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Friday, June 8, 2018

बहुसंख्यकवाद का नया बवंडर

बहुसंख्यकवाद का नया बवंडर
देश में सबसे ज्यादा उदार और कल्याणकारी कामों से जुड़े ईसाई समुदाय पर बेशक धर्म परिवर्तन का आरोप लगता था लेकिन अब तक भारत में खून खराबा किए जाने का आरोप नहीं लगा और ना इसका कोई उदाहरण है। कहते हैं कि क्रिश्चियन जब बोलते हैं तो समस्त विश्व सुनता है। पिछले महीने दिल्ली के आर्चबिशप अनिल जोसेफ ने एक खुली चिट्ठी जारी कर कहा था " देश में संविधान खतरे में है और अगले साल के चुनाव से पहले प्रभु से प्रार्थना की जाए कि सब कुछ शुभ हो।" उन्होंने कहा था कि  " एक खतरनाक राजनीतिक तूफान के लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं। सच्चाई न्याय और स्वतंत्रता की किरण अंधेरे में गुम होती हुई सी दिख रही है । प्रभु से प्रार्थना है कि हमारी रक्षा करें।"
भाजपा ने  इस की व्यापक निंदा की थी। दुनिया भर की मीडिया में  यह चिट्ठी चर्चा का विषय  थी। वाशिंगटन पोस्ट ने तो अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर राष्ट्र संघ 2018 की रिपोर्ट उद्धृत किया था जिसमें कहां गया था भारत में धार्मिक स्वतंत्रता खतरे में है। अभी चर्चा चल ही रही थी की हालात बदलने लगे। देश के ईसाई बहुल पूर्वोत्तर राज्य मेघालय  में ईसाइयों की करतूत ने आर्चबिशप अनिल जोसेफ के मुंह पर तमाचा मार दिया। पिछले 3 दिनों से शिलांग के खासी समुदाय जो ईसाई बहुल है  के  लोगों ने नगर के पंजाबी लाइन के लोगों को सताना आरंभ कर दिया। कारण कई हैं। जितने मुंह उतनी हैं।  कुछ लोग कहते हैं कि गाड़ी पार्क करने को लेकर विवाद बढ़ा। कुछ लोगों का कहना है कि छेड़छाड़ के कारण यह हुआ। लेकिन सच तो यह है सिख समुदाय पर पेट्रोल बम तक से हमले किए जा रहे हैं। वहां सिख समुदाय अल्पसंख्यक है। लगभग डेढ़ सौ साल पहले सफाई के काम के लिए अंग्रेजों ने यहां सिखों को  बसाया था। आज उन्हीं की संतान वे  हैं। डरे हुए सिख समुदाय के लोग स्थानीय गुरुद्वारा में शरण ले रखे हैं। उन्हें भय है कि उनके सामान लूट लिए जाएंगे और उन्हें घर से निकाल दिया जाएगा। जैसी खबरें मिल रहीं हैं उसके मुताबिक सिखों का कहना है उन्हें पंजाबी लाइन से भगाने की यह साजिश है।
8 मई को आर्चबिशप अनिल जोसेफ ने संविधान के प्रति और हिंसा की आशंका के प्रति सब को सावधान करते हुए एक चिट्ठी जारी की थी। महीना भर भी पूरा नहीं हुआ कि वही चिट्ठी उस समुदाय के लोगों पर एक तमाचे की तरह दिखने लगी। संक्षेप में यह कहा जा सकता है मेघालय में  ताकतवर ईसाई बहुसंख्यक समाज छोटे से अल्पसंख्यक सिख समाज पर हमले कर रहा है। यहां बात अनिल जोसेफ जैसे पादरियों उदारता की नहीं है बल्कि बात यह है कि जहां ईसाई समुदाय बहुसंख्यक  है वहां वह कैसा आचरण चल रहा है खासकर पूर्वोत्तर भारत में। वैश्विक मीडिया में खासी समुदाय की प्रशंसा उसके मातृसत्तात्मक समाज के कारण है जो दुनिया के पितृसत्तात्मक समाज के मुकाबले अड़ा हुआ है । लेकिन , ऐसा लग रहा है कि महिलाओं के प्रति उनका सम्मान भाव केवल अपने ही समुदाय के मामले में है । खबरों के मुताबिक सिख महिलाओं और पुरुषों दोनों पर समान भाव से हमले हो रहे हैं । यह हमले एक बहुत बड़े सामाजिक दुर्गुण के रूप में दिखाई पड़ रहे हैं ।  पूर्वोत्तर भारत बहुलतावाद के भाव से पीड़ित है । अगर राज्य सरकार की  वेबसाइट देखें तो उसने बड़े गर्व से यह बताया गया है कि मेघालय खासी, जयंतिया और गारो समुदाय का आवास स्थल है। इसमें मध्य मेघालय में खासी समुदाय के लोग, पश्चिमी मेघालय तो गारो पहाड़ियों के नाम से मशहूर ही है और पूर्वी मेघालय जयंतिया बहुल है। कहीं भी अल्पसंख्यक समुदाय की चर्चा नहीं है।  खासी समुदाय क्रिश्चियन बहुल है और इसलिए पूर्वोत्तर राज्यों में यह वोट बैंक है। इस पूरे क्षेत्र में गैर आदिवासियों के साथ शुरू से ही दुर्व्यवहार किया जाता है और यह क्षेत्र इसके लिए मशहूर  है।लेकिन आदिवासियों के साथ एक मामूली घटना दिल्ली तक सुनाई पड़ती है। दिल्ली के जंतर मंतर पर कई बार प्रदर्शन हुए हैं जिसमें इस क्षेत्र के आदिवासियों के साथ खास करके महिलाओं के साथ जोर जुल्म किए जाने का भयंकर विरोध हुआ है।  बांग्लादेश, भूटान और म्यांमार के बीच बसे इन 8 राज्यों में गैर आदिवासियों पर यदि कभी कोई जुल्म हुआ हो और उसकी आवाज  दिल्ली में प्रदर्शन के रूप में गूंजी हो  यह नहीं सुनने में आया। अब जब शिलांग में सिक्खों के प्रतिनिधिमंडल ने रोष व्यक्त किया है  तो कैथोलिक समुदाय ने एक उदारता पूर्ण विज्ञप्ति जारी की है । राष्ट्रीय मुख्यधारा में कायम बहुसंख्यक समाज इस तरह की तीव्रता से अल्पसंख्यकों पर हमले नहीं करता और न कभी कर सकता है।
  शिलांग की यह घटना भारत में  ईसाइयत के समक्ष एक चुनौती है और इसके लिए पूरे ईसाई समाज को काफी सोच समझकर बहुत दूर तक उदारता पूर्ण कदम उठाने पड़ेंगे। वरना अगर इसकी प्रतिक्रिया शुरू हुई तो भारी कठिनाई हो जाएगी।

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