बिन पानी सब सून
दशकों से संसाधनों के दुष्प्रबंधन , ताजा पानी को बचाने की आवश्यकता के बारे में जागरूकता की कमी, विचारहीन जल संरक्षण नीति , आबादी के विस्फोट के साथ-साथ हमारी नदियों को बचाये रखने और झीलों- पोखरों को साफ रखने के प्रति जनता की उदासीनता आखिरकार हमें घातक मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया है।यह स्थिति भारतीय विकास की कहानी से जीवन को छीन सकता है। 14 जून को नीति आयोग द्वारा जारी समग्र जल प्रबंधन सूचकांक के निष्कर्षों के मुताबिक, वर्तमान में भारत " इतिहास के सबसे खराब जल संकट" का सामना कर रहा है। लगभग 60 करोड़ लोगों को पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है और सुरक्षित पानी की अपर्याप्त पहुंच के कारण हर साल लगभग दो लाख लोग मारे जाते हैं। यह संकट केवल शुरुआत है। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक यह संकट आने वाले दिनों में और बढ़ जाएगा, क्योंकि 2030 तक, भारत में पानी की मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी हो जाने का अनुमान है। यह "लाखों लोगों के लिए गंभीर पानी की कमी का संकट है"। इसके साथ ही, अधिक मौतें और "देश के सकल घरेलू उत्पाद में 6 प्रतिशत की कमी" होगी। संयोग से, 2030 वह वर्ष है जिसमें सरकार का लक्ष्य है वर्तमान पीढ़ी के पेट्रोल और डीजल वाहनों को पूरी तरह से इलेक्ट्रिक कारों में बदलने की। यही नहीं, अन्य उपलिब्धयों के अलावा इसी दौरान करोड़ों नागरिकों को मलेरिया से मुक्त करने की भी योजना है।नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश, हरियाणा, झारखंड और बिहार एक बार फिर फिसड्डी साबित हुए हैं। नीति आयोग के जल प्रबंधन सूचकांक में ये सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं। वहीं जल प्रबंधन के मामले में गुजरात सूची में लगातार अच्छी जगह बनाए हुये है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि देश में पानी की स्थिति अच्छी नहीं है। पिछले 70 साल में इस पर ध्यान नहीं दिया गया। हर साल इतनी बारिश होती है, बाढ़ आती है लेकिन हमने कभी सोचा ही नहीं कि कभी पानी की समस्या भी हो सकती है। अब स्थिति ऐसी हो गई है कि इस विषय को गंभीरता से लेना होगा। यदि हम अपने शहरों को केपटाउन नहीं बनाना चाहते तो अभी से जल प्रबंधन शुरू करना होगा।
हालांकि, पिछले कुछ सालों में, अर्थव्यवस्था को अगले स्तर तक ले जाने के लिए एक बढ़िया प्रयास किया गया है - यहां तक कि चीन जैसे महाशक्तियों से मुकाबलाल हुआ है। इसे प्राप्त करने के लिए, सरकार ने कई नीतियों को शुरू की हैं। अगले पांच वर्षों में किसानों की आय को दोगुना करने, आईटी और विनिर्माण उद्योगों मे, शहरीकरण और बढ़ती वृद्धि को संभालने के लिए देश के सकल घरेलू उत्पाद को 8 प्रति वर्ष से बढ़ाने के उच्च लक्ष्य निर्धारित किए हैं।लेकिन हम जल संकट को हल किए बिना इनमें से किसी भी लक्ष्य को हासिल करना संभव नहीं होगा। यहां तक कि विश्व बैंक ने वर्ष के पूर्वार्द्ध में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा कि 8 प्रतिशत से अधिक विकास की भारत की भव्य योजना पूरी तरह से इस बात पर निर्भर है कि देश अपने दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन कैसे करता है? बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है, "भारत की लंबी अवधि की वृद्धि के लिए मौलिक बाधा प्राकृतिक संसाधनों की कमी है।"
हमारे जैसे देश के लिए स्वनिर्मित आपदा के करीब आ रहा है। यहां एक एक गहरी सांस लेना भी दुष्कर है। वैश्विक शक्ति बनने की चिंता छोड़नी होगी और अपने अस्तितव को बचाये रखने के लिये कुछ करना होगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सामान्य नागरिकों की आर्थिक वृद्धि और समृद्धि हमारी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। लेकिन , यह भी सच है कि इस तरह के लक्ष्यों को प्राप्त करने का मार्ग केवल प्रौद्योगिकियों को अपनाने और हमारे ताजे जल संसाधनों की स्थायित्व में सुधार करने की सोच समझ कर योजना तैयार करनी होगी। पानी की कमी ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी परेशानी पैदा कर रही है और सूखे के रूप में पहले से ही कई जिंदगी ले चुकी है। पानी तेजी से शहरी भारत की नंबर एक समस्या बन रही है। दिल्ली, बैंगलोर, चेन्नई और हैदराबाद समेत 20 शहरों में 2020 तक भूजल के समाप्त हो जाने की प्रबल आशंका है। आने वाले वर्षों में नौकरियों और बेहतर मजदूरी की तलाश में बड़ी संख्या में लोगों के इन बड़े शहरों में जाने की उम्मीद है। उस आबादी को ताजा पेयजल प्रदान करने में असमर्थता से भारतीय विकास को अवरुद्ध करती है। ऐसे भविष्य की झलक हमारे देश के सबसे बड़े शहरों में अभी से ही देखी जा सकती है।
कभी अपनी शानदार हरियाली के लिये भारत "बगीचे वाले शहर " के रूप में विख्यात बैंगलोर को झीलों की एक श्रृंखला के आसपास बनाया गया था और यहां इसकी जरूरतों के लिए पर्याप्त ताजा पानी मिलता था। आज यह ट्रैफिक जाम, लंबी इमारतों और रसायनों तथा अन्य प्रदूषकों के झीलों के साथ जुड़ा एक दमघोंटू शहर है। देश के सबसे बड़े शहरी क्षेत्रों में से कई तो पहले से ही रहने लायक नहीं हैं। हमारे ग्रामीण संसाधनों की भी देखभाल करने के लिए समय की आवश्यकता है, विशेष रूप से भूजल भंडारों की जिनका कृषि विकास को बढ़ावा देने के लिए तेजी से दोहन किया जा रहा है। देश का भूजल स्रोत सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है। यह हमारे पानी की आपूर्ति का 40 प्रतिशत हिस्सा मुहै्यया कराता है। भारत भूजल का दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। रिपोर्ट के अनुसार भारत से अधिक आबादी वाले पड़ोसी के विपरीत, भारत में 2010 में 250 घन किलोमीटर भूजल निकाला गया। कृषि का देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है। इससे एक अरब से अधिक भारतीयों के पेट भरने की जिम्मेदारी है। अगर नीति आयोग का जल प्रबंधन सूचकांक द्वारा इंगित दिशा की ओर कदम उठाये जा चुके हैं और स्थिति को सुधारने की दिशा में काम शुरू हो चुका है। हाल के वर्षों में गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को गंभीर सूखे का सामना करना पड़ा है, उन राज्यो के लोगों ने अपनी समस्याओं से सीखा है। फिर भी, बहुत अधिक काम करने की जरूरत है।
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