भाजपा के मुद्दे कांग्रेस के लिए हथियार बन रहे हैं
मोदी सरकार ने केंद्रीय सत्ता 4 साल पूरे कर लिए। 2019 में 5 साल पूरे होंगे और चुनाव होंगे। चुनाव को नजर में रखकर सरकार के विभिन्न विभागों के विज्ञापन आने शुरू हो गए हैं। विज्ञापनों में कांग्रेस सरकार के 48 वर्षों के मुकाबले मोदी सरकार के 48 महीनों की तुलना की जा रही है और कोशिश की जा रही है 48 वर्षों से यह 48 महीने ज्यादा सफल हैं। दूसरी तरफ, विपक्ष भी तीखे होते जा रहे हैं। कांग्रेस ने सरकार के 4 साल पूरे होने पर बियर 26 मई को विश्वासघात दिवस मनाया। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला नए आरोप लगाया कि केंद्र सरकार काले धन, महंगाई ,आतंकवाद, करप्शन तथा विदेश नीति के मोर्चे पर पूरी तरह विफल रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी सरकार को पूरी तरह नाकामयाब बताया है। असल में विपक्ष में सरकार को उन्हीं मुद्दों पर घेरना शुरू किया है जिन मुद्दों के बल पर वह सत्ता में आई थी। भाजपा ने 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान साफ-साफ कहा था किजनता उन्हें कांग्रेस के 60 साल के मुकाबले 60 महीने दे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर रैली में इस बात को दोहराते थे। लेकिन मोदी सरकार उन वादों को पूरा करने की जगह उन में उलझी हुई सी दिख रही है। यही कारण है अब गैरों के साथ साथ अपने भी हम ले कर रहे हैं। अरुण शौरी और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे पुराने भाजपाई सरकार पर निशाना साध रहे हैं। यशवंत सिन्हा ने तो सरकार के कामकाज पर नाराजगी जताते हुए पार्टी से ही पल्ला झाड़ लिया। अरुण शौरी ने तो यहां तक कह दिया प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी को समर्थन देना उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल थी। 2014 के चुनाव में मोदी जी सहित उनके स्टार प्रचारकों ने महंगाई, करप्शन, ब्लैक मनी, आतंकवाद, आंतरिक सुरक्षा और किसानों की आत्महत्या के मामले में कांग्रेस सरकार को जमकर लताड़ा था। देश की जनता ने उन्हें भरपूर समर्थन दिया और भाजपा 543 सीटों में से 282 सीटें हासिल करने में कामयाब रही। देश की जनता में 30 साल के बाद इस तरह का जनादेश दिया था। लेकिन 2019 की तैयारी के दौरान भाजपा को उन्हीं मुद्दों से जुड़े तीखे सवालों का सामना करना पड़ रहा है।
2014 में भाजपा ने कांग्रेस पर हमले करते हुए कहा था कि उसने 10 वर्षों तक देश को बेरोजगारी में घसीटा। पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार मुहैया कराने का वादा किया था। लेकिन भाजपा के शासन काल में रोजगार बढ़ने के बदले बेरोजगारों की कौन बढ़ती दिख रही है। नोटबंदी और जीएसटी के चलते लाखों लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा। सरकारी और निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर 997 रोजगार केंद्रों द्वारा नौकरी दी जाने की दर केवल 0.57 प्रतिशत है। नेशनल करियर सर्विस के आंकड़े बताते हैं कि 2015 में इन केंद्रों में रोजगार के लिए निबंधन कराने वाले प्रतीक 500 लोगों में से केवल 3 को नौकरी मिली है। यही नहीं साल-दर-साल यह अौसत गिरता जा रहा है। 2013 में यह आंकड़ा 0. 74 प्रतिशत जो 2015 में कब हो कर 0.57 प्रतिशत हो गया। यही नहीं प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी कौशल विकास योजना भी रोजगार देने में बहुत सफल नहीं हुई। 