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Wednesday, October 2, 2019

मानव निर्मित आपदा है यह

मानव निर्मित आपदा है यह

राजस्थान से लेकर बिहार तक भारी जल जमाव और तालाबों, झीलों में भरे पानी के कारण होने वाली जान-माल की हानि कोई प्राकृतिक आपदा नहीं है। हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसे प्राकृतिक आपदा बता रहे हैं । वह असली तस्वीर को छिपा रहे हैं। हो सकता है इसका कोई राजनीतिक कारण हो। लेकिन सही तो यह है कि  पर्यावरण परिवर्तन , कुछ साजिशों और कुछ मानवीय गलतियों का खामियाजा भुगत रही है पूरी जनता।
      अगर अगर इसके वैज्ञानिक पहलुओं को देखें तो पता चलेगा कि औद्योगिकरण के कारण वातावरण में एकत्र एयरोसोल के फलस्वरूप मानसून की अवधि में गड़बड़ हो जाती है और जब उत्तर भारत में फसलों की कटाई के बाद तेज हवा चलती है तो वह एयरोसोल फैल जाता है और उत्तरी पश्चिमी भारत पर कहर बनकर टूट पड़ता है। 2 वर्ष पहले भारतीय विज्ञान संस्थान बंगलुरु और लंदन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के संयुक्त प्रयास से एक शोध के बाद पता चला की एयरोसोल के प्रभाव से बादलों के वर्टिकल स्ट्रक्चर और उनके माइक्रो फिजिकल गुणों में भारी बदलाव आ जाता है और इसके कारण वातावरण में स्थिरता खत्म हो जाती है। इस वर्ष जो बारिश का कहर हम देख रहे हैं वह इसी खत्म हो गई स्थिरता के कारण हुआ है । जब तक मानसून था बादल बरसे नहीं और जब मानसून जाने लगा तो चारों तरफ से बादल जमा होकर टूट पड़े। एक बात तो यकीनन कही जा सकती है की इस शोध से यह पता चला कि हमारी गतिविधियां हमारे लोगों के जीवन और पर्यावरण को प्रभावित कर सकती हैं । शोध परियोजना में हिस्सेदार ब्रिटिश वैज्ञानिक डॉक्टर  ए वोल्गारिकिस के मुताबिक वातावरण में जिओ इंजीनियरिंग स्कीम के तहत सल्फर डाइऑक्साइड का उपयोग भी इस प्रक्रिया को तेज करता है। वातावरण की नवीन स्थिति के तहत शहरों में निर्मित होती गगनचुंबी इमारतें ,फ्लाईओवर पार्क इत्यादि जो विकसित भारत की तस्वीर पेश करते हैं। यहां एक शेर याद आता है
कुछ हुस्न मुजस्सिम की अदा पाए हुए हैं
आईने इसी बात पर इतराए  हुए हैं
हम इसी विकास को देखकर इतराते हैं, उसकी चर्चा करते हैं लेकिन वही हमारी बातों की तलहटी में छिपे गाढ़े भूरे पानी के रूप में मौत की भी तस्वीर नहीं देख पाते।
आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं
सामान सौ बरस का पल की खबर नहीं
गौर से देखें जलजमाव कैसे होता है? जलजमाव वर्षा  का वह पानी है जिसे जमीन सोख नहीं सकती और पहले से भरी नालियां बाहर नहीं निकाल सकती। इसे कोढ़ में खाज की तरह खतरनाक बनाती है शहरों की कूड़ा सफाई व्यवस्था। हर शहर की अपनी विशेष चुनौतियां हैं और यह चुनौतियां शहर के निवासियों द्वारा तैयार की जाती है। यह चुनौतियां जब पर्यावरणीय कारणों से जुड़ जाती हैं तो मौत की तरह घातक बन जाती हैं। जंगल कटते जा रहे हैं गांव सिकुड़ते जा रहे हैं।  शहर दानवाकार होते जा रहे हैं । उसमें आबादी अब क्षैतिज न होकर ऊपर की ओर बढ़ रही है और बहुत ही ज्यादा बढ़ रही है उस शहर से जुड़ी चुनौतियां। जयपुर से लेकर पटना तक जो बरसात जाते जाते कहर बरपा गई उसका कारण यही चुनौतियां हैं। इस बार की मौत और बर्बादी यह सबक दे गई है कि पर्यावरण को सुधारना होगा तथा कचरे को कम करना होगा, क्योंकि कचरा उठाने और उसे निपटाने की भी  सरकार की अपनी सीमा है। हर शहर की एक भौगोलिक व्यवस्था होती है और उस व्यवस्था की एक सीमा होती है। आज विकास के नाम पर हम उस सीमा को लांघते जा रहे हैं । यह सरकार का कर्तव्य है कि शहर वासियों को बताएं कि उस शहर की सीमा क्या है। उस शहर की चुनौतियां क्या हैं? दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एयरोसोल के निर्माण को रोकने की वैज्ञानिक कोशिशें करनी होंगी। बेशक इससे उद्योगीकरण को आघात पहुंचेगा लेकिन मानव समुदाय की मौत से लगने वाली चोट उस आघात से कहीं ज्यादा घातक है।

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