आंकड़े झूठ नहीं बोलते
यह आमतौर पर माना जाता है कि आर्थिक विकास का मापदंड सकल घरेलू उत्पाद या कहें जीडीपी है। अर्थशास्त्री जो कि मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना है वह इस आंकड़े को अपने अपने ढंग से बताते हैं। यह बताना भी अपने आप में एक उपलब्धि है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता संभाली थी तो भारत का जीडीपी अपने आप में एक विवादास्पद विषय था। खास तौर पर कुछ ऐसे दावे जो सरकार कर रही थी उस पर प्रश्नचिन्ह उठाया जाने लगा। उदाहरणस्वरूप शत प्रतिशत विद्युतीकरण इत्यादि। उधर विपक्ष गिरती अर्थव्यवस्था और कम होते जीडीपी पर छाती पीट रहा था और इधर भगत लोग लगातार उपलब्धियों की बात कर रहे थे यहां तक की झारखंड में भुखमरी से हुई मृत्यु पर भी संदेश जताकर यह लोग उपलब्धि का डंका पीट रहे थे। बहुत लोग अब यह मानने लगे हैं मोदी जी के जमाने में आंकड़े में हेरफेर किया गया उसे नए ढंग से तैयार किया गया।
पहले यह देखें कि मोदी सरकार जब सत्ता में आई तो उसे क्या विरासत में मिला ? उस समय 6.9 प्रतिशत विकास दर था जो स्वस्थ रखें और विकास की ओर उसके कदम बढ़ रहे थे। मोदी जी और उनकी प्रोपगंडा मशीन ने एक ऐसा खाका खींचा जैसे भारत भारत का विकास घट रहा है और यह समाप्त होने की कगार पर है इससे आतंक फैल गया। डोनाल्ड ट्रंप ने भी अमेरिका ने कुछ ऐसा ही किया था। यह सच है पिछले 2 साल करेंसी की कमी के कारण अर्थव्यवस्था के ह्रास के 2 साल थे तेल की कीमतें और संसदीय व्यवस्था ने भाजपा के नाक में दम कर रखा था। उधर विपक्ष ने कमर कस रखी थी कि वह भाजपा के जनोन्मुख नीतियों के मार्ग में रोड़े लगाएगा। अन्ना हजारे क्या आंदोलन से नीति निर्धारक संस्थाओं में भय व्याप्त हो गया था। इस मनोस्थिति का सबसे ज्यादा लाभ भाजपा को मिला।
इसके बावजूद मोदी सरकार बार-बार कहती रही कि भारत सबसे तेज उभरती हुई अर्थव्यवस्था है लेकिन इसका सच क्या है ? यह गलत जुमला है जिसे अर्थशास्त्र नहीं जानने वाला भी गलत बोल देगा। क्योंकि, इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था 1 वर्ष में ही कैसे इतनी चमक जाएगी। जिस अर्थव्यवस्था के बारे में मोदी जी सत्ता में आने के पहले बार बार खस्ताहाल बता रहे थे वह साल भर के भीतर कैसे इतनी चमक जाएगी की दुनिया की बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हो जाएगी। अजीब लगता है यह सुनकर भी। सच तो यह है 10 साल मनमोहन सिंह के शासनकाल में भारत विश्व अर्थव्यवस्था में शामिल हुआ। अर्थव्यवस्था के जानकार इस अवधि को भारत की स्वर्णिम अवधि कहते हैं। भारत औसतन 7.7 प्रतिशत विकास दर हासिल कर चुका था और लगभग 14 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आ गए थे। यह समावेशी विकास का एक उदाहरण था। 2005 के बाद मनमोहन सिंह सरकार ने 9.5 और 2008 में 9.6 प्रतिशत विकास दर हासिल की। इसी अवधि में चीन की विकास दर 10.5 से 11% थी। इस समय भारत की विकास दर उस अवधि से कम है लेकिन तब भी हमारी सरकार इसे तेजी से विकसित होती हुई अर्थव्यवस्था बता रही है क्योंकि वह विकास दर की तुलना किससे करती है और चीन की विकास दर इस समय 6.8 से 7% के बीच है। कुल मिलाकर यह कर सकते हैं मनमोहन सिंह काल में भारत दूसरे नंबर पर रह कर भी आज के पहले नंबर से ज्यादा विकसित था । सच तो यह है कि भाजपा नीत सरकार के पास विकास के अच्छे अवसर थे और वह अपनी विरासत का अच्छा उपयोग कर सकते थे लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। बहुतों को याद होगा के कांग्रेस शासनकाल में विश्व की अर्थव्यवस्था खस्ताहाली से गुजर रही थी और उस स्थिति में भी कांग्रेस ने संभाले रखा। उस काल में 1931 के बाद शायद सबसे बड़ी मंदी आई थी और उसी में भाजपा के प्रचंड प्रहार से सरकार व्याकुल थी। उदाहरणस्वरूप संप्रग काल में ही जीएसटी लागू हो सकता था लेकिन भाजपा ने जानबूझकर इसे अटकाए रखा। इसके बाद अभी जब तेल की कीमतें पूरी तरह गिर गई है और मानसून लगातार साथ दे रहा है यही नहीं अधिकांश राज्य अभी उसके नियंत्रण में है तब भी यह सरकार कुछ भी करने में कामयाब नहीं हो पा रही है। 2017 -18 में जीडीपी की दर 6.7 है जो 6.9 से कम है। हकीकत क्या है? वस्तुतः इन दिनों सुना जाता है यह दिखाया जाता है वह है नहीं। इस समय बड़े बड़े दावे किए जा रहे हैं नए नए तरीके अपनाए जा रहे हैं। कुछ ऐसा किया जा रहा है जैसे बकरी शेर की तरह दिखे। कई बार तो आंकड़े भी बदल दिए जा रहे हैं। यही कारण है मोदी सरकार के दावे में विरोधाभास है। दावोस में प्रधानमंत्री जी सीना ठोक कर देश को तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था करार दिया है लेकिन यह किसान विपदा से जूझ रहे हैं और आत्महत्या कर रहे हैं। रोजगार के अभाव का यह आलम है की इंजीनियर पी एच डी लोग एम बी ए पास के लोग चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन कर रहे हैं। पार्टी के बड़े नेता तो पकोड़ा अर्थव्यवस्था का विकल्प भी दे चुके हैं। एनपीए 10 लाख करोड़ से ऊपर चला गया जो 2014 के आंकड़े से 400 गुना ज्यादा है। यही नहीं इस अवधि में बैंक धोखाधड़ी रिकॉर्ड कायम हुआ है।
अर्थव्यवस्था के अलावा भारतीय समाज और लोकतंत्र भी तनावग्रस्त है। कर्नाटक का उदाहरण सबके सामने है । लोकतंत्र में सच जानना सबसे ज्यादा जरूरी है लेकिन मोदी जी के अपारदर्शी शासन में यह सबसे कठिन है । पूरा देश एक अजीब से भ्रम और संशय से गुजर रहा है ।
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