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Sunday, June 3, 2018

कश्मीर में आतंकवाद

कश्मीर में आतंकवाद
अभी हाल में कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए आतंकवादियों की भर्ती पर पुलिस द्वारा गिर गए अध्ययन कहा गया है कि बुरहान वानी की हत्या के बाद उग्रवादियों की भर्ती हत्या की जगह से 10- 12 किलोमीटर के घेरे में  रहने वालों  के बीच से की गई  है। यह भर्ती बुरहान वानी की मुठभेड़ में मृत्यु के 40 दिनों के भीतर की गई है। यह अध्ययन नवंबर 2016 में बुरहान वानी की मुठभेड़ में मृत्यु के बाद से अब तक हुई 43 मुठभेड़ों क्या आधार पर की गई है। अध्ययन में कहा गया है की हर मुठभेड़ के बाद आतंकियों की भर्ती तेज जाती थी और उनमें में लोग शामिल हो जाते थे जो मरने वाले आतंकियों की संख्या से ज्यादा हुआ करती थी। अध्ययन में यह बताने की कोशिश की गई है कि मरने वाले आतंकी और मैं आतंकियों की भर्ती की जगह में एक अंतर संबंध है। जम्मू-कश्मीर पुलिस के लिए स्थानीय लोगों की भर्ती एक बहुत बड़ी चुनौती है। यही नहीं प्रदर्शन के दौरान मारे जाने वाले कश्मीरी हो से गुस्सा और भड़कता था और उनकी शव यात्रा में और ज्यादा लोग शामिल होते हैं। अध्ययन में कहा गया है कि इस तरह का आवेशित माहौल भावनाओं और गुस्से को भड़काने में ज्यादा कारगर होते हैं और इसके फलस्वरूप नए आतंकियों की टोली तैयार हो जाती है। अध्ययन में कहा गया है कि मारे गए  आतंकियों की अंत्येष्टि में अन्य आतंकियों की मौजूदगी न केवल लोगों को प्रोत्साहित करती है बल्कि नए नौजवानों को आतंकवादी बनने के लिए आकर्षित करती है। नागरिकों और आतंकियों के बीच बातचीत मेलजोल नए नौजवानों की भर्ती को भी बढ़ावा देती है और यह उसके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अध्ययन में बताया गया है कितने आतंकी मारे जाते हैं उससे कहीं ज्यादा नए भर्ती हो जाते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इस वर्ष 26 आतंकी मारे गए और 46 नए भर्ती होने की सूचना है। पहले तो यह कहा जाता था कि कट्टरपंथ के विकास के कारण नौजवान हथियार उठा रहे हैं। बहुत से लोगों ने कश्मीर के अध्ययन के बाद क्या कहा था वहां के नौजवान कट्टरपंथी होते जा रहे हैं और वहां आतंकवाद कश्मीरी पंडितों के हाथी छोड़ने के बाद विकसित हुआ। इसके बाद वहां केवल नमाज और फातिहा के वक्त जमा होने वाले लोग ही बच गए। घाटी में से धर्मनिरपेक्षता गायब हो गई। कश्मीर के बच्चों को बचपन से ही यह सिखाया जाता था की आजादी करीब है और उनसे नारे लगवाए जाते थे भारतीय वापस जाओ। इस तरह के नारे वहां दीवारों पर लिखे जाते थे और लगभग हर बच्चा किशोर इस तरह के नारे लगाता था। बाद में हुर्रियत नेताओं में और बढ़ावा दिया और इसे सीमा के पार ले गए। हालांकि कश्मीर के लोगों को भारी सुविधा और सहूलियत दिए जाने के बाद भी भारत देश और केंद्र सरकार के प्रति गुस्सा कश्मीर में शुरू से है। कश्मीर के लोग यह मानने को तैयार नहीं है की सीमा के उस पार उनके ही बिरादर के साथ दूसरे दर्जे के नागरिक से भी खराब सलूक किया जाता है। लेकिन पुलिस ने जो अध्ययन किया जिसके