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Thursday, June 21, 2018

कश्मीर के लिए नयी समर नीति की जरूरत

कश्मीर के लिए नयी समर नीति की जरूरत

कश्मीर फिर से अशांत हो रहा है। सरकार ने वहां  रमजान के दौरान युद्ध विराम की घोषणा की थी और आतंकवादियों तथा उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई रोक दी गई थी। उसका कोई खास असर नहीं हुआ । रमजान खत्म होते-होते कश्मीर में फिर से उपद्रव शुरू हो गए। सुरक्षाबलों पर पथराव होने लगे । जब तक युद्धविराम चल रहा था अब तक शायद उपद्रवी और आतंकवादी तैयारियों में जुटे थे और जैसे ही रमजान खत्म हुआ उन्होंने हमले आरंभ कर दिए। इसी दौरान पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या भी हुई। एक तरह से युद्ध विराम की अवधि का उनके द्वारा अपने अड्डे बदलने की सुविधा के रूप में उपयोग किया गया। 
    युद्ध विराम को अगर सैन्य शास्त्र की दृष्टि से देखा जाए तो यह रणनीति के मुकाबले बहुत ही मामूली बात थी। क्योंकि कश्मीर में आतंकवाद का स्वरुप बदल रहा है। वहां स्थानीय नौजवानों को भर्ती किया जा रहा है। उनसे निपटने के लिए जितनी फौज की जरूरत है उससे ज्यादा आतंकी वहां मौजूद हैं। यह नए आतंकी स्थानीय नौजवान हैं और काफी प्रभावशाली हैं तथा भावना के आवेग में आतंकियों के हत्थे चढ़ जा रहे हैं। खासकर एक आतंकी की अंतेष्टि या फौज से मुकाबले के दौरान यह उनसे जुड़ जा रहे हैं। अधिकारी परेशान हैं कि हालात से कैसे निपटें।  क्योंकि नागरिक प्रदर्शन अचानक पथराव करती भीड़ में बदल जाता है। इस तरह से भावनाओं के आवेग में जो नौजवान आतंकी बनते हैं वह ज्यादा दिनों तक जीवित भी नहीं रह पाते। क्योंकि , उन्हें कोई प्रशिक्षण नहीं होता और ना ही उनके पास कोई अच्छा हथियार होता है। उन्हें सुरक्षा बलों से छीने  गये हथियार ही दिए जाते हैं।
      कश्मीर में आतंकियों की दूसरी श्रेणी भी है। यह है पाकिस्तान से आए आतंकी और ये निशाना लगाकर या टारगेट बनाकर हमले करते हैं।  चाहे वह सुरक्षाबलों पर हमले हो या शुजात बुखारी की तरह किसी आदमी पर। सरकार चाहती है कि आतंकियों को खत्म कर दें और घाटी से भर्ती किए गए अप्रशिक्षित नौजवान भी कोई खास समस्या नहीं है। दूसरी तरफ, जो पाकिस्तान से आए आतंकी हैं वह ज्यादा ट्रेंड हैं और किसी भी अभियान का मुकाबला करने की उन में योग्यता है। सेना और सुरक्षा तंत्र को इस बिंदु को समझना होगा कि वह जिस विद्रोह को दबा रहे हैं वह दूसरी तरह का है। 2010 में रैंड के एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में विद्रोह के विरोध में जो अभियान चलाए गए हैं उनमें 30 में से आठ ही सफल हुए हैं। इससे पता चलता है किसी विद्रोह को दबाने से या दंडित करने से अस्थाई राहत मिलती है। लेकिन, यह उस तथ्य  को नहीं कर पाता है जिसके तहत पड़ोसी देश से इसे मदद मिलती है । क्योंकि ,इस तरह की मदद से किसी भी विद्रोह की सफलता असफलता प्रभावित होती है। 
