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Tuesday, October 29, 2019

अयोध्या मामले को लेकर मोदी और शाह की नींद हराम

अयोध्या मामले को लेकर मोदी और शाह की नींद हराम 

अयोध्या मामले के फैसले में महज एक पखवाड़े कुछ ही ज्यादा समय बचा  है। देश की आधुनिक राजनीति पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालने वाला यह मसला किस करवट बैठेगा इसे लेकर मोदी ,अमित शाह और भाजपा की नींद हराम है। अयोध्या मामले से उम्मीद है इसलिए भी हैं कि अभी  हफ्ते भर  पहले जो चुनाव हुए उसमें भाजपा बैकफुट पर चली गई और अब अगर अयोध्या मामला उसके पक्ष में आता है तो उसके हर पहलू का वह उपयोग कर सकती है। एक तरफ तो गिरती अर्थव्यवस्था और दूसरी तरफ राजनीतिक लोकप्रियता में धीरे-धीरे होता ह्रास मोदी के अजेय होने पर सवाल उठाने लगा है। यही कारण है, अयोध्या फैसले पर अब मोदी अमित शाह और भाजपा की निगाहें टिकी हुई है। आशा है यह फैसला 17 नवंबर के पहले होगा। मोदी और शाह इस इसलिए भी बेचैन हैं कि कहीं इससे सियासत की धारा ना बदल जाए। फैसला चाहे जो हो इसका असर भाजपा को मदद ही पहुंचाएगा। क्योंकि अभी जो सत्ता है वह किसी भी स्थिति को अपने पक्ष में कर लेने में माहिर है। अमित शाह खुद इतने व्यवस्थित हैं कि वह किसी भी प्रतिफल को अपने पक्ष में करने की रणनीति बना लेते हैं। राम जन्मभूमि आंदोलन ने ही 1990 के दशक में लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा उभरने के लिए एक मंच दिया और पार्टी राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित हो गई । अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला लड़खड़ाती की अर्थव्यवस्था , बेरोजगारी  और  ग्रामीण   असंतोष का मुकाबला कर रही  सरकार  और पार्टी  को हिंदुत्व का एक नया मसाला दे सकता है। अगर पक्ष में फैसला जाता है तो इसका मतलब होगा की सरकार इसका श्रेय लेगी और बिगुल बजाएगी।  अगर बहुत ज्यादा पक्ष में बात नहीं हुई तो हो सकता है सांप्रदायिक भावनाओं को दुबारा हवा देने का मौका मिल जाए । चाहे जो हो सियासत ही जीतेगी।
            अगर यह सत्तारूढ़ दल के पक्ष में जाता है तो अयोध्या और राम मंदिर का मसला विपक्षी दलों को किनारा कर देगी और उसकी आवाज बंद हो जाएगी। सत्ता  के पक्ष में यदि फैसला होता है तो हिंदू पक्ष वही करेगा जो  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और समस्त हिंदुत्व समूह करने के लिए कहेंगे।  इसे अभूतपूर्व विजय की संज्ञा दी जाएगी तथा उम्मीद की जाएगी इस लहर के बल पर अगला चुनाव जीत जाएं। भाजपा बहुलता वादी सियासत को बढ़ावा देगी और सब कुछ राष्ट्रवाद के आधार पर होगा। इसमें एनआरसी ,नागरिकता संशोधन विधेयक, धारा 370 ,कल्याणकारी योजनाएं वगैरह इसके आधार को मजबूत बना देगी। बस जरा पीछे गौर करें जब 23 मई को भाजपा सत्ता में आई थी चुनाव के दौरान ऐसे संकेत मिल रहे थे भाजपा एनआरसी पर थोड़ी मुलायम होगी वरना  चुनाव में उसकी स्थिति  बिगड़ेगी। लेकिन इसने उसे और भी तीव्र किया। यहां तक कहा गया कि इसे पूरे देश में लागू किया जाएगा।  साथ ही पार्टी में हिंदू रिफ्यूजी और मुस्लिम रिफ्यूजी में एक विभाजन रेखा खींच दी और चुनाव में उसे ज्यादा मत मिले। मोदी जी ने तीन तलाक का मामला संसद में पेश किया और उसे भी पारित करा दिया। कश्मीर को मिला विशेष दर्जा वापस ले लिया गया ।
        अब सवाल उठता है कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई वह कैसी हुई? विशेषज्ञों का मानना है कि फैसला रामलला विराजमान के पक्ष में जाएगा और ऐसा होता है तो भाजपा चारों तरफ बिगुल बजाती चलेगी तथा लोगों से कहेगी कि बहुत दिन पुराना वादा पूरा कर दिया। अगर फैसला कुछ ऐसा होता है जिसमें  अयोध्या की विवादास्पद  पूरी जमीन राम को नहीं मिलती है तो कुछ लोग कहेंगे कि भाजपा को झटका लगा लेकिन मोदी और शाह हिंदू मोर्चा खोलकर सांप्रदायिक उन्माद को हवा दे सकते हैं जिससे बहुलवादी समाज की भावनाएं सभी मसलों से हट जाएं। यह भाजपा को अयोध्या मामले को जिलाए रखने का एक मौका दे सकता है। अयोध्या का फैसला चाहे जिस तरफ जाए यह नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए 'तुम्हारी भी जय जय और हमारी भी जय जय' की तरह होगी। यह विपक्ष के लिए गंभीर परीक्षा का समय होगा।


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