमारी सरकार एक कदम आगे और दो कदम पीछे कर रही है। गणित के अनुसार भी इस आगा पीछा का परिणम अक्सर पीछे जाना ही होता है। यहां जो सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है वह है कि यह तीछे जाना कब तक जारी रहेगा। यह तरीका दरअसल कुछ ऐसा है कि इस पर दोनों पक्ष ना टिक सकते हैं और ना भरोसा कर सकते हैं। जब भी रिश्ते खराब होते हैं जैसे अभी हैं तो दानों तरफसे धमकियों और चेतावनियों का बाजार गरम हो जाता है। यह ‘डायलॉगबाजी’ हिंदी फिल्मों की सस्ती डायलॉग बाजी की याद दिलाती है जिसमें अपमानजनक वाक्य और निराधार धमकियां भरी होती हैं। भारत चूंकि फौजी ताकत में उभरता हुआ देश है और पाकिस्तान को ललकार कर सियासी पूंजी एकत्र की जा सकती है इसलिये वह उसे मूंछे ऐंठ कर ललकारता है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान जिसकी विदेश नीति का आधार ही भारत को ललकारना है वह जवाबी ताल ठोंकता है। इस क्रिया प्रक्रिया से दोनों देशों में धार्मिक उन्माद का जन्म होता है और इसे सहज प्रक्रिया समझ लिया जाता है। भारतपिकिस्तान के सम्बंधों की एक खूबी और है कि यह स्थिति या अवसर सापेक्ष है। आज कीस्थिति के खराब होने का कारण कश्मीर समस्या है। यह समस्या असल में दिल्ली दरबार की गलत निर्णयों और कदमो के कारण उभरी तथा विकसित हुई। पाकिस्तान ने मौका देखा और उसने दुनिया के सामने कश्मीरियों पर जुल्मोसितम का रोना लगा दिया। भारत ने भी अवसर नहीं गंवाया उसने भी जवाब में बलोचिस्तान, गिलगित – बाल्टिस्तान और पाक अधिकृत कश्मरि में ज्यादतियों का मसला उठा दिया। भारत और पाकिस्तान को अपनी राष्ट्रीयता संस्कृति , भाषा तथा जमीनी हकीकतों के संदर्भ में परिभाषित करनी चाहिये ना कि धर्म के आधार पर। लेकिन मुश्किल यह है कि अपनी श्रेष्ठता प्रदर्शित करने के लिये दोनो वही कर रहे हैं जो नहीं करना चाहिये। ऐसा लगता है कि दोनो तरफ खुफिया एजेंसियां विदेश नीति को संचालित कर रहीं हैं ऐसा होना बड़ा खतरनाक है। अरसे से दोनों देशों के बुद्धिजीवयों ने रिश्ते सुधारने के कई उपाय बताये हैं लेकिन उसपर कोई ध्यान नहीं दिया। ऐसे नजरिये भविष्य में खतरनाक हो सकते हैं। इसके लिये बेहतर होता कि कश्मीर में व्याप्त अशांति को दोनों देश खत्म करें। इसके लिये भारत सरकार ने अब कदम उठाया है। अच्छा होता कि पाकिस्तान इसका लाभ लेने की कोशिश ना करे। दोनों देशों का अपनी राष्ट्रीयता संस्कृति के संदर्भ में परिभाषित करनी चाहिये। अगर पाकिस्तान इस्लाम को आधार मानेगा और भारत हिंदुत्व को मामला बिगड़ सकता है। विदेश नीति को राजनीतिज्ञों और कूटनीतिज्ञों पर छोड़ दिया जाय। सुरक्षा जिंसियों तथा खुफिया एजेंसियों का अधिकार इस मामले में सीमित कर दिया जाय। हालांकि परमाणु बमो के कारण भारत पाक में पारम्पिरिक युद्ध की संभावनाएं सीमित हो गयीं हैं पर दोनो देश ‘गोपनीय अस्त्रों’ की मदद से एक दूसरे को अस्थिर करने में लगे हैं , खास कर पाकिस्तान ऐसी कारगुजारी में ज्यादा जुड़ा है। दोनों देशो के बीच इतना ज्यादा अविश्वास बढ़ गया है कि अब अगर नहीं संभाला गया तो भविष्य में कुछ भी हो सकता है। खास कर पाकिस्तान को तो इस तरह की हरकतों से बाज आना चाहिये। कश्मीर समस्या का मूल है अतएव कश्मीर समस्या का सही समाधान ही हालात को सुधार सकता है। जहां तक दोनो देशों का सवाल है तो दोनों तरफ के लोग शांति और मैत्री चाहते हैं। इसके लिये दोनो देशों के राजनीतिक नेतृत्व को सुरक्षा तथा खुफिया एजेंसियों की भय भीति से मुक्त होना पड़ेगा और सहज बुद्धि से काम लेना होगा, तब ही शांति संभव है।

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