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Sunday, September 25, 2016

बड़ी बड़ी बातों से क्या होगा

शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोझिकोड में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में लम्बा भाषण दिया। वहां मौजूद मलयालम भाषी जनता ने उनकी हिंदी का अनुवाद सुनने का इंतजार नहीं किया और पाकिस्तान शब्द पर तालियां बजतीं रहीं। रविवार के अखबारों की सुखियों में भी वही बात थी। लेकिन जरा गौर कि उड़ी घटना के हफ्ते भर बाद तक सरकार की तरफ से आने वाले बयान की भारत प्रतीक्षा करता रहा। यहां पाकिस्तान द्वारा भेजे गये आतंकियों के हमले में हमारे 18 सैनिक शहीद हो गये। यह अपने तरह की पहली घटना है। मोदी जी ने अपने भाषण में बहुत कुछ कहा। पाकिस्तान को आतंकवादियों अड्डा कहा, अपनी फौज को बहादुर बताया और बल पूर्वक कहा कि हम आतकिवाद के समक्ष घुटने नहीं टेकेंगे। उन्होंने जुलफीकार अली भुट्टो के हजार साला जंग की बात का स्मरण करते हुये बकायदा ताल ठोंका कि मैं ‘मैं भुट्टो की चुनौती स्वीकार करता हूं।’ इसके बाद तालियों की गड़गड़ाहट के बीच वे थोड़ा रुके। जनता को मोदी जी से ऐसी ही बात की उम्मीद थी। 2014 के अपने चुनाव प्रचार में उन्होंने पाकिस्तान को ही प्रचार का मुद्दा बनाया था। जब उन्होंने कहा कि देश भर में गुस्सा है क्योंकि पाकिस्तान द्वारा भेजे गये आतंकियों के हमले में हमारे 18 जवान शहीद हो गये, यह पहला वाकया था जब सरकार की तरफ से ऐसा बयान आया था और सरकार ने जनभावना को स्वीकार किया था। मोदी जी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर फब्ती कसी कि वे राष्ट्र संघ महासभा में कश्मीर का मामला उठा रहे हैं और खुद गिलगित और बलोचिस्तान से नहीं निपट पा रहे हैं। बंगलादेश जो कभी उनका हिस्सा था वह तो वे संभाल नहीं पाये और कश्मीर की बात कर रहे हैं। कश्मीर की बात करके मोदी जी कश्मीर की समस्या पर बोलने से कतरा गये। कश्मीर में उपद्रवों में 87 आदमी मारे गये थे जो भारतीय थे। मोदी जी के समग्र भाषण को सुनने पर ऐसा लगा कि वे कश्मीर को या कोझिकोड को या पूरे भारत को सम्बोधित नहीं कर रहे थे। उनका भाष्ण ऐसा लगता है कि वे विश्व नेता हैं और क्षेत्रीय झगड़े से अलग कोई विश्व शांति और समृद्धि की बात कर रहा है। उन्होंने कहा ‘‘आप गिलगित और बलोचिस्तान से निपट नहीं पा रहे हैं और कश्मीर की बात कर रहे हैं।’’ भुट्टो की चुनौती की बात करने के बाद उन्होंने कूटनीतिक पैंतरा बदला और सीधे पाकिस्तान की जनता से मुखातिब हो गये। उन्होंने पाकिस्तान जनता को वहां की सेना से अलग करते हुये कहा कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सरकार पर सेना का हुक्म चलता है। उन्होंने कहा कि ‘मैं चुनौती कबूल करता हूं पर पाक की जनता अपने शासकों पूछे कि जब दोनों देशों ने  एक साथ आजादी पायी और आज हम सॉफ्टवेयर निर्यात कर रहे हैं ओर पाकिस्तान आतंकी। अगर साहस है तो हमसे मुकाबला करो कि कौन पहले गरीबी खत्म करता है कौन पहले जहालत दूर करता है , कौन बच्चों की मृत्युदर को शून्य पर पहुंचाता है।’ मोदी जी के भाषण को सुनने के बाद ऐसा लगता है कि वे 2014 की बातें भूल गये हैं। आज वे कह रहे हैं कि हम अपने 18 सैनिकों की शहादत नहीं भूल सकते। हम जल्दी  ही उसे दुनिया से अलग थलग कर देंगे और तब उसके अपने ही लोग उसके खिलाफ खड़े दिखेंगे। मोदी जी एक सफल वक्ता हैं और वे लोगों के भीतर उम्मीदें जगा सकते हैं, जरूरी नहीं कि उन उम्मीदों को पूरा ही करें। अपने चुनाव प्रचार के दौरान जो उन्होंने काले धन की बात की थी या पाकिस्तान के खिलाफ बड़ी बड़ी बातें की उनका हश्र क्या हुआ, यह सब देख रहे हैं। मोदी जी पूर्ववर्ती सरकार को जम कर केवल इसलिये कोसा था कि वह पाकिस्तानियों को कड़ा जवाब नही दे सकते। मोदी जी की बात सुनकर लगता है कि इससे कुछ होने वाला नहीं है। उनकी हर प्रयास के बावजूद लगता है कि कुछ हो नहीं पायेगा। भारत पाकिस्तान को अलग थलग करने में कामयाब नहीं हो पाोगा। राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्यों में कम से कम दो- चीन और अमरीका- उससे अलग हो नहीं सकते हैं। इसके विपरीत भारत का पुराना दोस्त रूस अब पाक के साथ युद्धाभ्यास कर रहा है।  तुर्की, जिसके करीब आने की भारत कोशिश कर रहा है, ने पाकिस्तान का नाम आने पर किनारे हो गया और जनमत संग्रह की बात आयी तो वह उसी के पक्ष में हो गया। रूस ने कहा कि वह अधिकृत कश्मीर में अभ्यास नहीं करेगा। यस बस बात रखने की बात है। भारत को बस एक ही कामयाबी मिली है कि वह राष्ट्र संघ महासभा में अध्यक्ष को भाषण से कश्मीर पर बोलने से रोक दिया। हो सकता है कि मोदी जी की बड़ी बड़ी बातों से आज उनके समर्थक ठीक से सो लें पर कल क्या होगा, जनता को तो अपने सवाल का उत्तर चाहिये।

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