CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Monday, September 26, 2016

विचित्र उत्तेजक अवसाद में फंसा देश

विगत हफ्ते भर से अपना देश एक अजीब स्थिति में अलझा हुआ है। जिन लोगों ने आज तक एक गोली भी नहीं चलायी वे लगातार सलाह देते हुये देखे - सुने-पढ़े जा रहे हैं कि पाकिस्तान पर हमला कर ही दिया जाय। कई लोग अदम्य शौर्य दिखाते देखे जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर मृत या घायल जवानों की तस्वीरे डाल कर भारत माता की जय कहने की बात कही जा रही है। पूरा देश एक खास किस्म के अवसाद भी उत्तेजना से ग्रस्त है। यहां तक कि रक्षा मंत्री ने भी कड़क आवाज में प्रतिक्रिया जाहिर की और उड़ी की घटना की भयानक चूकों को देखते हुये चुप हो गये। उन्होंने मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर छोड़ दिया। हमारे राजनयिकों ने जैसी बातें कहीं उनसे तो लगता है कि पाकिस्तान दुनिया में अकेला पड़ गया है। नवाज शरीफ के बॉडी लैंग्वेज के भारतीय मीडिया में जरूरत से ज्यादा विश्लेषण किया गया। जहां तक राष्ट्र संघ में पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने के प्रस्ताव का सवाल है तो यह एक शातिर चालाकी है, एक तरह प्रेशर वाल्व की तरह, लोगों का गुस्सा थोड़ा कम करने की कोशिश। जो लोग देश की हिफाजत के लिये जिममेवार हैं वे लगातार हमें आश्वस्त करते आ रहे हैं कि किसी भी तरह के दुश्मन को सबक सिखा सकते हैं। यह सब खोखले बोलों की तरह लग रहे हैं। यहां तक कि एक सफल जासूस के रूप में दुनिया भर में मशहूर हमारे नये सुरक्षा सलाहकार ने जब पदभार ग्रहण किया था तो उम्मीद जगी थी कि कुछ होगा। दबे ढंके कुछ किया भी गया जिससे पाकिस्तान की फौज और सुरक्षा एजेंसियों को यकीन हो गया कि भारत मुंहतोड़ उत्तर दे सकता है। भारत की जनता का अब धैर्य जवाब दे रहा है। इसके बावजूद सभी मानते हैं कि बदला सदा मामले को ढंडे होने के बाद लिया जाना चाहिये लेकिन इतन देर भी ना हो कि बदले का स्वरूप ही बदल जाय। बहुत उम्मीद है कि दुनिया इसे हमला समझ ले। हमने पठान कोट का हमला भुला दिया है। यह भूलना ही पाकिस्तान में इतनी हिममत भर गया है कि वह हमें कायर समझने लगा है। हमें इस धोखे में नहीं रहना चाहिये कि मोदी जी ने बलोचिस्तान का मामला उठा दिया है और पाकिस्तान चारो तरपफ हाय हाय करता फिर रहा है। बलोचिस्तान, गिलगित इत्या​दि क्षेत्रों में जो हो रहा है वह होता रहेगा क्योंकि अब तक पाकिस्तान के दो दोस्त चीन और अमरीका ने उसके बारे में एक शब्द भी नहीं कहा है। यही नहीं , इस्लामी दुनिया भी इतनी जल्दी पाकिस्तान का साथ नहीं छोड़ने वाली है। अब हम क्या करें? यह एक बुनियादी सवाल है। यह सही है कि युद्ध आसान विकल्प नहीं है पर हमें यह भी नही भूलना चाहिये कि यह अपनी नीति को अन्य उपायों से बनाये रखने का तरीका भी है।

जंग रहमत है या लानत ,यह सवाल अब ना उठा

जंग जब आ ही गयी सर पे तो रहमत होगी

दूर से देख न भड़के हुये शोलों का जलाल

इसी दोजख के किसी कोने में जन्नत होगी

हर बार मेखा गया है कि जब जंग थोपी जा रही है तो फिर कोई विकल्प भी नहीं है। 1971 में क्या हुआ था?  बहुत लोग इसे भूल चुके होंगे। जब इंदिरा जी ने बंगलादेश की आजादी की लड़ाई में हाथ बंटाने का फैसला किया उस समय तक हम बहुत कुछ गवां चुके थे। आज उससे अलग हालात नहीं हैं। पठानकोट से उड़ी तक घुसपैठ और हमले हुये और हमने अभी तक कुछ किया नहीं। इससे दुश्मन की हिममत बढ़ी है। हम तो केवल इसी व्यामोह और मुगालते में हैं कि शांति के लिये वार्ता जरूरी है।

हमने चाहा था लड़ाई न छिड़ी , जंग ना हो

वो समझ बैठे कमजोर हैं हम , लाचार हैं हम

हमने चाहा था मुहब्ब्त से सुलझा लें झगड़े

वे समझ बैठे मफलूज हैं हम बेकार हैं हम

 

इस मुगालते में हम अपने लोग चाहे वे फौजी हों या नागरिक उन्हें खोते जा रहे हैं। जब भी हमला होता है हम जैसी नींद से जागते हैं और चारो तरफ शोर शराबा होने लगता है। इसी बीच से धीरे धीरे राजनयिकों की भाषा निकलने लगती है। अब तो देखा जा रहा है कि फौजी अफसर भी सोच समझ कर काम करने की सिफारिश करते सुने जा रहे हैं। हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि ‘भय बिनु होत ना प्रीति।’ बातें समझदार लाशेगों से की जाती हैं। आतंकियों और गुंडों से नहीं। एक जान के बदले जान वाली बात कहने पर लगता है कि हम बर्बर युग में आ गये हैं। पर हकीकत यह है कि भारत और पाकिस्तान वक्त के एक दूसरे हिस्से में जी रहे हैं। अब बहुत हो गया। अब केवल फौजी विकल्प ही बाकी है।

हम अहिंसा के पुजारी सही , दीवाने सही

जंग होती है फकत जंग के ऐलान के बाद

हाथ भी उनसे मिले, दिल भी मिले, नजरें भी

अब ये अरमान हैं सब , फतह के अरमान के बाद

0 comments: