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Tuesday, October 15, 2019

वायु प्रदूषण में डूबता कोलकाता

वायु प्रदूषण में डूबता कोलकाता

दशहरा  और बंगाल की लक्ष्मी पूजा बीत गई और अभी से वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। दीपावली अभी बाकी है। विशेषज्ञों के अनुसार कोलकाता के वायु प्रदूषण की सीमा एक सौ को पार कर चुकी है और आने वाले दिनों में हालात और बिगड़ने वाले हैं । कोलकाता में प्रातः भ्रमण की जितनी जगह है जैसे  विक्टोरिया मेमोरियल और मैदान का क्षेत्र वहां सबसे ज्यादा प्रदूषण है। विशेषज्ञों के अनुसार यहां 118 से 128 पॉइंट्स प्रदूषण मापा गया है। यह फेफड़े के लिए उतना ही हानिकारक है जितना 27 सिगरेट पीने से होता है। इसके खतरे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक सिगरेट से 22 माइक्रोन पीएम 2.5  का ज़हर निकलता है तो 27 सिगरेट पीने से क्या हो सकता है? वैसे वायु प्रदूषण दुनिया के लगभग सभी बड़े शहरों की समस्या है। पिछले हफ्ते शनिवार को लंदन में वैज्ञानिकों ने लंदन साइंस म्यूजियम के समक्ष प्रदूषण सुधारने के लिए सरकार पर जोर देने उद्देश्य से लेबरेटरी कोट पहनकर प्रदर्शन किया था। लेकिन कोलकाता में ऐसा कुछ नहीं हुआ है  जागरूकता की कोई कोशिश  होती दिख नहीं रही है। यह दिनोंदिन खतरनाक होता जा रहा है। सी एन सीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक महानगर में प्रति एक लाख लोगों पर 19 लोगों को फेफड़े का कैंसर हो रहा है। इसके लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है और इन 19 लोगों में अधिकांश वही है जो प्रात: भ्रमण के लिए विक्टोरिया या उसके आसपास के इलाकों में लगातार जाते हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट कोलकाता के एक अध्ययन के मुताबिक यहां के लोग सबसे ज्यादा प्रदूषित वायु का सेवन करते हैं। यहां के वायु में विगत 6 वर्षों में नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा 2.7 गुनी बढ़ गई है। विशेषज्ञ इसके दिए मोटर कारों की बढ़ती संख्या और एक खास समय में उनका कोलकाता में प्रवेश करना तथा कोलकाता से बाहर जाना बताते हैं।   अब से कुछ साल पहले तक कोलकाता निवासी बसों में सफर करते थे या फिर छोटी मोटी दूरी के लिए पैदल जाते थे इससे वायु प्रदूषण कम होता था। अब  वह बातें खत्म हो गयीं और एक आध किलोमीटर  जाने के लिए भी लोग अपनी गाड़ी का सहारा लेते हैं। इंस्टीट्यूट  फॉर  हेल्थ मैट्रिक्स एंड  इवेलुएशन  द्वारा  संचालित ग्लोबल बर्डन आफ डिजीज के आंकड़ों के मुताबिक बारीक पार्टिकुलेट मैटर 2.5 की भूमिका का दुनिया में ह्रदय रोगों से मरने वाली बीमारियों में पांचवां स्थान है। इसके चलते सांस की तकलीफ बढ़ती रहती है। वस्तुतः डनलप, श्याम बाजार, मौलाली, एस्प्लेनेड और टॉलीगंज जहां 24 घंटे गाड़ियां  चलती हैं, उन क्षेत्रों की हवा में बारीक पार्टिकुलेट मैटर 2.5 की मात्रा अन्य इलाकों से ज्यादा रहती है।  यहां के निवासियों में हृदय रोग ज्यादा शिकायतें आती हैं।
       लेकिन कोलकाता में प्रदूषण का मुख्य कारण केवल यहां चलने वाले वाहन ही नहीं हैं बल्कि इसका अपना एक भूगोल भी है जो प्रदूषण में काफी सहयोग करता है। कोलकाता भारत के पूर्वी क्षेत्र में 22 डिग्री 82 मिनट  अक्षांश एवं 88 डिग्री 20 मिनट देशांतर पर अवस्थित है। यह हुगली के समानांतर बसा हुआ  शहर है । दरअसल कोलकाता बहुत बड़ी निम्न तलीय भूमि है जहां एक बहुत बड़ी आबादी बसी हुई है। 2001 की जनगणना की रिपोर्ट के मुताबिक कोलकाता की जनसंख्या का घनत्व 24,760 व्यक्ति प्रति किलोमीटर है। यह मुंबई के बाद सबसे ज्यादा जनसंख्या है। 2001 के आंकड़े बताते हैं कोलकाता का क्षेत्रफल 1,480 वर्ग किलोमीटर है और यहां से सुंदरबन का डेल्टा महज 154 किलोमीटर दक्षिण में है जो शहर को बंगाल की खाड़ी से अलग करता है। विख्यात भूगोलवेत्ता डॉक्टर पी नाग के मुताबिक कोलकाता शहर कई टोपोग्राफी क्षेत्रों से मिलकर बना है। कोलकाता में 5 भौगोलिक की टोपोलॉजी है । पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण और मध्य कोलकाता। जिसमें 2001 की जनगणना के मुताबिक हावड़ा, हुगली ,उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और नदिया शामिल है । कोलकाता एक समशीतोष्ण क्षेत्र है। गर्मियों में यहां बहुत ज्यादा गर्मी पड़ती है और वातावरण में आर्द्रता बहुत ज्यादा होती है। यहां का वार्षिक औसत तापमान 26.8 डिग्री सेंटीग्रेड मापा गया है।यहां का अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेंटीग्रेड और न्यूनतम तापमान 5 डिग्री सेंटीग्रेड मापा गया है। यहां की हवा में सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा सबसे ज्यादा पाई जाती है और उसका कारण यहां  की भौगोलिक स्थिति है।
       इसे नियंत्रित करने के लिए सबसे जरूरी है यहां की ट्रांसपोर्ट व्यवस्था को सुधारा जाए और ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर पाबंदी लगाई जाए। कोलकाता शहर के आसपास चारों तरफ स्लम्स हैं और वहां बड़ी संख्या में लोग कोयले तथा लकड़ियां जलाकर खाना बनाते हैं। इसके अलावा कोलकाता महानगर के फुटपाथ पर रहने वाले लोग भी कोयले और लकड़ी जलाकर खाना बनाते हैं। इस पर रोक लगाना बेहद आवश्यक है। वर्ना, शहर की हवा की गुणवत्ता दिनोंदिन खराब होती जाएगी और यह यहां के बाशिंदों को हानि पहुंचाएगी।

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