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Monday, June 4, 2018

अब गांव बंद

अब गांव बंद
पंजाब , हरियाणा , राजस्थान  और मध्य प्रदेश सहित देश के करीब 7 राज्यों के किसान हड़ताल पर  हैं या कहें  और यह हड़ताल आज से ज्यादा तीव्र होगी । इस हड़ताल का असर अभी से ही शहरों पर पड़ने लगा है। जिन राज्यों में किसान हड़ताल पर हैं वहां ग्रामीण इलाकों  से सटे शहरों में सब्जियों ,दूध और फलों के दाम बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। किसान अपने उत्पादन की वाजिब कीमत को लेकर 10 दिनों के हड़ताल पर हैं और 5 जून यानी मंगलवार को इनकी हड़ताल का पांचवा दिन है। इस दिन हड़ताली किसान  धिक्कार दिवस मनाएंगे ।यह हड़ताल 10 जून तक चलेगी और इसमें 170 से ज्यादा किसान संगठन भाग ले रहे हैं। इस आंदोलन के तहत 9 दिन गांव बंद रहेंगे और दसवें दिन यानी 10 जून को भारत बंद करने की योजना है। इससे सब्जी तथा दूध खरीदने वाले और बेचने वाले दोनों अभी से परेशान नजर आ रहे हैं। अब यहां सवाल उठता है कि क्यों किसानों को सड़कों पर आना पड़ा ? क्यों गांव बंद आंदोलन करना पड़ा ? यह गांव बंद है  क्या? 
बेशक इस हड़ताल का नाम गांव बंद है लेकिन इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं शहर वाले। गांव बंद के माध्यम से किसान अपना उत्पादन शहरों में बेचने से मना कर रहे हैं। हालांकि किसानों ने यह तय किया है कि इस दौरान अगर किसी को फल, सब्जी और दूध की बहुत ज्यादा जरूरत है तो वह उनकी दर पर इन्हें खरीद सकता है।
इस बंद के माध्यम से किसान स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू किए जाने, ऋण माफ किए जाने, अनाज की तरह फलों और सब्जियों का न्यूनतम मूल्य तय किए जाने और दूध की कीमत कम से कम ₹27 प्रति लीटर रखने की बात कर रहे हैं । फिलहाल खबरें बताती हैं फिर किसान कई इलाकों में दूध सड़कों पर बहा दे रहे हैं और फलों तथा सब्जियों को ट्रैक्टर एवं ट्रकों से कुचल दे रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि समीपवर्ती शहरों में सब्जियों के भाव और फलों के भाव आसमान छूने लगे हैं। दिल्ली के बारे में तो खबर है सब्जियां 20 रुपए किलो ऊंचे भाव पर बिक रहीं हैं। अचानक इस तरह दाम बढ़ने से मध्यम वर्गीय उपभोक्ताओं को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इस हड़ताल से भाजपा नेताओं के बोल बदल गए हैं केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने बड़ा बेतुका बयान दिया है । केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह का कहना है कि यह हड़ताल मीडिया का ध्यान आकर्षित करने का एक तरीका है, जबकि मनोहर लाल खट्टर का कहना है कि उनके पास यानी किसानों के पास कोई मसला नहीं है तो वह  यह रास्ता अपना रहे हैं। इससे उनका ही अहित होगा। उनके इन बयानों की किसानों में तीखी प्रतिक्रिया है और वह इनकी तीव्र आलोचना कर रहे हैं । 
2014 में किसानों में मोदी जी को लेकर बहुत उल्लास था। उनका मानना था वह प्रधानमंत्री होंगे तो उनका दुख दूर हो जाएगा। लेकिन इन दिनों वे काफी नाराज हैं। क्योंकि 2014 से अब तक किसानों की आय में औसत 5% वृद्धि हुई है जो लागत में हुई वृद्धि की तुलना में बहुत कम है। हालांकि बाद में रिकवरी हुई लेकिन तब तक 4 साल गुजर चुके थे। यह रिकवरी इतनी देर से शुरू हुई की आम मतदाताओं तथा किसानों को इस से कोई लाभ नहीं होने वाला । अगर यह सुधार पहले आया होता तो कुछ लोगों को खेती- किसानी के अलावा बाहर रोजगार मिल गया होता और कृषि उत्पादों की मांग में वृद्धि हुई होती। अगर ऐसा होता तो किसान शायद कम नाराज होते। लेकिन सरकार ने गलती कर दी।  मोदी जी ने यह समझा की ज्यादा दिनों की योजना और ज्यादा लाभ कारगर होगा। उन्होंने यह नहीं समझा की किसान को उसके जेब में पड़े पैसे ही ज्यादा लाभ दिलाते हैं और उसी का सहारा उनके पास होता है। कल क्या होगा यह तो दूर की बात है।
  यहां एक शास्वत प्रश्न है की सारी तैयारियों के बावजूद कृषि व्यवस्था में लाभ क्यों नहीं होता? किसानों की आय क्यों नहीं बढ़ती?  सबके पास अलग-अलग जवाब हैं। वैज्ञानिक कहते हैं की टेक्निक सुधारने की जरूरत है, राजनेता कहते हैं बीज, खाद , सिंचाई इत्यादि की जरूरत है ,अर्थशास्त्रियों का मानना है कि कृषि मूल्य और बाजार के ढांचे में सारी समस्या है। बाजार का समीकरण किसानों के हित के खिलाफ है। चाहे जिसके पास जो जवाब हो लेकिन यह सच है कि खेती हमेशा से बुरी हालत में रही है। कॉमन सेंस बताता है कि जमीन के भरोसे रोजी जुटाने वालों की तादाद ज्यादा है और जमीन कम है इसलिए जीवन स्तर इतना नीचे गिर रहा है । अगर आधे लोग खेती से निकल कर किसी दूसरे काम में लग जाएं तो गांव की हालत सुधर जाएगी। कृषि की सबसे बड़ी समस्या आबादी है। माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत का विकसित रूप यहां दिखाई पड़ता है। माल्थस के सामने मुख्य मुद्दा था अनाज की कमी के दौर में सबको भोजन कहां से मिलेगा जबकि हमारी समस्या है कि किसानों की आमदनी कैसे बढ़े?  सरकार कुछ नहीं कर पा रही है और किसानों का असंतोष बढ़ता जा रहा है। कम से कम रोजगार सृजन हुआ होता कुछ लोग बाहर जाकर दूसरे काम में लगते और खेती पर से भार कम होता । 
आज नहीं कल इस तरह के आंदोलन हिंसक रूप दे सकते हैं और फिर सरकार को करने के लिए कुछ बाकी नहीं रह जाएगा। क्योंकि इससे एक श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया आरंभ होगी जो हर कड़ी के बाद फैलती जाएगी।

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