शाह की कश्मीर यात्रा
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पिछले हफ्ते कश्मीर यात्रा पर गए थे और उनकी इस यात्रा से बड़े कठोर संकेत प्राप्त हो रहे हैं। खास करके, विभिन्न राजनीतिक दलों में अलगाववादियों और उनके मददगार तथा उनके समर्थकों के लिए दिल्ली लौटने से पहले शाह ने कश्मीर की पुलिस और वहां तैनात सुरक्षाबलों को निर्देश दिया कि आतंकवाद और आतंकवादियों को बिल्कुल बर्दाश्त ना करें और कहा कि आतंकवादियों को धन मुहैया कराने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई जारी रहेगी। शाह ने पुलिस ,नागरिक प्रशासन , और सुरक्षाबलों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ सुरक्षा समीक्षा की। उस बैठक में स्पष्ट कहा कि कानून का शासन लागू किया जाना चाहिए। शाह की दो दिवसीय कश्मीर यात्रा के दौरान कश्मीर के दो बड़े व्यापारी परिवारों पर आयकर के छापे जारी रहे। इनमें एक परिवार नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ है और दूसरा कांग्रेस के साथ। इनमें से एक अब्दुल रहीम राठर परिवार के जम्मू और कश्मीर में 5 परिसरों पर छापे पड़े। अब्दुल रहीम और उनके रिश्तेदार शफी उड़ी नेशनल कॉन्फ्रेंस के बड़े नेता हैं और उन्हें फारुख अब्दुल्ला के बाद माना जाता है। यह दोनों 70 के बाद से कश्मीर के वित्त मंत्री भी रह चुके हैं।
राठर 1977 में राजनीति में आए और तब से 2014 के बीच उसने 7 विधानसभा चुनाव जीते हैं। यहां तक कि हाल के लोकसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस के अब्दुल्ला ने जो सत्तर हजार मतों की बढ़त पाई है उनमें से दस हजार वोट राठर के चरार ए शरीफ क्षेत्र के हैं।
दूसरे बड़े नेता है जनक राज गुप्ता। जनक राज की मृत्यु सितंबर 2015 में हुई। तब तक वे कांग्रेस के बहुत बड़े नेता रहे और कई बार लोकसभा तथा विधान सभा के सदस्य भी रहे। जब गुलाम नबी आजाद मुख्यमंत्री थे तो वे उनके सलाहकार हुआ करते थे। यही नहीं, हाल के दिनों में आयकर विभाग में जम्मू और कश्मीर में प्रभावशाली लोगों के व्यापारिक संस्थानों पर कई छापे मारे। जिन लोगों पर छापे मारे गए उनमें से कुछ पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के बड़े नेताओं के करीबी रिश्तेदार भी शामिल हैं। मजे की बात है कि पीपुल्स कॉन्फ्रेंस महबूबा मुफ्ती की पार्टी है जो भाजपा के साथ कश्मीर में सरकार बना चुकी है। अमित शाह के लौटने के बाद नई दिल्ली से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि यह छापे सामान्य थे और इनका उद्देश्य आतंकवाद को दिए जाने वाले धन को रोकना था। वैसे राठर और गुप्ता के व्यापारिक परिसरों में छापे के दौरान अमित शाह की कश्मीर में विभिन्न बैठकों में यह बात सुनी गई कि लोग जानना चाहते थे कि अगला छापा कहां पड़ेगा।
अमित शाह के इस दौरे ने मोदी के दूसरे दौर में चल रही अटकलों को विराम दे दिया। वरना , कहा जा रहा था कि कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिए सरकार मुख्यधारा के राजनीतिक दलों और जम्मू कश्मीर के अलगाववादियों से बातचीत करेगी। अमित शाह ने राजनीति दलों से मुलाकात को दरकिनार कर पंचो, सरपंच और गूजर समुदाय यह लोगों से मुलाकात की। उन्होंने गत 12 जून को अनंतनाग हमले में मारे गए पुलिस और सीआरपीएफ के अफसरों में से एक इंस्पेक्टर अरशद खान के परिजनों से भी मुलाकात की। उन्होंने आतंकवादियों के हाथों मारे गए भाजपा कार्यकर्ताओं के सम्मान में आयोजित समारोह की अध्यक्षता भी की।
जैसा कि विगत दो दशकों से से चल रहा था उससे अलग पुलिस और खुफिया संगठनों को यह निर्देश नहीं दिए गए कि वह किसी विशेष अलगाववादी के संपर्क में रहें। यही नहीं सबसे महत्वपूर्ण तो यह था कि इस बार अमित शाह की यात्रा में घाटी में ना कोई बंद हुआ और ना ही टि्वटर की अफरा तफरी दिखाई पड़ी। वरना हर बार, लगभग 25 वर्षों से यही चला रहा है कि , जब भी कोई प्रधानमंत्री या गृह मंत्री घाटी दौरे पर होता है तो अलगाववादी और आतंकवादी संगठन वहां बंद का आह्वान कर देते थे और पूरी घाटी सुनसान रहती थी। साथ ही, पिछले कुछ वर्षों से ट्विटर पर जमकर अफवाह फैलाई जाती रही है। लेकिन शाह अपने कार्यक्रम के अनुसार श्रीनगर और जम्मू गए तथा उस दौरान ,साथ साथ ही आयकर के छापे भी पड़ते रहे लेकिन कोई भी अलगाववादी संगठन या मुख्यधारा का राजनीतिक संगठन अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करने के लिए सामने नहीं आया। ट्विटर पर बात को बढ़ाने के लिए मशहूर उमर अब्दुल्ला, महबूबा , सज्जाद लोन शाह फैसल इत्यादि चुप बैठे रहे। यहां तक कि नेशनल कॉन्फ्रेंस या पीडीपी का कोई बड़ा नेता अधिकृत रूप से कुछ कहने को तैयार हुआ। उमर अब्दुल्ला की पार्टी के एक नेता ने जरूर कहा कि शाह का राष्ट्रवाद और राष्ट्रभक्ति दिखावा के अलावा कुछ नहीं है। उसने कहा कि श्री शाह को पूर्व जनसंघ के नेता टीका लाल टपलू याद हैं । लेकिन 1989 में गोलियों से भून डाले गए गुलाम हसन हलवाई से लेकर कर 2018 में मुस्ताक वानी और नाजिर वानी की हत्या के बीच मारे गए कई लोग याद नहीं रहे।
कई अटकलों के विपरीत शाह की इस यात्रा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अलगाववादियों और आतंकवादियों पर चल रहे छापे और धर पकड़ कायम रहेगी तथा अलगाववादियों एवं मुख्यधारा के राजनीतिक दलों व उनके समर्थकों को चैन से नहीं बैठने दिया जाएगा। जम्मू कश्मीर में जल्दी ही विधान सभा चुनाव होने वाले हैं। जो हालात बन रहे हैं उसे देख कर महसूस होता है कि शायद ही चुनाव हों।