शौचालय बने पर उपयोग करने वाले नहीं हैं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि 2 अक्टूबर को खत्म होने वाले साठ महीनों में 60 करोड़ से अधिक लोगों के लिए 11 करोड़ शौचालय निर्मित करा दिए गए हैं। दुनिया इसे देखकर सुनकर अचंभित है। बेशक यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। भारत जैसे विशाल देश और विभिन्न आदतों और रिवाजों वाले विशाल आबादी के लिए इतना बड़ा काम करना सचमुच विस्मयजनक है । लेकिन योजना के अभाव में और सहायता की कमी के कारण आंकड़े बताते हैं कि 41% लोगों के घरों में शौचालय नहीं है और वे अभी भी शौच के लिए बाहर जाते हैं। आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण बिहार ,मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में 2014 से अभी भी लगभग 23% लोग बाहर शौच करते हैं। लाखों शौचालय बने लेकिन उसका उपयोग करने वाले लोग नहीं हैं और इसलिए कई तरह के खतरे उपस्थित होने वाले हैं। विभिन्न अध्ययनों से यह पता चला है कीटाणु और विषाणु बड़े लोकतांत्रिक होते हैं यह अमीर और गरीब ऊंची जाति और नीची जात में फर्क नहीं करते। खुले में शौच के कारण विषाणु पेयजल, खाद्य पदार्थ इत्यादि को प्रदूषित कर देते हैं और उसके कारण डायरिया, पेचिश और अन्य तरह की पेट की बीमारियां होती हैं। फिर इनके माध्यम से कीटाणुओं का प्रसार होता है। सरकार का दावा है कि जब से यह परियोजना आरंभ हुई तब से 2 अक्टूबर 2019 तक लगभग 11 करोड़ शौचालय निर्मित हो गये। यह सरकारी आंकड़ा है इसकी प्रशंसा बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाऊंडेशन ने भी हाल में की और प्रधानमंत्री को ग्लोबल गोलकीपर का पुरस्कार दिया। लेकिन इकोनॉमिक एंड पॉलीटिकल वीकली के अनुसार खुले में शौच कार्यक्रम के विकास पर राइस फाउंडेशन द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार खुले में शौच करने वालों की संख्या 70% से घटकर कर 44% हो गई। यानी ,ऐसे लोग जिनके घर में शौचालय हैं वे अभी भी बाहर जाते हैं। यह कोई नई समस्या नहीं है। स्वच्छ भारत मिशन के लिए मुहैया कराई गई आर्थिक सहायता और शौचालयों के निर्माण के रेंडम मूल्यांकन से पता चलता है की 2009 से 2011 के बीच मध्य प्रदेश के 2 गांव जिनकी आबादी एक ही है वहां एक ही संख्या में शौचालय निर्मित किए गए लेकिन एक में उपयोग करने वालों की संख्या दूसरे के मुकाबले 26% ज्यादा है। इस तरह से सैकड़ों क्षेत्रों में हजारों गांव का सर्वेक्षण किया गया और पाया गया कि जितने शौचालय निर्मित हुए हैं उनका उपयोग नहीं हो पा रहा है । 41% घर ऐसे हैं जहां इनकी सुविधा है लेकिन वे इसका उपयोग नहीं करते। यहां अब एक बहुत बड़ा प्रश्न उठता है की कैसे एक नीति तैयार की जाए जो लोगों को वस्तुतः शौचालय का उपयोग करने के लिए प्रेरित करे? एक शोध के अनुसार शौच से प्रसारित होने वाले कीटाणु जो खाद्य पदार्थों के माध्यम से भीतर जाते हैं उसके प्रति जागरूकता लोगों को शौचालयों के उपयोग के लिए प्रेरित नहीं करती है ।
शोध से यह प्रमाणित हुआ है की ऐसे क्षेत्र जहां शौचालयों की कमी है वहां जागरुकता के साथ-साथ वित्तीय सहायता देने के कार्यक्रम ज्यादा प्रभावशाली हो सकते हैं, खास करके निम्न आय वर्ग के लोगों में। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश का शिवपुरी जिला खुले में शौच से मुक्त हो चुका है लेकिन 2 दिन पहले वहां दलित समुदाय के दो बच्चों को इसलिए पीट-पीटकर मार डाला गया कि वे खुले में शौच कर रहे थे। हमारी मीडिया प्रधानमंत्री को ग्लोबल गोलकीपर का पुरस्कार दिए जाने का जश्न मना रही थी और इधर ये बच्चे अंतिम सांस ले रहे थे। स्वच्छ भारत मिशन की सबसे बड़ी कमी थी कि उसमें शौचालय मुक्त बनाने पर ज्यादा जोर दिया गया देश की संपूर्ण स्वच्छता पर नहीं। विगत 5 वर्षों में मंत्रियों और अफसरों ने शौचालयों की संख्या और आर्थिक सहायता की राशि का ब्यौरा दिया लेकिन किसी ने लोगों में स्वच्छता की अलख नहीं जगाई । डैन कॉफी और डीन स्पीयर्स ने अपनी किताब "व्हेयर इंडिया गोज: एबंडेंट टॉयलेट्स ,स्टंटेड डेवलपमेंट एंड द कॉस्ट ऑफ कास्ट" में लिखा है कि भारत के लोग बाहर शौच करना ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि शौचालयों को बाद में साफ करने के लिए जो कुछ करना पड़ता है वह देश के उच्च जाति के लोगों को नहीं पसंद है। भारत में ऐतिहासिक रूप से शौचालय अछूत कार्य से जुड़ा था। सुनकर हैरत होगी कि शौचालय जितने ज्यादा बने अछूतों का दमन उतना ही बढ़ गया। इसके तीन उदाहरण तो सब जानते हैं पहला शौचालयों की संख्या बढ़ने के बावजूद स्वच्छता का ढांचा नहीं बदला। खास करके नाली, सेफ्टी टैंक ,स्वच्छता कर्मी और अन्य उपस्कर। अभी भी शौचालयों की टंकी को आदमी ही साफ करते हैं । ऊंची जाति के हिंदू शौचालय का उपयोग करते हैं लेकिन इसकी सफाई नहीं करते। तीसरा कारण है जो लोग शौचालयों की सफाई से जुड़े हैं उन्हें दूसरा काम नहीं मिलता और आर्थिक रूप से वह काफी साधन हीन हैं। यही कारण है कि हिंदू समुदाय में भी इन दिनों जाति की समस्या बढ़ती जा रही है । प्रधानमंत्री ने बेशक घोषणा कर दी कि भारत खुले में शौच से मुक्त हो गया लेकिन मध्य प्रदेश के दो बच्चों की लिंचिंग इस घटना की पृष्ठभूमि में अलग ही कहानी कह रही है।
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