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Thursday, June 7, 2018

बेहद खतरनाक है प्लास्टिक

बेहद खतरनाक है प्लास्टिक
विश्व पर्यावरण दिवस को कोलकाता के मेयर ने आह्वान किया कि शहर को प्लास्टिक मुक्त बनाएं । यही नहीं, सार्वदेशिक स्तर पर कई नेताओं ने इस तरह की अपील की। प्लास्टिक का आविष्कार मानव मात्र के लिए परमाणु बम से ज्यादा खतरनाक है और इसके उपयोग को लगातार कम करना चाहिए। इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस का थीम था "प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करें।" यह कितना हानिप्रद है उसे देखते हुए इस पर तुरंत सोचने की जरूरत है। पर्यावरण के प्रति चेतना उत्पन्न करने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस एकमात्र सबसे बड़ा समारोह है।" इंडिपेंडेंट " अखबार की खबर के मुताबिक 2050 तक यानि अब से 32 वर्ष बाद हमारे समुद्रों में छोटे-छोटे प्लास्टिक या कहिए माइक्रो प्लास्टिक इतने हो जाएंगे जो हमारी आकाशगंगा में मौजूद सितारों की संख्या से 500 गुना ज्यादा होंगे। अनुमान के अनुसार कुल मछलियां जितनी होंगी उससे ज्यादा प्लास्टिक के टुकड़े होंगे। यह एक भयावह सूचना है और यह सूचना हमें  प्लास्टिक के प्रदूषण को कम करने के लिए हम अपने जीवन में क्या करें इस पर सोचने को मजबूर करती है । ताकि हम जंगली जानवरों और अपने स्वास्थ्य की रक्षा कर सकें। हालांकि, प्लास्टिक के कई बहुत महत्वपूर्ण उपयोग हैं लेकिन हम फेंके जाने वाले प्लास्टिक पर बहुत ज्यादा निर्भर हो चुके हैं। और यह वातावरण के लिए बहुत खतरनाक है यह हैरतअंगेज है , हमने प्लास्टिक का बहुत ज्यादा उपयोग शुरू कर दिया है क्योंकि प्लास्टिक सस्ता है और टिकाऊ है साथ ही हम जिस स्वरुप में चाहे उसमें इसे बदल सकते हैं। इसीलिए हम जब बाजार जाते हैं तो  प्लास्टिक ले आते हैं । इसका उपयोग इतना ज्यादा है कि 1950 से अब तक हमने 8.3 अरब टन प्लास्टिक का उत्पादन किया है। दहला देने वाली बात है कि, विगत 70 वर्षों में जितने  प्लास्टिक का उत्पादन हुआ  उसका 79 प्रतिशत प्लास्टिक बर्बाद किया जा चुका है महज 9% ही रिसाइकल  के लिए जा सका है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि जमीन पर प्लास्टिक फेंकने की  जो  आदत है वह धरती पर एक खतरनाक कार्य है।  सुनकर आश्चर्य होगा कि पूरी दुनिया में प्रति मिनट 10 लाख प्लास्टिक की पानी की बोतलें खरीदी जाती हैं। हर साल हम लगभग 5 खरब प्लास्टिक के थैले खरीदते और उन्हें फेंक देते हैं । जितने प्लास्टिक का उपयोग करते हैं उनमें आधे एक बार ही उपयोग के लायक होते हैं। इसका मतलब है कि हम इसका उपयोग कर उसे फेंक देते हैं। अब मुश्किल है कि यह फेंके हुए प्लास्टिक जैसे के तैसे कायम रहते हैं और मछलियां तथा जानवर इसके शिकार हो जाते हैं। समाज से प्लास्टिक के सभी उपयोग को बंद करना असंभव है। इसलिए उसे फेंके जाने की प्रक्रिया को रोकना होगा और उपयोग का विकल्प भी खोजना होगा।
  प्लास्टिक जिसे हम फेंक देते हैं उसके प्रति चिंता के दो कारण हैं। पहला कि उसमें हानिकारक रसायन रहते हैं और दूसरा यह कि यह अन्य रसायनों को भी गाढा बनाता है। "प्लास्टिक ओशन फाउंडेशन" ने 2016 में चेतावनी दी अगर वातावरण में प्लास्टिक  बहुत देर तक रहता है तो जहरीला हो सकता है। जहरीले रसायनों को आकर्षित करने की इसकी क्षमता चुंबकीय होती है । फाउंडेशन ने चेताया की प्लास्टिक "पैथालेटस और बिसफेनॉल" जैसे रसायनों से बनता है ।वह जहरीला होता है। इसके कई तरह के खतरनाक प्रभाव भी होते हैं जिससे भयंकर बीमारियां भी हो सकती हैं। प्लास्टिक आसपास के रसायनों को चुंबक की तरह अपनी तरफ खींचता है। जैसे ही समुद्र में गिरता है सामुद्रिक जीव जंतुओं को भी भारी हानि पहुंचाता है। 2017 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल वैसे प्लास्टिक पर पाबंदी की घोषणा की थी जो 50 माइक्रोन से कम के हैं। दिल्ली में इसके लिए छापे पड़े और 9000 किलोग्राम प्लास्टिक जब्त  किए गए। यह एक बहुत बड़ी समस्या हो गई । क्योंकि एजेंसी को यह नहीं मालूम था क्या इतने प्लास्टिक का करें क्या? यह खुद में एक बड़ी समस्या बन गई। प्लास्टिक अगर एक बार बन गया तो हम उसे अपने पर्यावरण से जल्दी अलग नहीं कर सकते।
  प्लास्टिक के थैलों की कीमतें बढ़ गई हैं फिर भी दुकानदारों को इसका उपयोग करना पड़ता है। क्योंकि ,खरीदार बिना थैले के सामान खरीदता ही नहीं है । हम पानी की बोतलें खरीदते हैं और पी कर फेंक देते हैं। नहीं सोचते कि पर्यावरण को इसकी क्या कीमत चुकानी पड़ेगी। उपभोक्ता  इसके उपयोग में कमी के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। खास करके खराब होने वाले सामानों को प्लास्टिक के थैलों में पैक ना करने पर  दवाब दें सकते हैं । लेकिन यह जंग बहुत कठिन है फिर भी यदि उपभोक्ता जागेगा इसमें कमी आ सकती है। यहां तक कि जब हम  कुछ पीते हैं तो उसमें उपयोग किया जाने वाला स्ट्रा भी प्लास्टिक का होता है और उसे हम उपयोग कर जहां-तहां फेंक देते हैं। लेकिन हम दुकानदार या विक्रेता को यह नहीं कहते कि इस तरह के स्ट्रा ना दिया करें।  देखने में यह बहुत मामूली लगता है। लेकिन सोचिए 7.8 अरब लोग जिस धरती पर रहते हैं वे हर दिन एक- एक स्ट्रा फेंके तो कल्पना कर सकते हैं क्या होगा। स्ट्रा तो महज उदाहरण है । हम प्लास्टिक के अन्य सामान भी फेंककर वातावरण को हानि पहुंचाते हैं। सामानों की रीसायकल और उसका दोबारा उपयोग तो जरूरी है ही लेकिन अगर बिना सोचे समझे हम फेंकते रहें तो इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। आदतों में बदलाव वक्त की मांग है । यह विक्रेताओं की जिम्मेदारी नहीं है कि वह है प्लास्टिक  के उपयोग को रोकें। इसकी जिम्मेदारी हम पर है क्योंकि इसकी कीमत हम सब को चुकानी पड़ती है और पड़ेगी।

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