वज्रादपि कठोराणि मृदुणि कुसुमादपि
दुनिया के सबसे बड़े मंच संयुक्त राष्ट्र महासभा के 71वें सत्र में भारत के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 193 देशों के सामने कहा कि कुछ देश आतंकवाद पालने का शौक रखते हैं। उन्होंने पाकिस्तान को आइना ज्दिखाते हुये शुरुआत में मानवता, शांति और गरीबी पर अपनी बात कही और बाद में आतंकवाद पर उसे घेरा। 21 सितंबर 2016 को पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ के भाषण पर सुषमा ने पलटवार करते हुए कहा कि जिनके घर शीशे के हों, वो दूसरे के घर पत्थर नहीं फेंकते। शरीफ के कश्मीर राग पर सुषमा जी ने स्पष्ट किया कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और कोई भी इसे हमसे नहीं छीन सकता। सुषमा जी का यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तान बार-बार कश्मीर मसले पर संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप की मांग करता रहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बलूचिस्तान पर पहले ही साफ कर चुके हैं कि भारत के लिए अब वह अछूता मुद्दा नहीं है। लेकिन सुषमा स्वराज इस मुद्दे को अब संयुक्त राष्ट्र में भी ले गई हैं। पिछले हफ्ते कश्मीर में भारत के खिलाफ मानवाधिकार हनन का आरोप लगा चुके शरीफ को सुषमा ने दो टूक कहा, उन्हें अपने घर में भी झांक कर देखना चाहिए कि बलूचिस्तान में क्या हो रहा है? बलूचियों पर होने वाला अत्याचार यातना की पराकाष्ठा है। सुषमा जी ने पाकिस्तान की तरफ इशारा करते हुए कहा, 'कुछ देशों के लिए आतंक को मदद करना शौक बन गया है। दुनिया में कुछ ऐसे देश हैं जो आतंकियों को बोते, उगाते और पालते हैं। आतंकवाद का निर्यात भी करते हैं। आतंकवाद के ऐसे शौकीन देशों की पहचान होनी चाहिए। और, उन्हें अलग-थलग कर देना चाहिए। आज आतंकवाद ने राक्षस का रूप धारण कर लिया है। उसके अनगिनत मुंह हैं, अनगिनत पैर हैं, अनगिनत हाथ हैं। नवाज शरीफ ने भारत-पाक वार्ता की नाकामी का ठीकरा नई दिल्ली पर थोपने की कोशिश की थी। इस पर सुषमा जीं बोलीं, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के मौके पर नवाज शरीफ को बिना शर्त आमंत्रित किया गया था। हमने हमेशा मित्रता की पहल की और हमें बदले में उड़ी मिला।' ''हमें अपने मतभेद भुलाकर आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होना होगा। हमें पुराने समीकरण तोड़ने होंगे और दृढ़ निश्चय के साथ आतंकवाद का सामना करने की रणनीति बनानी होगी।'' सुषमा स्वराज ने जोर देकर कहा कि, ''यदि कोई देश इस तरह की रणनीति में शामिल नहीं होना चाहता तो उसे अलग थलग किया जाए। सचमुच आतंकवाद के खिलाफ व्यापक वैश्विक संधि का प्रस्ताव 20 साल से लंबित है। 1996 में इसे पेश किया गया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ। आतंकवाद के खिलाफ कोई अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं बना जो आतंकवादियों को सजा दे सके। 1945 में कुछ ही देशों के हितों की रक्षा के लिए यह बना था। आज की वास्तविकता और परिस्थितियों के अनुसार इसमें बदलाव करना होगा। सुरक्षा परिषद की स्थायी और अस्थायी सदस्यता का विस्तार होना चाहिए। सुषमा जी ने जो बात राष्ट्र संघ में नहीं कहीं वह है कि आतंकवाद के इस पालक मुल्क की हर गतिविधि खास कर आतंकी गतिविधियों को हमारे देश में या दुनिया की मीडिया में प्रचार मिलता है जिससे शिकार देश या क्षेत्र के साथ साथ सभी पर एक मानसिक दबव पड़ता है और हमलावरों को साहस मिलता है। पहले कदम के तौर पर इस पर संयम बरतने की सलाह दी जानी चाहिये। विश्वमंच को इस पहलू पर भी विचार करना चाहिये। किसी राष्ट्र पोषित आतंकवाद तबतक खत्म नहीं हो सकता जबतक उस पर थर्थिक, कूटनीतिक तथा सांस्कृतिक पाबंदियां ना लगायीं जायें। पाकिस्तान पर भी ऐसी पाबंदियों लागू करने की वैश्विक पहल जहरूरी है। क्योंकि वह परमाणु शस्त्र से लैस देश है तथा अगर उत्तेजना ण्या आतंकवाद के समर्थक तत्वों के प्रभाव में आकर कभी इसका उपयोग कर लिया तो अंजाम क्या होगा यह सब सोच सकते हैं। किसी सिरफिरे के हाथ में परमाणु बम का ट्रेगर बटन का होना बेहद खतरनाक है क्योंकि इस पर दुनिया की एक बहुत बड़ी आबादी का भविष्य निर्भर है।
0 comments:
Post a Comment