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Thursday, September 22, 2016

उड़ी हमला : विपक्ष को विश्वास में लेने से क्यों हिचक रहे हैं मोदी

बेशक मोदी जी अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का मखौल बनाने में मजा लेते होंगे पर जब बात भारत पाकिस्तान की नीति की आती है तो मोदी कूटनीतिक सिद्धातों में सबसे अलग नहीं हैं। वस्तुत: जब उड़ी हमले की बात आती है तो मोदी​ जी यह रुख सही नहीं महसूस होता है। जहां पूरे देश के संयुक्त ‘रेस्पांस’ की जरूरत होती है वहां सत्ताधारी दल अकेले क्या कर सकता है?  इस घटना को देख कर यही लग रहा है कि मोदी जी विपक्षी दलों से किनारा कर रहे हैं। अब शायद वे दिन लद गये जब सरकार ऐसे संवेदनशील मामलों पर विपक्षी दलों को विश्वास में लेकर कोई अंतिम फैसला करती थी। शायद राजीव गांधी और नरसिंराव अंतिम प्रधानमंत्री थे जिनहोंने पाकिस्तान का जवाब देने के लिये विपक्षी दलों को साथ लिया था। अब तो भाजपा इस काम के लिये शायद विपक्ष को अयोग्य समझती है। नरसिंहराव ने राष्ट्र संघ में भारत के खिलाफ बोलने वालों का जवाब देने के लिये अटल बिहारी वाजपेयी को भेजा था। अब वह दो दलीय प्रणाली दिख नहीं रही है। बेशक मोदी जी का 56 इंच का सीना होगा पर उस सीने के भीतर उतना बड़ा दिल नहीं है जो ओछी सियासत से आगे जाकर हालात का जायजा ले। बुधवार को तारिक अनवर का बयान आया कि हम इस पर राजनीति नहीं करना चाहते तब भी मोदी जी सबको साथ लेने में न जाने क्यों झिझक रहे हैं। अनवर एन सी पी के नेता हैं और मंत्री भी रह चुके हैं। उनका मानना है कि यह राष्ट्रीय महत्व का प्रश्न है और इसमें विपक्ष को साथ लेकर चलना चाहिये, न जाने क्यों उन्होंने विपक्ष को अलग किया हुआ है। जद यू के नेता के सी त्यागी ने भी लगभग यही बात कही साथ में उनका विचार था कि राष्ट्र संघ महासभा में 29 सितम्बर को भाषण देने के लिये जब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जाएं तो उनके साथ विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेताओं का एक दल भी जाय। भाजपा ने ऐसी किसी भी संभावना से इंकार कर दिया। वरिष्ठ कांग्रेस मनीष तिवारी ने तो साफ कह दिया कि विपक्ष को विश्वास में नहीं लेने की सरकार की नीयत से तो ऐसा लगता है कि सरकार की कोई पाकिस्तान नीति ही नहीं है। वे दिन अब नहीं रहे जब सरकार पाकिस्तान और कश्मीर विपक्ष को विश्वास में लेने से हिचकती नहीं थी। त्यागीने कहा कि मोदी जी को वाजपेयी जी से सीखना चाहिये कि कारगिल युद्ध में कदम बढ़ाने से पहले उन्होंने विपक्षी नेताओं की बैठक बुलायी थी। उस बैठक में सोनिया गांधी को भी बुलाया गया था। सोनिया जी इस तरह की किसी बैठक में पहली बार शामिल हो रहीं थी। यही नहीं, नरसिंह राव ने राष्ट्र संघ मानवाधिकार आयोग की बैठक में भारत का नेतृत्व करने के लिये आमंत्रित किया था। यही नहीं वाजपेयी जी कारगिल पुद्ध के हर पहलू पर विचार के लिये विपक्ष को बुलाते थे। उनका इरादा था कि इससे देश की एकजुट छवि दिखेगी। लेकिन कई सुरक्षा विशेषज्ञ सरकार के इस फैसले से सहमत हैं। उनका मानना है कि उड़ी हमले में सरकार के जवाब का खुलासा नहीं किया जाना चाहिये। लेकिन उड़ी हमले के एक दिन बाद तक प्रधानमंत्री का बयान नहीं आने से पार्टी पर जनता का दवाब तो पड़ ही रहा है। हमले के दिन यानी रविवार को भाजपा नेताओं बड़ा अक्रामक बयान दिया था पर उसके बाद जवाब में वह तीखापन नहीं दिख रहा है। लगता है पार्टी की ओर से मना कर दिया गया है। विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, भारत और पाकिस्तान के संबंध कभी एक से नहीं रहे। सेना के रिटायर्ड जनरल और विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह ने तो हद कर दी। उन्होंने फौज को सलाह दी कि ‘वह पूरी योजना बना कर ठंडे दिमाग से इसका उत्तर दे। ’  जनता इस स्थिति का मजाक उड़ा रही है। अगले साल यू पी में चुनाव हैं और इस स्थिति का असर पड़ना लाजिमी है।

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