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Sunday, June 24, 2018

कश्मीर समस्या का हल कैसे हो ?

कश्मीर समस्या का हल कैसे हो ?

कश्मीर में सरकार भंग हो गयी और केंद्र का शासन हो गया। इस मामले के बाद कश्मीर पर तरह- तरह की बहमिीडिया में चलने लगी। उसमें कुछ ण्सही कुछ गलत भी चलने लगा। सोशल मीडिया ने अलग मोर्चा संबाला। लेकिन, शायद यह किसी ने नहीं कनसह कि कश्मीर की समस्या एक धंधा है, एक बाजार है, जो बरसों से चल रहा है, कोई 70-72 बरस से। जैसे एक बाजार में कई बाजार होते हैं और उससे तरह-तरह के लोगों के हित जुड़े होते हैं। ठीक उसी तरह से कश्मीर की समस्या के भी कई पक्ष्भ होते हैं और इससे कई लोगों या समूहों के हित जुड़े होते हैं। सभी ने गौर किया होगा कि कश्मीर समस्या का ज्वार कभी हल्का होता है तो कभी लहरें ऊंची उठने लगतीं हैं। अभी लरहरें ऊंची उठ रही हैं। शुजात बुखारी और औरंगजेब की हत्या इसका सबूत है। दूसरा यह कि, सरकार की सख्ती के कारण कश्मीर में समस्या के लाभ उठाने वाले - भारत और पाकिस्तान - निहित स्वार्थी पक्षों के चहरों पर से नकाब हटने लगी। अगर कश्मीर समस्या का राजनीतिक पक्ष देंखें तो इसका सम्बंध घाटी के उन एक प्रतिशत मंसलमानों से हैं जो खुद को कश्मीरी कहते हैं और ना भारत में जाना चाहते और ना पाकिस्तान में। वे अपना अलग देश बनाना चाहते हैं। कश्मीर में मुसलमानों की आबादी करीब चालीस लाख है और इसका एक प्रतिशत लगभग 40 हजार है। यहीं आकर धंधा शुरू होता है। केवल इन चालीस हजार लोगों को सुविधाएं देने  के लिये पूरे देश से वसूली की जाती है। गौर करें ,2000-2016 के बीच केंद्रीय अनुदान में कश्मीर को दस प्रतिशत मिला। 40 हजार या कुल मिलाकर कहें तो 40 लाख लोगों के लिये यह सुविधा है और भारत के 130 करोड़ लोग इसे देखते रहते हैं। 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि जम्मू कश्मीर की कुल आबादी 1.25 करोड़ है यानी भारत की कुल आाबदी का एक प्रतिशत।  अब जरा गौर करें, देश की 13 प्रतिशत जनता उत्तर प्रदेश में रहती है। उस अनुदान का केवल 8.2 प्रतिशत ही उत्तर प्रदेश को हासिल हुआ। कश्मीर में 2000-16 के बीच प्रतिव्यक्ति 91 हजार तीन सौ रीपों का अनुदान मिला जबकि देश के सर्वाधिक घनी आबादी वालें राज्य उत्तर प्रदेश में प्रतिव्यक्ति 4 हजार 300 रुपये मिले। कश्मरि समस्या को अगर गंभीरता से देखें तो पता चलेगा कि इसके दो पक्ष हैं। पहला कश्मीरी मुसलमानों से मिले भारत के कुछ लोग और उग्रवादियों से जुड़ा पाकिस्तान।इन दो पक्षों पर परदा डालने के लिये कहा जाता है कि इससे 40 हजार अलगाववादियों से जुड़े भारतीय और पाकिस्तानी हैं और इसके अलावा हुर्रियत और जेकेएलएफ हैं। अब अगर कश्मीर समस्या सुलझती है तो कुछ भारतीयों सहित कुछ कश्मीरियों को लाभ होगा और कायम रहती है तो दूसरे पक्ष को फायदा होगा। कश्मीर समस्या अगर हल होती है तो सबसे पहले द्विराष्ट्रीय सिद्धांत की हवा निकल जायेगी , भारत के मैदानी इलाकों में पाकिस्तान की पहुंच नहीं रहेगी और साथ ही चीन पर भी लगाम लग जायेगी। अतएव , कश्मीर समस्या का हल संभव नहीं दिखता। क्योंकि इसके हर समाधान से कोई नता कोई समस्या जुड़ी है। अगर सरकार नरमी बरतती है तो कुछ लोगों की मांग बड़ जायेगी और अगर सख्त होती है तो कई लोगों की भृकुटी चढ़ जायेगी। मजे की बात है कि कुछ बातों पर सभी सहमत हैं और कुछ को लेकर सभी अलग हैं। अब यही विकल्प है कि इसे लेकर भारत -पाक में वार्ता हो या नहीं हो। इसलिये कई लोग इसके बातचीत की सलाह दे रहे हैं कई लो तने रहने की राय देते हैं। सरकार को चाहिये कि ााटी के लोगों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता का ऐसा उपयोग हो कि इससे लाभ उठाने वाले लोगों की ताकत घटे। इससे एक पक्ष खेल से बाहर हो जायेगा और खलनायक कमजोर हो जायेंगे।  

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