2017 जुलाई तककौशल विकास के नाम पर 30.67 लाख लोगों को प्रशिक्षित किया गया या उनका प्रशिक्षण चल रहा है और उनमें केवल 2.9 लाख लोगों को ही रोजगार मिल सका है। पिछले साल मोदी जी के सहयोगी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने बेरोजगारी के सवालों को खारिज कर दिया था और कहा था 125 करोड़ की आबादी वाले देश मैं सभी को नौकरी देना क्या संभव है। यहां तक की प्रधानमंत्री जी ने नौजवानों से पकौड़ा बेचने का रोजगार करने की सलाह दी थी और त्रिपुरा के मुख्यमंत्री विप्लव देव पान की दुकान करके रोजी रोटी जुटाने की सलाह दी थी। नौकरी या रोजगार मुहैया कराने के मोर्चे पर असफल मोदी सरकार अब अब स्वरोजगार की ओर इशारा कर रही है। इसका मतलब है कि आगे भी रोजगार के मौके कब होंगे।
महिला सुरक्षा का ढोल पीटने वाले मोदी जी और उनकी सरकार के मुंह पर कछुआ और उन्नाव सामूहिक दुष्कर्म एक तरह से तमाचा थे। 2014 में प्रचार के दौरान भाजपा ने पानी पी-पीकर महिला सुरक्षा के नाम पर कांग्रेस की सरकार को कोसा था। उस समय एक नारा चला था “बहुत हुआ नारी पर वार अबकी बार मोदी सरकार। “ लेकिन अब यही नारा सरकार के रिकॉर्ड पर सवाल खड़े कर रहा है। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2013 में महिलाओं के खिलाफ देशभर में 3,09,546 मामले दर्ज किए गए थे और प्रति लाख आबादी के लिहाज से यह 52.24 था अर्थात देश में एक लाख की आबादी में 52 महिलाएं अपराध की शिकार हुई। जबकि 2016 के आंकड़े बताते हैं कि यह बढ़कर 3.39 लाख हो गया और 2015 में यह3.27 लाख था। इसी अवधि के दौरान बलात्कार के मामले34,651 से बढ़कर 38,947 हो गए।
2014 के अपने प्रचार के दौरान मोदी जी ने सीना चौड़ा कर कहां था चाहे वह आंतरिक सुरक्षा का मामला हो या बाहरी खतरों का बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और जीरो टॉलरेंस के साथ इस देश को इस दिशा में आगे बढ़ाया जाएगा। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार के दौरान जम्मू कश्मीर में आतंकी घटनाओं में डेढ़ गुना वृद्धि हुई है। एस ए टी पी के अनुसार आंतरिक सुरक्षा के मामले में सरकार का प्रदर्शन सवालों से घिरा हुआ है।
10 जून को किसानों का गांव बंद आंदोलन खत्म हुआ। 2016 एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि किसानों की आत्महत्या की संख्या मैं वृद्धि हुई है। उनकी आत्महत्या के मुख्य कारण है कर्ज का बोझ। क्रिसिल एक रिपोर्ट के अनुसार बंपर पैदावार भी किसानों के लिए मुसीबत का कारण बनती है। रिपोर्ट में बताया गया है 2016 17 में दलहन उगाने वाले किसानों उपज में वृद्धि हुई लेकिन आय में 17% गिरावट आ गई जबकि दलहन की खेती की लागत 3.7 प्रतिशत बढ़ गई है। यही हाल महंगाई का भी है। सरकार तेल की कीमतों पर अंकुश लगा पाने में कामयाब नहीं हो पा रही है और जीएसटी लागू होने के कारण अन्य सामानों पर भी लोगों को ज्यादा कीमत देनी पड़ रही है। काले धन मामला अब नहीं हो रहा है। आरबीआई के मुताबिक नोटबंदी के दौरान 1000 के 99% वापस आ गए अर्थात सिर्फ 1% नोट दवे रह गए । इससे साफ जाहिर होता है कि 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान सरकार के काले धन के दावे बेकार थे। करप्शन मिटता हुआ नहीं दिख रहा है उल्टे नौकरशाहों पर अति निर्भरता के कारण यह बढ़ता जा रहा है। मोदी सरकार के इन मुद्दों पर अपनी पकड़ मजबूत करनी पड़ेगी वरना विपक्ष हिंदी को हथियार बनाकर भाजपा को पराजित करने का प्रयास कर सकता है।
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