बारे में अरब में चर्चा की गई है उसमें समाज वैज्ञानिक तौर पर दो कमियां हैं हालांकि आंकड़े उस ओर इशारा करते हैं। पहला स्थानीय आतंकी बहुत कम अपने क्षेत्र से बाहर निकलते हैं और वे अपने घर के आस-पास भी ज्यादा महफूज महसूस करते हैं। वह यह समझते हैं घर के आस-पास उन्हें ज्यादा समर्थन हासिल है। इनमें से अधिकांश अप्रशिक्षित और हथियार के अभाव में हैं। बस हथियार लेकर फोटो खिंचवाकर या वीडियो तैयार कर उसे चारों तरफ दिखाने में ये ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं। घर के आस-पास आत्मसमर्पण से बचते हैं क्योंकि इससे लगता है कि आतंकी होने के काबिल नहीं है। यही कारण है कि बहुत कम लोग हथियार डालते हैं। दूसरी बात यह है कि प्रदर्शनकारी जब यह देखते हैं कि स्थानीय पकड़ा गया है तो वे और ज्यादा उग्र हो उठते हैं। गांव और आसपास के इलाके ज्यादा सुरक्षित समझे जाते हैं। स्थानीय लोग प्रदर्शन की आड़ में एक तरफ सुरक्षाबलों को बाधित करते हैं और दूसरी तरफ आतंकियों को निकल भागने का मौका मुहैया कराते हैं। कई बार तो ऐसा होता है इस प्रक्रिया में कोई अपनी जान भी दे देते हैं। ऐसा करने से आसपास के इलाके में उनके परिवार का सम्मान बढ़ जाता है। तीसरी बात है कि जो  प्रदर्शनकारियों को उकसाते हैं और प्रदर्शन के लिए भेजते हैं वह कोई गुप्त नहीं है उनका मुख्य काम आतंकियों की भर्ती करना है। मुझे मालूम है अगर आतंकी नहीं आ सके या भर्ती हो सके तो उन्हें खुद हथियार उठाने पड़ेंगे जो वह नहीं चाहते। जो बात पुलिस के अध्ययन में नहीं है वह है कि जो लोग आतंकवाद से जुड़ रहे हैं वह मारे गए आतंकियों घर के आस-पास के और उन आतंकियों शव यात्रा में पाकिस्तान और आई एस आई के झंडे होते हैं हवा में गोलियां दागी जाती हैं भारत विरोधी नारे लगाए जाते हैं। ऐसा लगता है की राजकीय अंत्येष्टि की जा रही है। अब जो लोग बेकार है या कुछ नहीं कर पा रहे हैं उन्हें यह हालात आकर्षित करते हैं और वह चाहते हैं किसके साथ जुड़कर शोहरत और दौलत कमाए ।
ऐसे ही नौजवान आतंकवाद में शामिल होते हैं या आतंकवाद के फैलाव के लिए काम कर रहे लोगों के साथ जुड़ जाते हैं। पुलिस के अध्ययन में विश्लेषण अच्छा किया गया है लेकिन उसने कोई व्यवहारिक समाधान नहीं बताया गया है जिससे आतंकवादियों को मुख्यधारा में लाया जा सके। सरकार के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि वह मारे गए आतंकियों की अंतेष्टि जल्दी से कर दे इसका असर राजनीतिक भी हो सकता है। दूसरे कि सुरक्षा बल आतंकवादियों को जिंदा पकड़ने की कोई जगत निकालें इससे प्रचार करने वालों और समाज के बीच का संबंध खत्म हो जाएगा। यही नहीं प्रदर्शनकारियों को घायल करने और छोड़ देने की बजाय उन्हें मार डालने की रणनीति अपनाए ताकि प्रदर्शनकारियों की तादाद घटेगी।
यहां जो सबसे बड़ी बात है वह है कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद कभी कम होगा जब सरकार यह सोच ले की स्थानीय नौजवानों को आतंकवाद में जुड़ने से रोकना वोट से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

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