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Wednesday, September 7, 2016

‘मेक इन इंडिया’ : थोड़ी हकीकत ज्यादा फसाना

पिछले 25 सितम्बर 2014 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ का पांचज्न्य फूंका उस समय उन्होंने कहा ‘यह भारतीय अर्थ व्यवस्था के विकास और लाखों नौजवानों के रोजगर सृजन की दिशा में शेर की छलांग है।’ इस योजना के कर्ताधर्ता अमिताभ कांत ने कहा कि ‘मेक इन इंडिया विकास की दिशश्में एक नवीन सोच है।’ जबकि पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने इसे यू पी ए की विकास नीति की कार्बन कॉपी बताया। यह सचमुच कार्बन कॉपी है या नहीं इस पर बहस जरूरी नहीं है क्योंकि इसे राजनीतिक जुमलेबाजी कह कर खारिज कर दिया जा सकता है। लेकिन अगर पूरे मसले का विश्लेषण किया जाय तो ऐसा लगेगा कि यह शेर की छलांग तो खरगोश की व्छाल भी नहीं है। इसी वर्ष 13 फरवरी को ‘मेक इन इंडिया’ सप्ताह का उद्घाटन करते हुये प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘सरकार की मेक इन इंडिया की पहल के पीछे स्पष्ट तर्क है कि हमने इसे हमारे नौजवानो के लिये रोजगार और स्व रोजगार के अवसर पैदा करने के लिये शुरू किया। भारत को एक ग्लोबल उत्पादन केंद्र बनाने के लिये हम प्रयास कर रहे हैंऔर सरकार की योजना है कि निकट भविष्य में भारत के जी डी पी में उत्पादन क्षेत्र का योगदान 25 प्रतिशत हो जाय।’ प्रधानमंत्री के इस भाषण से साफ पता चलता है कि उद्देश्य है जी डी पी में उत्पादन क्षेत्र के योगदान को 2020 तक 25 प्रतिशत बढ़ाना और इससे उम्मीद है कि 10 करोड़ नौजवानों को रोजगार मिलेगा। अब देखें कि यह चल कैसा रहा है। यदि आप सुर्खियों पर यकीन करते हैं तो प्रधानमंत्री विदेश यात्राओं, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को हटाने और कारोबार की सुविधा के लिये बंदिशों को ढीला करने के फलस्वरूप प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 27 प्रतिशत वृद्धि हुई जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि लगभग 45 अरब डालर का निवेश हुआ है। यह अबतक का सार्वकालिक उच्चतम है। वित्त मंत्रालय मेक इन इंडिया को ही इसका श्रेय देता है। हमारी सोशल मीडिया पर भी जोरदार प्रचार चल रहा है ‘मेक इन इंडिया’ के पक्ष में। एक नारा आया है ‘मेक इन इंडिया’ के लिये कि ‘शेर गरज रहा है।’ …लेकिन आप जैसे जैसे इस शेर के करीब जायेंगे वैसे वैसे वह दहाड़ मीमियाहट में बदलती महसूस होगी। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किये आंकड़े, खास कर ‘मेक इन इंडिया’ के संदर्भ में उत्पादन क्षेत्र के आंकड़ों में बताया गया है कि विदेशी निवेश 2015-16 में 8.4 अरब डालर हो गया था। जबकि 2014-15 में 9.6 अरब डालर था। 2015-16 की निवेश की राशि 2011-12 के 9.3 अरब डाल से भी कम है। यहां यह बता देना जरूरी है कि यह राशि रिजर्व बैंक और अनय एजेंसियों द्वारा दी गयी मंजूरी के आधार पर निवेशित की गयी है। इसमें शेयर की खरीद और निवेश की कारण हुई आय के पुनर्निवेश को शामिल नहीं किया गया है। यही नहीं विगत चार वर्षों में उत्पादन में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश 35-40 प्रतिशत था जो 2015-16 में घट कर 23 प्रतिशत हो गया। उत्पादन के अलावा अन्य सेवाएं जैसे ‘थिंक ई, एमाजोन, स्नैपडील, फिल्पकार्ट, उबर , ओला’ ज्यादा निवेश कर रहे हैं। अब विस्तृत अर्थव्यवस्था के बारे में सोचें। ‘मेक इन इंडिया’ का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में उत्पादन क्षेत्र का अंश बढ़ा कर रोजगार के मौकों को तैयार करना है। दुख तो इस बात का है कि रोजगार की दिशा में कोई विकास नहीं हुआ है। पिछले एक दशक से कोई विकास तो हो नहीं  रहा है उल्टे अवसर घटते ही जा रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि ढांचे तैयार करने, श्रम कानूनों में सुधार करने या उन्हें तैयार करने , कारोबार की सुविधाओं के वातावरण बनाने इत्यादि कामों में समय लगता है ओर उनके नतीजे भी समय से ही आते हैं। लेकिन मोदी जी और उनकी सरकार ने मतदाताओं को यह विश्वास दिलाया कि बस ये सब होने ही वाला है या बस हो रहा है। जहां तक ‘मेक इन इंडिया’ का सवाल है यह एक ब्रांड तैयार करने की कवायद है। जिसके माध्यम से यह बताने की कोशिश की जा रही है कि बहुत कुछ होगा। हर चीज को ‘मेक इन इंडिया’ बता कर ट्वीट कर दिया जा रहा है। चाहे वह किसी कारखाने का उद्घाटन हो या किसी सड़क के निर्माण की शुरुआत हो या कोई पुराना चल रहा काम पूरा हो गया हो या किसी सुरक्षा समझौते पर दस्तखत हुये हों। लेकिन जहां तक सवाल है उत्पादन क्षेत्र से जी डी पी में विकास का तो उस दिशा में कुछ नहीं हो रहा है। एक दशक पहले हम जहां थे वहीं खड़े हैं।  अभी हाल में भारतीय युद्धक विमान तेजस का उड़ान परीक्षण हुआ। सरकार ने इस सफलता को ‘मेक इन इंडिया’ बता कर ट्वीट किया। जबकि इसका विकास 2001 से चल रहा था। यही ब्राह्मोस मिसाइल के साथ भी हुआ। यह रूसी परियोजना थी और इसे भारतीय सॉफ्टवेयर के साथ 2005 में तैयार किया गया था जो अब कमीशन हुआ। दरअसल मोदी सरकार पुराने चल रहे कामों पर भी खुद का श्रेय लेना चाहती है। सारा प्रयास केवल वापटुता है। हकीकत बहुत कम है।

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