     अब इस मोड़ पर पाकिस्तान से निपटना एक आवश्यकता है। इसके साथ ही एक और समस्या है जो मोदी सरकार ने पैदा की है। मोदी जी शासनकाल में   आतंकवाद और मिलिटेंसी दोनों आपस में गुत्थमगुत्था हो गये  हैं। जबकि दोनों अलग-अलग हैं। हो सकता है इससे मोदी भक्तों को लाभ मिले लेकिन सरकार इससे घाटे में है। सन 2000 में अटल बिहारी वाजपेई ने  मिलिटेंट्स से बातचीत करने में सफलता हासिल की थी। जैसा कि, खुद मोदी जी ने नगा विद्रोहियों के साथ किया है।  आप आतंकियों से बातचीत नहीं कर सकते । सरकार को चाहिए कि वह नागरिक विरोध या यूं कहें पथराव करते भीड़ की समस्या पर ध्यान दे। फौजी कार्रवाई का खास करके नागरिक क्षेत्र में ऐसी कार्रवाई का सीधा मतलब होता है कि जब जानो माल पर खतरा हो तभी बल का इस्तेमाल किया जाए और वह भी अनुपातिक रूप में । उद्देश्य होता है या कहें चुनौतियां होती हैं कि भीड़ को तितर बितर कर दिया जाए ना कि उसे खत्म ही कर दिया जाए। दुनिया भर की दंगा विरोधी पुलिस को ऐसी स्थिति से दो चार होना पड़ता है। ऐसी स्थितियां आतीं हैं जिसमें कुछ लोग पत्थर फेंकते हैं, कुछ लोग पेट्रोल बम या मोलोतोव फेंकते हैं। सबसे निपटने के अपने अपने उपाय होते हैं। चुनौतियों से निपटने के लिए घटनास्थल पर ज्यादा पुलिस बल की जरूरत होती है और बचाव के औजार भी ज्यादा चाहिए। साथ ही उचित प्रशिक्षण भी जरूरी है।  यदि घटनास्थल पर पुलिस के जवान जरूरत से कम होंगे और उनके पास साजो-सामान भी कम होंगे तो इससे समस्या बढ़ेगी और सुरक्षा बल खुद को असुरक्षित महसूस करने लगेंगे  अपनी सुरक्षा के लिए फायरिंग शुरू कर देंगे।
   इसराइल के सैन्य इतिहासकार मार्टिन वेन ने कई विद्रोह विरोध अभियानों का विश्लेषण किया है और उनका निष्कर्ष है कि उत्तरी आयरलैंड में ब्रिटिश ने जिस उपाय का उपयोग किया था वह सर्वोत्तम है। उन्होंने जो उपाय किए थे यह जो रणनीति अपनाई थी वह था कि कानून के दायरे में काम करें और प्रताड़ना या उत्पीड़न कम से कम हो , गैरकानूनी मौत से भी ना हो । हालांकि वहां भी ज्यादतियां हुईं  लेकिन अपनी नीतियों  पर अड़े रहे और उसका लाभ यह मिला क्षेत्र में स्थाई शांति हो गयी। मार्टिन वेन  ने इस्राइली फौज की रणनीति का जमकर विरोध किया है। यह बात दूसरी है कि भारत में कूटनीति के समर्थक हैं। भारतीय सुरक्षा बल सैकड़ों लोगों को मार डालते हैं , बेशुमार लोगों को गिरफ्तार करते हैं घर उड़ा देते हैं, केवल आतंकवादियों के संदेह में । लेकिन यह भी सच है उस क्षेत्र में अभी तक शांति नहीं हुई । हमें यह समझना होगा कि वहां हम अपने राष्ट्र के लोगों के साथ निपट रहे हैं इसलिए यह जरूरी है कि कानून के दायरे में रहें और आनुपातिक बल का प्रयोग करें । व्यवहारिकता यह बताती है कि पाकिस्तान को इस बात के लिए तैयार किया जाए कि वह आतंकियों को समर्थन देना बंद करे। लेकिन ऐसा रातोरात नहीं हो सकता । पर हमारे पास इस तरह की रणनीति होनी चाहिए जिस पर हम आगे काम करें । हमारे पास वैसी रणनीति का घोर अभाव है।

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