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Friday, June 1, 2018

भाजपा का फ्लॉप शो

भाजपा का फ्लॉप शो
एक समय देश में तूफान खड़ा करने वाली भारतीय जनता पार्टी लगातार पराजित हो रही है। 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से अब तक हुए 13 उपचुनाव में से 8 में भारतीय जनता पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। अभी हाल में महाराष्ट्र के गोंदिया -भंडारा लोकसभा सीट पर और उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित कैराना सीट पर भाजपा के उम्मीदवार हार गए। यद्यपि महाराष्ट्र के ही पालघर सीट पर भाजपा प्रत्याशी ने विजय पाई है।
   पराजय का यह सिलसिला मध्य प्रदेश के रतलाम सीट से शुरू हुआ जो राजस्थान के गुरदासपुर  अलवर और उत्तर प्रदेश के फूलपुर गोरखपुर  होता हुआ महाराष्ट्र के भंडारा गोंदिया तक पहुंच गया। इसी के साथ लोकसभा में भाजपा की सीटों की संख्या 273 हो गई । हाल ही में कर्नाटक से भाजपा सांसद बीएस येदुरप्पा और बी रामुलू के इस्तीफा देने के बाद लोकसभा में भाजपा की सीटें और कम हो गयीं। 2014 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब लोकसभा में भाजपा की सीट घटकर 272 हो गई।
उपचुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में  राजनीतिक बयार की दिशा कुछ बदली है और बिहार के जोकीहाट सीट के नतीजे बता रहे हैं कि नीतीश कुमार को अब सचेत होने की जरूरत है। भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश की कैराना सीट के बाद नूरपुर विधानसभा से भी अच्छी खबर नहीं है। भाजपा की सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा हो गया और कैराना में विपक्ष के समर्थन के साथ राष्ट्रीय लोक दल की उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने 55 हजार वोट से जीत हासिल की तथा भंडारा गोदिया में भी एनसीपी जीत गई। चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि मतदाता  भाजपा और गैर भाजपा में बंट गए हैं। मतदाताओं में कोई कंफ्यूजन नहीं दिख रहा है। उन्होंने तय कर लिया है कि भाजपा को वोट देना है या नहीं देना है। कैराना में राष्ट्रीय लोक दल के उम्मीदवार की विजय का अंतर स्पष्ट बताता है कि वहां के मतदाताओं में तय कर लिया था इस बार भाजपा को वोट नहीं देना है और गैर भाजपा उम्मीदवार को विजयी बनाना है। क्योंकि इसी सीट पर 2014 में भाजपा के उम्मीदवार हुकुम सिंह ने बहुत बड़े अंतर से जीत हासिल की थी। यही रुझान नूरपुर में भी दिखा ,जहां भाजपा को अपनी सीट समाजवादी पार्टी के हाथों गंवानी पड़ी।
यही नहीं यह रुझान विपक्षी एकता के फार्मूले पर भी मोहर लगाती है। क्योंकि, महाराष्ट्र के 2 सीट जहां पालघर पर विपक्ष का वोट कांग्रेस और एनसीपी में विभाजित हो गया नतीजतन भाजपा जीत गई वही भंडारा - गोंदिया में शिव सेना का कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं हुआ और गैर भाजपाई विकल्प के रूप में एनसीपी कांग्रेस का उम्मीदवार विजयी हुआ। वैसे विपक्षी एकता का संकेत पहले से ही मिलने लगा था। फूलपुर गोरखपुर सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा को विपक्षी एकता का एहसास हो गया था।  कैराना में इसी को दोहराया गया। नतीजे भी वैसे ही हुए। यही नहीं ,इसके पहले कर्नाटक में विपक्षी दलों के साझा शक्ति प्रदर्शन ने राजनीति की हवा का रुख बदल दिया। इस उपचुनाव के बाद राजनीति में बदलाव के संकेत मिलने लगे हैं। आंकड़े बताते हैं कि कैराना लोकसभा सीट पर 17 लाख मतदाता है जिनमें 3 लाख मुसलमान ,लगभग 4 लाख पिछड़े और 1.5 लाख दलित समुदाय के वोटर हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश राज्य में जाट वोटरों का गढ़ माना जाता है। ऐसे में राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया अजीत सिंह ने जाट वोटरों को अपने झंडे के नीचे जमा कर लिया और तबस्सुम हसन की राजनीतिक विरासत मुस्लिम वोटरों को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रही। यही नहीं 2013 में जो दंगे हुए थे और उसके बाद वहां मुस्लिमों और जाटों में विश्वास का अभाव हो गया था और नफरत पैदा हो गई थी वह भी कम होती नजर आ रही है।
कहते हैं कि राजनीति में हर कदम पर फंदे हैं और कब -कहां -कौन जाने अनजाने उन फंदों में फंस जाएगा। इसलिए हर कदम फूंक फूंक कर रखने की जरूरत होती है। न जाने कौन सी हड़बड़ी  में नीतीश कुमार ने नोटबंदी के खिलाफ बयान दे डाला अब जोकीहाट की पराजय  हो सकता है उनकी हड़बड़ी को और बढ़ा दे। जोकीहाट में लालू - तेजस्वी की पार्टी राजद को विजय मिली है। पिछले विधानसभा चुनाव में महागठबंधन छोड़ कर नीतीश भाजपा के साथ हो लिए थे।उनका इरादा कम से कम आगे भी मुख्यमंत्री बने रहने का था। लेकिन, पहले अररिया लोकसभा सीट और अब जोकीहाट के नतीजे स्पष्ट बता रहे हैं कि उन्हें सचेत रहने की जरूरत है।
यही नहीं कर्नाटक एपिसोड के बाद ऐसा लगने लगा है कि वहां मतदाता भाजपा से नाराज हैं। इसका सबूत है कि राजराजेश्वरी नगर से कांग्रेस का उम्मीदवार जीत गया। यह बताता है कि जनता दल एस और कांग्रेस के गठबंधन जनता ने मुहर लगा दी है।
2019 के चुनाव में क्या होगा यह कहना अभी बड़ा मुश्किल है। मिल रहे संकेत  बता रहे हैं कि भाजपा के लिए राह समतल नहीं है। भाजपा को अपनी रणनीति अभी से तैयार कर आगे बढ़ना होगा।

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