आस निरास भई
जब मोदी जी सत्तारूढ़ हुये तो लोगों में एक उममीद थी कि जरूर कुछ सकारात्मक होगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता दिख रहा है। अभी दो दिन पहले एक चाटर्ड अकाउंटेंट से बातें हो रहीं थीं। उसने बड़ी निराशा से हाथ मलते हुये कहा कि छोटे और मझोले कम्पनियों का बंटाधार हो रहा है। कनारोबार बंद सा होता जा रहा है। जी एस टी की जटिल दरों के कारण कई कम्पनियां अपना धंधा बदल रहीं हैं क्योंकि अगर वे जीएसह टी नहीं कायम कर सकीं तो कठोर दंड मिलता है। इसके लिये कौन दोषी है?यिकीनन वित्तमंत्रालय और कौन? इसने ऐसे नियम कानून लागू किये जिससे टैक्स अधिकारियों के अधिकार बढ़ गये और करप्शन का बांध खुल गया। अब ये अधिकारी खुल कर धमकी देते हैं कि यदि जरा भी गड़बड़ी हो जायेगी तो गिरफ्तार कर लेंगे। लोग परेशान हैं और ब्रष्टाचार का सहारा ले रहे हैं।
अभी हाल में अरुण जेटली से व्यावसायियों के प्रतिनिदिामंडल ने मुलाकात की। जेटली अपनी किडनी बदलवा कर लौटे थे। लेकिन मुलाकात समस्या के रूप में ना कि समाधान के रूप में। अब अगर मोदी जी दुबारा विजयी होते हैं तो वे अपना वित्त मंत्री बदलेंगे। इस बार संभवत: जेटली के सहयोगी पीयूश गोयल को वित्तमंत्रालय दिया जाय। जेटली को और वित्तमंत्रालय को दोषी कहना आसान है। लेकिन, प्रधानमंत्री कार्यालय भी इससे नहीं बच सकता। मोदी जी ने विगत चार वर्षों में कई आर्थिक सुधार किये और बदलाव किये। मसलन, बैंकों की एन पी ए घटाने के लिये कदम उठाये गये, औपनिवेशिक काल के कई कानून रद्द किये गये, बेनामी सम्पति पर रोक के लिये कई काम किये, आर्थिक समावेशीकरण का विकास किया , ग्रामीण विद्युतिकरण को का विस्तार किया ओर स्वच्छता अभियान चलाया। लेकि , इसके प्रति जनता की धारणा नकारात्मक है क्योंकि सारे कामों में अफसरशाही पर अतिनिर्भरता दिखती है। 10विशेषज्ञों को संयुक्त सचिव के रूप में नियुक्ति अभी बाकी है। इससे अफसरशाही के सामान्यीकरण में विशेषज्ञता जुड़ जायेगी।रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर वाई वी रेड्डी ने कुछ दिन पहले 2008 से 2014 के बीच बैंकों के एन पी ए अनियंत्रित हो जाने के लिये पूर्व यूपीए सरकार को कोसा था लेकिन वर्तमान सरकार को भी जिम्मेदार कहा था क्योंकि इसने इस अवस्था को खत्म करने के लिये जल्दी कदम नहीं उठाये।
2014 में मोदी जी ने लंगड़ी अर्थव्यवस्थ वाली विरासत पायी थी। उसे अर्थव्यव7स्था को दुरूस्त करने में पांच वर्ष लग गये। अब अगर 2019 में मोदी पराजित होते हैं तो आनेवाली सरकार को एक अस्वस्थ अर्थ व्यवस्था विरासत में मिलेगी। अब जरा ट2018-19 में अर्थ व्यवस्था के हाल की तुलना 2013-14 के हाल से करें। सकल घरेलू उत्पाद 4.9 प्रतिशत पर आ गया, मौद्रिक घाटा 4.5 हो गया और मुद्रास्फीति बेलगाम हो कर 9 प्रतिशत हो गयी। अतएव मोदी जी ने लंगड़ी अर्थव्यवस्था को सुधारने में 5 वर्ष लगा दिये। अब् अगर हारते हैं तो नयी सरकार को चांदी की तश्तरी में अर्थव्यवस्था प्राप्त होगी। मोदी जी के पास इस स्थिति से बचने के लिये एक साल से कम समय है। जो लोग 7.50 लाख से कम साल में कमाते हैं उस वर्ग का कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह में 10 प्रतिशत अवदान होता है। अगर उस वर्ग को ततकाल राहत दे दी गयी तो राजस्व में कोई बहुत बड़ा असर नहीं होगा औष्र दो प्रत्यक्ष लाभ होंगे। पहला तो यह कि जो मध्य वर्ग भाजपा से अलग हो गया है वह इसके साथ जुड़ जायेगा। दूसरा कि आयकर अधिकारी ऊंचे टैक्स दाताओं पर ध्यान देने लिये खाली हो जायेंगे इससे राजस्व में वृद्धि भी होगी।
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प बेशक जियोपॉलिटिकल दैत्य की तरह आचरण करते हैं पर उन्होंने अपने 17 महीनों के कार्यकाल में अमरीकी अर्थव्यवस्था में चमत्कार किये हैं। बलेरोजगारी की दर बहुत घट गयी है और जीडीपी में तेज वृद्धि हुई है। कॉरपोरेट टैक्स को 35 प्रतिशत से घटा कर 21 प्रतिशत कर उन्होंने कम्पनियों को काफी राहत दी है। मोदी जी को अगल कदम तेल की कीमतों पर जी एस टी लागू करने की ओर उठाना चाहिये। तेल पर जी एस टी लागू होते ही तेल की कीमत थोड़ी गिरेगी और इससे लाखों कार - दोपहिया चालकों को रहात मिलेगी ही साथ में ट्रकों के परिवहन खर्चे में कमी से बाजार पर भी थोड़ा प्रभाव पड़ सकता है।
मोदी सरकार पिछले कई वषौं से निराश करने वो काम कर रही है। खास कर पाकिस्तान और जम्मू कश्मीर पर अप्रासंगिक नीति तथा मंत्रालयों में प्रतिभाशाली मंत्रियों का अभाव। दो एक मंत्री अपवाद हैं बाकी सब एक ही ढर्रे के हैं। घोटाला लांछित यूपीए सरकार की जगह भाजपा विकास का वादा कर सत्ता में आयी। इसने राष्ट्रहितों की रक्षा की शपथ ली। लेकिन कुछ नहीं हो सका। अपने वायदे पूरे करने के लिये अब समय बहुत कम है। जितनी आाशायें थीं निराशा में बदल रहीं हैं।
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