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Friday, October 18, 2019

गरीबी को समझने के बाद अब भूख की बात

गरीबी को समझने के बाद अब भूख की बात

कोलकाता के अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को गरीबी को समझने के उद्देश्य से नई विचार शैली विकसित करने के लिए नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा के 48 घंटे भी नहीं गुजरे कि अखबारों में आया कि भारत भुखमरी के 102वें पायदान पर खड़ा है। कुल सीढ़ियां 117 हैं ।  हर क्षण  पाकिस्तान को नीचा दिखाने  की बात करने वालों को यह देखना चाहिए  कि   भारत    समस्त  दक्षिण भारतीय देशों में  सबसे नीचे है।  यहां तक कि पाकिस्तान  भी 94 वें पायदान पर पहुंच गया है। खुशहाली और विकास की राजनीतिक डुगडुगी बजाने वालों को यह समझ में नहीं आता कि भारत का आम आदमी कहां जा रहा है? बच्चे जवान होने से पहले बूढ़े हो जा रहे हैं और मौत के आगोश में समा जा रहे हैं । विश्व भुखमरी सूचकांक या कहें ग्लोबल हंगर इंडेक्स में बताया गया है कि भुखमरी का स्तर और गरीबी का स्तर धीरे धीरे ऊपर उठ रहा है और वह गंभीर से मध्यम होता जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा इसलिए हो रहा है कि दुनिया में गरीबी कम हो रही है और गरीबी तथा भूख का आपस में अभिन्न संबंध है। बच्चों के कुपोषित होने की दर दुनिया में कहीं भी 20.8% है और बच्चों के अविकसित होने की दर 37.9 प्रतिशत है। लेकिन भारत जिसे हम बहुत खुशहाल देश कह रहे हैं उसमें भुखमरी के आंकड़े 30.3 हैं। जिसका अर्थ है की यहां की भुखमरी गंभीर है। हां यह देखकर खुश हुआ जा सकता है यह पिछले कुछ सालों में हालात बदले हैं। सन 2000 में यह आंकड़े 38.8 थे सन 2005 में यह 38  हो गए और 2010 में थोड़ा विकास हुआ और आंकड़े 32 पर पहुंच गए और अब हम 30.3 पर है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की यह रिपोर्ट 2014 से 18 के बीच कुपोषित बच्चों की आबादी के आधार पर तैयार की गई है। आकार में विशाल होने के कारण भारत नए इस सूचकांक पर बहुत प्रभाव डाला है । भारत में बच्चों के कुपोषित होने की दर 20.8% है यह दुनिया में किसी भी देश से सबसे ज्यादा है। रिपोर्ट में बताया गया है की 6 से 23 महीनों के केवल 9.6% बच्चों को निम्नतम स्वीकार्य भोजन प्राप्त होता है। स्वास्थ्य मंत्रालय की हाल की रपट में तो यह आंकड़े और भी कम बताए हैं।  उस रिपोर्ट में न्यूनतम स्वीकार्य भोजन दिए जाने वाले बच्चों का अनुपात 6.4% बताया  है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में बांग्लादेश की प्रशंसा की गई है उसमें कहा गया है उसने काफी तरक्की की है।
         नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने अपनी पुस्तक "द पुअर इकोनॉमिक्स" में लिखा है कि गरीबी और भूख में अन्योन्याश्रय संबंध है लेकिन सरकार का गरीबी मिटाने का प्रयास  और ना भूख मिटाने का बहुत ज्यादा कामयाब होता नहीं दिखता है। लिहाजा दोनों में लगातार इजाफा हो रहा है। सरकार की तरफ से जो सब्सिडी दी जाती है वह उन लोगों को दी जाती है जो बहुत गरीब नहीं है तथा वे अन्य स्रोतों से भी धन का प्रबंध कर सकते हैं। जिन बहुत गरीबों को आर्थिक मदद दी जाती है उनके भीतर यह भाव रहता है यह खर्च करने के लिए है और कोई उसका उपयोग नहीं कर पाते। इसलिए गरीबी दूर होना मुश्किल लगता है और जब तक गरीबी रहेगी तो भुखमरी बढ़ती घटती रहेगी।  यद्यपि सरकार खुशहाली के लिए बहुत कुछ कर रही है ताकि, बच्चों में कुपोषण खत्म हो। नीति आयोग के अनुसार राष्ट्रीय पोषण रणनीति बनाई जा रही है जिसमें लक्ष्य स्पष्ट रूप से तय किए जाएंगे और उनकी निगरानी भी होगी। गर्भवती महिलाओं के लाभ के लिए प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद हालात सुधरने की खबरें मिल रही हैं। सरकार ने अगले 3 वर्षों में कुपोषण से मुकाबले के लिए 12 हजार करोड़ रुपयों का आवंटन किया है। जिस से उम्मीद है कि कुपोषण घटेगा और खुशहाली आएगी। दरअसल, भारत एक विशाल राष्ट्र है जहां तरह-तरह के विचार, रस्मो - रिवाज और आदतों से जुड़े लोगों की विशाल आबादी वास करती है। सरकार की तरफ से किए जाने वाले प्रयास सराहनीय है। लेकिन इतनी जल्दी उनका प्रभाव देखने को मिलना शायद संभव नहीं है।


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